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विदेश दौरों में अपने पूरे डेलिगेशन का ख्याल रखतीं थीं सुषमा स्वराज

सुषमा स्वराज का मंगलवार रात को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. उन्होंने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली. सुषमा स्वराज न सिर्फ एक कामयाब राजनेता थीं बल्कि उनकी शख्सियत लोगों के दिलों को छूती थी.

सुषमा स्वराज (Source: PTI) सुषमा स्वराज (Source: PTI)
गीता मोहन
  • नई दिल्ली,
  • 08 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 9:16 AM IST

सुषमा स्वराज का मंगलवार रात को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. उन्होंने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली. सुषमा स्वराज न सिर्फ एक कामयाब राजनेता थीं बल्कि उनकी शख्सियत लोगों के दिलों को छूती थी. विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने नीति में कई अहम बदलाव किए. कई संवेदनशील मामलों में भी सुषमा स्वराज अपने विभाग के अधिकारियों से सलाह-मशविरा कर अपनी राय जरूर देती थीं.  

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एक अधिकारी ने बताया कि जब उन्हें किसी जरूरी मुद्दे पर बैठक करनी होती थी तो वह फोन पर उन्हें निर्देश देती थीं कि समय के बंधन के बगैर आना. यह इशारा होता था कि बैठक लंबी होने वाली है. सुषमा स्वराज ने अपना मंत्रालय संभालते हुए उसकी कायापलट ही कर दी. उन्हें सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स का काम के लिए बखूबी इस्तेमाल किया. सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्रालय को आम आदमी तक पहुंचाया. अपनी कुशलता से उन्होंने भारतीय प्रवासियों को विदेश नीति का एक अहम हिस्सा बना लिया.

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सुषमा स्वराज अपने मंत्रालय से जुड़े सभी अफसरों-अधिकारियों को उनके नाम से जानती थीं. वह सभी को अपना परिवार ही मानती थीं. एक अधिकारी ने बताया कि वह अपने पूरे डेलिगेशन का खयाल रखती थीं. डेलिगेशन ने खाना खाया या नहीं, वह इसे भी सुनिश्चित किया करती थीं. अधिकारी ने आगे बताया कि जब उन्होंने सुषमा स्वराज के यूएनजीए सेशन में पाकिस्तान पर दिए गए भाषण की तारीफ की तो उन्होंने जवाब में कहा, "ये तो तुम्हारा मोह है मेरे लिए, वर्ना स्पीच तो ठीक ही थी."  

सुषमा स्वराज सबके दिलों को छूती थीं. उनकी विदेश यात्रा को लेकर कई चुटकुले भी बनने लगे थे. कहा जाने लगा था कि उनकी हर एक विदेश यात्रा पर उनकी लिस्ट में एक नए 'भाई' का नाम जुड़ जाता है. सुषमा स्वराज के स्टाफ के सभी साथी उनके भाई बन चुके थे.

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2010 में जब अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा ने सुषमा स्वराज से मुलाकात की तो वो भी उनसे काफी प्रभावित हुए थे. सुषमा स्वराज ने OIC बैठक में जबरदस्त तरीके से आतंकवाद का मुद्दा उठाया था. यह एक ऐतिहासिक पल था क्योंकि भारत ने पहली बार इस्लामिक देशों की बैठक को संबोधित किया था और वो भी पाकिस्तान के विरोध के बावजूद.

बैठक के बाद अबू धाबी में सुषमा स्वराज अपने स्टाफ को बाहर ले गईं. इस दौरान उन्होंने पत्रकारों से भी मुलाकात की जिसमें आजतक की संवाददाता गीता मोहन भी मौजूद थीं. उन्होंने गीता से पूछा, "गीता, कैसी हो तुम? उम्मीद करती हूं कवरेज अच्छी रही होगी. क्या तुमने डिनर किया?"

एक अधिकारी ने सुषमा स्वराज को लेकर एक बार कहा, "वह भले हीं कद में छोटी हों लेकिन उनका रुतबा सबसे बड़ा है." सुषमा स्वराज नरेंद्र मोदी सरकार की 'संकट मोचक' थीं. नरेंद्र मोदी सरकार हमेशा उनकी सेवा की ऋणी रहेगी.

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