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परंपरा महिलाओं के अधिकारों में बाधा न बने, सबरीमाला पर फैसले की 10 बड़ी बातें

केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की मांग महिलाओं की ओर से लंबे समय से उठाई जाती रही है. लेकिन उन्हें इसके लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा. आखिर में उनकी मांग मान ली गई. 

सबरीमाला मंदिर (फाइल फोटो, PTI) सबरीमाला मंदिर (फाइल फोटो, PTI)
वरुण प्रताप सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 28 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:44 PM IST

केरल के मशहूर सबरीमाला मंदिर में अब महिलाओं की एंट्री का रास्ता साफ हो गया है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने महिलाओं के हक में फैसला सुनाया. पांच जजों की बेंच में सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस नरीमन, जस्टिस खानविलकर ने महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया. जबकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने इसके विपक्ष में फैसला दिया. फैसले से जुड़ी 10 बड़ी बातों पर नजर डालिए:

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1.  सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, कानून और समाज के पास यह जिम्मेदारी है कि वे समानता को बढ़ावा दें.  

2. कोर्ट ने कहा कि महिलाएं पुरुषों से किसी भी मामले में कम नहीं हैं. एक तरफ महिलाएं देवी की तरह पूजी जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर उनके ऊपर पाबंदियां लगाई गई हैं. ईश्वर के साथ संबंध शरीर की हालत की मोहताज नहीं है.   

3. सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री को रोकना लैंगिक भेदभाव है.

4. भक्ति में भेदभाव नहीं हो सकता.

5. धर्म जीवन जीने का एक तरीका है, जहां जीवन को ईश्वर से जोड़ा जाता है.

6. सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री को रोकना हिंदू महिलाओं के अधिकारों का हनन है.

7. पितृसत्तात्मक समाज की सोच को यह इजाजत नहीं दी जा सकती कि वह भक्ति में समानता को खत्म करे.

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8. अयप्पा के भक्त अलग से कोई धार्मिक वर्ग नहीं है.  

9. 10 साल से लेकर 50 साल तक की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर लगी रोक धर्म का जरूरी हिस्सा नहीं है.

10. जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग राय रखते हुए कहा कि धर्म का पालन किस तरह से हो, यह समाज तय करता है, कोर्ट नहीं.

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