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तमिलनाडु में जल्लिकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, केंद्र सरकार ने दी थी अनुमति

तमिलनाडु के लोकप्रिय जल्लिकट्टू त्यौहार पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. यानी अबकी बार राज्य में बैलों की दौड़ नहीं होगी. केंद्र सरकार ने 7 जनवरी को अधिसूचना जारी कर इस पर लगी रोक हटा दी थी.

ऐसे होती है बैलों की दौड़ ऐसे होती है बैलों की दौड़
विकास वशिष्ठ
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  • 12 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 3:10 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने तमिनाडु में बैलों की दौड़ वाले लोकप्रिय जल्लिकट्टू महोत्सव पर रोक लगा दी. इस विवादित दौड़ पर से केंद्र सरकार ने 7 जनवरी को रोक हटा दी थी. कोर्ट ने केंद्र के आदेश को रोक दिया है. साथ ही एक हफ्ते के भीतर तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है.

2011 से ही है रोक
यूपीए सरकार ने इस विवादित परंपरा पर 2011 में ही प्रतिबंध लगाने का आदेश दे दिया था, लेकिन 2015 तक इसका पालन नहीं हुआ था. अब केंद्र के रोक हटाने के बाद यह पोंगल यानी 15 जनवरी को दौड़ दोबारा होनी थी. लेकिन एनिमल राइट्स वेलफेयर बोर्ड ने केंद्र के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी, जिस पर कोर्ट ने यह फैसला दिया है.

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इस दौड़ के पक्ष में है राज्य सरकार
तमिलनाडु सरकार इस विवादित दौड़ के पक्ष में है. केंद्र सरकार की ओर से प्रतिबंध हटाने के बाद मुख्यमंत्री जयललिता ने फैसले पर खुशी जाहिर की थी. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद भी कहा था. लेकिन एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट्स ने इस फैसले को क्रूर करार दिया था.

SC ने ही लगाया था प्रतिबंध
मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने बैलों को भी ऐसे जानवरों की श्रेणी में शामिल करने का आदेश दिया था, जिन्हें प्रशिक्षित कर त्योहारों में प्रदर्शन के लिए इस्तेमाल करने पर रोक हो. इसके बाद पिछले साल पहली बार इस त्यौहार पर रोक लगी थी. तमिलनाडु सरकार ने केंद्र से इस त्योहार को जारी रखने के लिए अध्यादेश लाने की मांग की थी. लेकिन पर्यावरण मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर जल्लिकट्टू और इस तरह के दूसरे आयोजनों का रास्ता साफ कर दिया.

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जल्लिकट्टू त्योहार को लेकर क्यों है विवाद
जल्लिकट्टू का आयोजन पोंगल के मौके पर किया जाता है. इस बार यह आयोजन 15 जनवरी को होना है. इस दौरान बैलों की आंखों जैसे संवेदनशील हिस्सों में मिर्च पाउडर डालकर उन्हें दौड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है.एक युवक को उसे वश में करना होता है. बीते वर्षों में इस त्योहार के दौरान दर्जनभर से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और सैकड़ों लोग घायल हो चुके हैं.

तमिल इतिहासकारों के मुताबिक यह त्यौहार 2 हजार साल पुराना है. पूर्व की यूपीए सरकार ने इस पर 2011 में ही प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था, लेकिन 2015 तक इसका पालन नहीं हुआ था.

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