
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को पलटकर रख दिया है कि दिल्ली के असली प्रशासक उप राज्यपाल हैं. देश की सबसे ऊंची अदालत के सबसे बड़े जज की अध्यक्षता में बैठी संविधान पीठ ने दिल्ली की सत्ता का रेशा-रेशा साफ कर दिया है, कोई राजनीति नहीं, कोई गफलत नहीं, कोई इधर-उधर की बात नहीं. एलजी नहीं मुख्यमंत्री हैं दिल्ली के असली मालिक.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने लोकतंत्र की उस भावना को फिर से रेखांकित किया है जिसमें चुनी हुई सरकार, चुने हुए प्रतिनिधि और चुनी हुई विधानसभा के फैसले को कोई भी आंख नहीं दिखा सकता.
मतलब अब गया वो जमाना जब केजरीवाल एलजी से मिलने जाते थे और बैजल साहब मुंह पर फाटक बंद करके आराम से ब्रेकफास्ट, लंच डिनर करते रहते थे. अदालत का फैसला है एलजी को मुख्यमंत्री मिलना भी पड़ेगा और सलाह भी माननी पड़ेगी, और जरा अदब से, क्योंकि जनता ने शासन के लिए सरकार को चुना है, एलजी को नहीं. जनता के प्रति अंतिम जवाबदेही उन्हीं की है.
अब जरा समझिए कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दस सबसे बड़े मतलब क्या हैं.
पहला- मुख्यमंत्री और कैबिनेट को ही दिल्ली चलाने का अधिकार है.
दूसरा- जनता के प्रति चुनी हुई सरकार उत्तरदायी है एलजी नहीं.
तीसरा- सरकार को हमेशा एलजी से इजाजत लेने की जरूरत नही है.
चौथा- उलटा एलजी को ही कैबिनेट की सलाह से फैसले लेने होंगे उनके पास स्वतंत्र अधिकार नहीं हैं.
पांचवां- चुनी हुई सरकार के नियमित काम में एलजी की दखल नहीं दे सकते.
छठा- एलजी चुनी हुई हुई सरकार के फैसले को मानने के लिए बाध्य हैं.
सातवां- विधानसभा कानून बना सकती है और एलजी उसे नहीं रोक सकते.
आठवां- अफसरों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार सरकार के पास है.
नवां- एलजी के पास स्वतंत्र रूप से फैसला लेने की कोई शक्ति नहीं है.
दसवां- मंत्रिमंडल की संवैधानिक शक्तियां एलजी नजरअंदाज नहीं कर सकते.
पांच जजों की संविधान पीठ ने साफ कहा है कि दिल्ली के पूर्ण राज्य न होने के कारण जमीन, पुलिस और कानून पर फैसला केंद्र सरकार और एलजी ही कर सकते हैं लेकिन बाकी के मुद्दों पर चुनी हुई सरकर से ऊपर कोई नहीं. एलजी को उसे मानना भी होगा और अपने फैसले से पहले पूछना भी होगा.