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देश के आठ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा दिलाने को लेकर दायर की गई जनहित याचिका को सुप्रीमकोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. इस संबंध में कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि इस मामले के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से संपर्क करें. इसके बाद याचिकाकर्ता ने कोर्ट से याचिका वापस ले ली है.
बता दें कि पिछले दिनों वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर करके देश के आठ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग की थी. इनमें लक्षद्वीप, मिज़ोरम, नगालैंड, मेघालय, जम्मू और कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब शामिल हैं.
अश्विनी की याचिका में कहा गया है कि इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक होने के अधिकार इसलिए नहीं दिए गए क्योंकि न तो केंद्र और न ही राज्य सरकारों ने इन्हें ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992’ के तहत अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया.
याचिका में 2011 की जनगणना के हवाले से आठ राज्यों में हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने का दावा किया गया है. इनमें लक्षद्वीप में हिंदुओं की जनसंख्या 2.5, मिज़ोरम में 2.75, नगालैंड में 8.75 , मेघालय में 11.53, जम्मू-कश्मीर में 28.44, अरुणाचल प्रदेश में 29, मणिपुर में 31.39 और पंजाब में 38.40 प्रतिशत बताई गई है.
याचिका के मुताबिक़ इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता नहीं मिलने के फलस्वरूप बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक होने के लाभ अनुचित रूप से दिए गए.
याचिका में 23 अक्टूबर, 1993 के केंद्र सरकार के उस नोटिफ़िकेशन को भी चुनौती दी गई है जिसमें पांच समुदायों को अल्पसंख्यक माना गया था. इनमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी शामिल थे. याचिका के मुताबिक़ ऐसी अधिसूचना मनमानी और तर्कहीन है. याचिका में नोटिफ़िकेशन को रद्द और इसे पूरी तरह असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है. इसमें कहा गया है कि किसी भी समुदाय के लोगों को अल्पसंख्यक का दर्जा सिर्फ़ उनकी जनसंख्या के आधार पर ही मिलना चाहिए. याचिका में कहा गया था कि हिंदुओं को उनके मूल अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, जो कि अनुच्छेद 25 से 30 के तहत कानून उन्हें देता है.