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सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने नेताओं को राहत देते हुए एक बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि सांसद और विधायकों को बतौर वकील कोर्ट में प्रैक्टिस करने से नहीं रोका जा सकता, क्योंकि राजनेता कोई पूर्णकालिक कर्मचारी नहीं हैं. यह फैसला उस याचिका को खारिज करते हुए आया है जिसमें नेताओं के वकालत करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी.
इससे पहले बार काउंसिल ऑफ इंडिया इस मामले में अपना पक्ष साफ करते हुए यह कह चुका है कि पेशे से वकील सांसद और विधायकों को प्रैक्टिस करने से नहीं रोका जा सकता लेकिन अगर ऐसे कोई सांसद किसी जज के खिलाफ महाभियोग लाने में शामिल होते हैं, तो उन्हें उस कोर्ट में वकालत करने की अनुमित नहीं दी जाएगी.
देश की सर्वोच्च अदालत ने इस फैसले में भी बॉर काउंसिल के नियम का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि सिर्फ पूर्णकालिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को कोर्ट में प्रैक्टिस से रोका जा सकता है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने यह फैसला सुनाया है.
प्रोफेशन की रक्षा जरूरी
केंद्र सरकार ने भी अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के जरिए इस याचिका का विरोध किया है. वेणुगोपाल की ओर से कोर्ट में कहा गया कि सांसद जनप्रतिनिधि हैं न कि केंद्र सरकार के पूर्णकालिक कर्मचारी. इसलिए उन्हें कोर्ट में प्रैक्टिस करने से नहीं रोका जा सकता. साथ ही अगर नेता अपनी क्षमताओं के अनुसार अलग से जनसेवा कर रहे हैं तो आप उनके प्रोफेशन को नहीं रोक सकते, क्योंकि वो उनका मूलभूत अधिकार है.
दरअसल, बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी कि ऐसे सांसदों और विधायकों की कोर्ट प्रैक्टिस पर रोक लगाई जाए. उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम 49 का हवाला देते हुए ऐसे नेताओं की कोर्ट प्रैक्टिस को असंवैधानिक बताया था.
बता दें कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, अभिषेक मनु सिंघवी, पी. चिदंबरम समेत बीजेपी सांसद रविशंकर प्रसाद और मीनाक्षी लेखी जैसे बड़े नेता कोर्ट प्रैक्टिस भी करते रहे हैं.