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धारा 377 पर मंगलवार से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, केंद्र सरकार का देरी का आग्रह ठुकराया

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को समलैंगिगता को अपराध के तहत लाने वाली धारा 377 पर सुनवाई में देरी से इनकार कर दिया. केंद्र सरकार चाहती थी कि इस मामले की सुनवाई देर से हो.

धारा 377 पर मंगलवार से सुनवाई (फोटो- रॉयटर्स) धारा 377 पर मंगलवार से सुनवाई (फोटो- रॉयटर्स)
संजय शर्मा/अनुषा सोनी/भारत सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 09 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 11:47 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को समलैंगिगता को अपराध के तहत लाने वाली धारा 377 पर सुनवाई में देरी से इनकार कर दिया. केंद्र सरकार चाहती थी कि इस मामले की सुनवाई कुछ समय बाद हो.

इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ मंगलवार से ही करेगी. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि इस मामले की सुनवाई चार हफ्तों के लिए टाल दी जाए. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने केंद्र के इस आग्रह को ठुकरा दिया.

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जस्टिस मिश्रा ने कहा कि सुनवाई टाली नहीं जाएगी. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इस मामले में सरकार को हलफनामा दाखिल करना है जो इस केस में महत्वपूर्ण हो सकता है. इस वजह से केंद्र ने अपील की थी कि केस की सुनवाई चार हफ्ते के लिए टाल दी जाए.

इससे पहले, चीफ जस्‍टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को बरकरार रखने वाले अपने पहले के आदेश पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया था.

जस्‍टि‍स मिश्रा ने कहा था, 'हमारे पहले के आदेश पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है.' अदालत ने यह आदेश 12 अलग-अलग याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर दिया था, जिसमें कहा गया है कि आईपीसी की धारा 377 अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है. इन याचिकाकर्ताओं में सेलिब्रिटीज, आईआईटी के छात्र और एलजीबीटी एक्टिविस्ट हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले अपने एक आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट के समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के फैसले के विरुद्ध फैसला सुनाया था. बाद में इस मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि 'हो सकता है कि जो काम किसी के लिए प्राकृतिक है वह दूसरे के लिए प्राकृतिक न हो.

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