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तेज धमाके के साथ जमीन पर गिरा था उल्कापिंड, जांच के लिए भेजा

19 जून को राजस्थान के जालौर जिले में गिरे संदिग्ध उल्कापिंड को भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया गया है. वह इसके बारे में पता लगाएंगे कि आखिर यह टुकड़ा कहां से आया और यह कितना महत्वपूर्ण है.

आसमान से गिरा पिंड (Photo:aajtak) आसमान से गिरा पिंड (Photo:aajtak)
aajtak.in
  • जालोर,
  • 25 जून 2020,
  • अपडेटेड 1:55 PM IST

राजस्थान के जालौर जिले में 19 जून को आसमान से धमाके के साथ गिरे उल्कापिंड को स्थानीय प्रशासन ने जांच के लिए संबंधित विभाग को बुधवार को सौंप दिया. यह विभाग इस उल्कापिंड की कीमत, उसकी संरचना, उसके महत्व के बारे में रिसर्च करेगा.

जालोर जिले के सांचौर इलाके में आसमान से गिरे उल्कापिंड को अनुसंधान के लिए जयपुर के भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया गया. अतिरिक्त जिला कलेक्टर सीएल गोयल ने वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक बिस्व रंजन मोहन्ति एवं समीर अवल को सांचौर में गिरे इस उल्कापिंड को अनुसन्धान के लिए दिया.

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भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के वैज्ञानिकों को उल्का पिंड सौंपते एडीएम.

कोलकाता में रखा जाएगा उल्कापिंड सुरक्षित

भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग उल्कापिंड के संरक्षण के लिए भारत सरकार से नामित संस्था है. उल्कापिंड को भू-वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशाला में विभिन्न जांचों द्वारा उल्कापिंड के तत्वों के बारे में जांच की जाएगी. इसके पश्चात कोलकाता स्थित नेशनल मिटीयोराइट रिपोजिटरी में सुरक्षित रख दिया जायेगा.

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जालौर के अतिरिक्त जिला कलेक्टर सीएल गोयल के मुताबिक सांचौर में आसमान से गिरा सस्पेक्टेड मिटीयोराइट्स (उल्कापिंड) मिला था जिसे जालौर लाया गया था. यहां भू- वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग से आए प्रतिनिधियों को सुपुर्द किया गया.

उल्कापिंड के तत्वों के बारे में की जाएगी जांच

सांचौर में गिरे इस उल्कापिंड को अनुसन्धान के लिए दिया. भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग उल्कापिंड के संरक्षण के लिए भारत सरकार से नामित संस्था है. उल्कापिंड को भू-वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशाला में विभिन्न जांचों द्वारा उल्कापिंड के तत्वों के बारे में जांच की जाएगी.

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पिंड के बारे में क्या कहते हैं भूगोल के प्रोफेसर

इस बारे में भूगोल के प्रोफेसर मूलाराम बिश्नोई ने बताया कि जहां तक हमें जानकारी मिली है यह एक धातु का टुकड़ा है. धातु मैटेलिक बॉडी, प्राकृतिक उल्कापिंड नहीं हो सकती. उन्होंने बताया कि सौरमंडल में बहुत सारे पिंड सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं और कभी-कभार अनियंत्रित होकर जब वायुमंडल में आते हैं तो पृथ्वी की गुरुत्व शक्ति के कारण तेजी से पृथ्वी की ओर आते हैं.

बिश्नोई ने आगे बताया कि जब पृथ्वी के आकर्षण शक्ति में आकर के नेचरफीयर में आते हैं तो चारों ओर जो धूल कण होते हैं, गैस होती हैं, जिसकी वजह से तेज घर्षण से उसमें आग लगनी शुरू हो जाती है. इसके बाद वह लगभग राख बनकर समाप्त हो जाते हैं. अधिकतर जितने भी उल्का पिंड आते हैं नेचरफियर में खत्म हो जाते हैं लेकिन जिनका आकार बड़ा होता है उनका अंश कभी-कभी कुछ जगह पर उल्कापिंड के रूप में गिरते हैं.

प्रोफेसर विश्नोई ने इसके उल्कापिंड होने पर संदेह जताते हुए कहा कि सांचौर में जो गिरा है उसकी जहां तक मुझे जानकारी है उसमें धातुओं का संग्रहण है. करीब पांच से सात धातु शामिल हैं. प्रथम दृष्टया इसमें ऐसा लग रहा है कि यह प्राकृतिक उल्कापिंड नहीं लग रहा है. बाकी तो जांच में पता चलेगा लेकिन ऐसा भी हो सकता है. हमारे वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न तरह के कृत्रिम उपग्रह स्पेस सेंटर में भेजे हैं. वहां से कोई टुकड़ा पृथ्वी के गुरुत्व शक्ति में आकर वायुमंडल में प्रवेश करके यहां गिरा हो, यह भी हो सकता है. फाइनली अभी इस बारे में तभी कह सकते हैं जिसकी पूर्ण रूप से जांच होगी. इसके प्राकृतिक उल्कापिंड होने की संभावना कम है.

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आसमान से धमाके की आवाज के साथ नीचे गिरा था पिंड

बता दें कि 19 जून की सुबह राजस्थान में जालौर जिले सांचोर में तेज धमाके के साथ एक पिंड आसमान से आकर जमीन में धंस गया था. स्थानीय लोगों ने इसकी सूचना पुलिस को दी जिसके बाद यह प्रशासन की निगरानी में रखा गया. अब इसे जांच के लिए जयपुर के संस्थान में भेजा गया है.

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