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SC की दो टूक- हिंसा की इजाजत नहीं दे सकती सरकारें, लिंचिंग पर कानून बनाए संसद

लिंचिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी अपने आप में कानून नहीं हो सकता है. देश में भीड़तंत्र की इजाजत नहीं दी जा सकती है. राज्य सरकारें संविधान के मुताबिक काम करें.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
संजय शर्मा/देवांग दुबे गौतम/अनुषा सोनी
  • नई दिल्ली,
  • 17 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 12:22 PM IST

गोरक्षा के नाम पर लिंचिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई भी अपने आप में कानून नहीं हो सकता है. देश में भीड़तंत्र की इजाजत नहीं दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को सख्त आदेश दिया कि वो संविधान के मुताबिक काम करें. साथ ही राज्य सरकारों को लिंचिंग रोकने से संबंधित गाइडलाइंस को चार हफ्ते में लागू करने का आदेश दिया है.

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अदालत ने कहा कि सरकारें हिंसा की  इजाजत नहीं दे सकती हैं. लिहाजा इसको रोकने के लिए विधायिका कानून बनाए. बता दें कि गोरक्षा के नाम पर हो रही भीड़ की हिंसा पर रोक लगाने के संबंध में दिशानिर्देश जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये राज्य सरकारों का दायित्व है कि वह इस तरह से हो रही भीड़ की हिंसा को रोकें.

मामले में फैसले से पहले टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा था कि ये सिर्फ कानून व्यवस्था का सवाल नहीं है, बल्कि गोरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा क्राइम है. अदालत इस बात को स्वीकार नहीं कर सकती कि कोई भी कानून को अपने हाथ में ले.

कानून व्यवस्था को बहाल रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी: SC

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लिंचिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा था कि जहां तक कानून व्यवस्था का सवाल है, तो प्रत्येक राज्य की जिम्मेदारी है कि वो ऐसे उपाय करे कि हिंसा हो ही नहीं. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने साफ कहा कि कोई भी शख्स कानून को किसी भी तरह से हाथ में नहीं ले सकता. कानून व्यवस्था को बहाल रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है और प्रत्येक राज्य सरकार को ये जिम्मेदारी निभानी होगी. गोरक्षा के नाम पर भीड़ हिंसा गंभीर अपराध है.  

सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा ने कहा था कि केंद्र सरकार इस मामले में सजग और सतर्क है,  लेकिन मुख्य समस्या कानून व्यवस्था की है. कानून व्यवस्था पर नियंत्रण रखना राज्यों की जिम्मेदारी है. केंद्र इसमें तब तक दखल नहीं दे सकता जब तक कि राज्य खुद गुहार ना लगाएं.  

सुनवाई के दौरान एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से इंदिरा जय सिंह ने दलील दी कि मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हिंसा) के पीड़ितों को मुआवजे के लिए धर्म व जाति आदि को ध्यान में रखा जाए.  इसके लिए अनुच्छेद-15 का भी हवाला दिया गया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़ित सिर्फ पीड़ित होता है और उसे अलग कैटेगरी में नहीं रखा जाना चाहिए.  

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पिछले साल 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने गोरक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाओं को अंजाम देने के मामले में केंद्र और राज्य सरकारों से कहा था कि वह किसी ऐसे गोरक्षकों को संरक्षण न दें. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से सुप्रीम कोर्ट ने गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा को लेकर जवाब दाखिल करने को कहा था.  

SC ने राज्यों को जारी किया था नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने गोरक्षा करने वालों पर बैन की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान छह राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यूपी , गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड व कर्नाटक को नोटिस जारी किया था.

अदालत ने गोरक्षा के नाम पर हिंसक सामग्री हटाने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार को सहयोग करने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से गोरक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाओं के मामले में रिपोर्ट पेश करने को कहा था.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 6 सितंबर को राज्यों से कहा था कि वह हिंसा की रोकथाम के लिए सख्त कदम उठाएं. सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि अदालत के आदेश का पालन राज्य सरकार नहीं कर रही है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यूपी, राजस्थान और हरियाणा सरकार के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा था.

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