
पिछले चार दशकों से चला आ रहा सतलुज यमुना लिंक नहर निर्माण विवाद जल्द सुलझने के आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं. यह विवाद दोनों राज्यों की राजनीति गरमाता आया है. पंजाब हो या फिर हरियाणा, नेता विधानसभा चुनावों के दौरान एसवाईएल नहर का मुद्दा उछाल कर मतदाताओं को लुभाते रहे हैं.
नहर निर्माण को लटकाने के लिए पंजाब के बदलते पैंतरे
24 जुलाई 1985 को राजीव-लोंगोवाल समझौते के तहत जहां नहर निर्माण के लिए सहमति दे दी गई वहीं समझौते के बावजूद भी 2015 तक नहर पर कोई काम नहीं हुआ. 2004 में पंजाब ने राजीव-लोंगोवाल एग्रीमेंट को भुला कर पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट को पास करके सभी जल समझौते खत्म करने की बात की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 10 नवंबर 2017 को एक्ट को असंवैधानिक करार दिया था.
इस मामले को और ज्यादा पेचीदा बनाने के लिए अब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने फिर से पैंतरा बदला है. कैप्टन ने एक तरफ नहर निर्माण से राष्ट्रीय सुरक्षा को पैदा होने वाले कथित खतरे की बात करके और दूसरे पानी की मात्रा कम होने की बात करके इशारों ही इशारों में जता दिया है कि पंजाब नहर निर्माण के हक में नहीं है. भले ही अब तक पंजाब से लाखों एमएएफ पानी पाकिस्तान में बह चुका हो लेकिन पंजाब राजनीतिक कारणों से नहर निर्माण की खिलाफत करता आया है.
उधर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अब पानी की उपलब्धता का आकलन करने के लिए एक ट्रिब्यूनल बनाने का सुझाव भी दिया है. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि अमूमन किसी भी जल समझौते के 25 साल बाद पानी की उपलब्धता को लेकर समीक्षा की जाती है. उन्होंने कहा है कि एसवाईएल समझौता 40 साल पहले किया गया था इसलिए अब इस परियोजना की समीक्षा भी होनी चाहिए.
कैप्टन ने भाखड़ा व्यास प्रबंधन बोर्ड द्वारा दिए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि 1981 में रावी-व्यास के पानी की उपलब्धता 17.17 एमएएफ जो अब घटकर 13.38 एमएएफ रह गई है.
एसवाईएल नहर निर्माण को लेकर हरियाणा का कड़ा रुख
8 अप्रैल 1982 को एसवाईएल नहर की आधारशिला रखे जाने 24 जुलाई 1985 को राजीव लोंगोवाल समझौता होने के बावजूद भी जब 10 साल तक नहर निर्माण सिरे नहीं चढ़ा तो हरियाणा ने सबसे पहले 1996 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. गौरतलब है कि इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट से हमेशा फैसला हरियाणा के ही पक्ष में हुआ है. सबसे पहला फैसला 15 जनवरी 2002 को आया था जब सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एसवाईएल नहर बनाने के आदेश दिए थे.
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साल 2015 में हरियाणा के आग्रह पर गठित संवैधानिक बेंच ने भी 2016 में हरियाणा के पक्ष में ही अपना फैसला सुनाया था. लेकिन पंजाब एसवाईएल नहर निर्माण को लेकर अपना रवैया बदलने को तैयार नहीं हुआ. तत्कालीन अकाली दल-बीजेपी सरकार के समय पंजाब सरकार ने एक और चाल चलते हुए 2016 में हरियाणा द्वारा भूमि अधिग्रहण के लिए उपलब्ध करवाए गए 192 करोड़ रुपए की धनराशि का चेक वापस कर दिया. लेकिन हरियाणा सरकार ने इस राशि को स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
यही नहीं नहर निर्माण के लिए किसानों से अधिग्रहित की गई जमीन लौटाने का प्रयास भी हुआ लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2016 में पंजाब सरकार को नहर पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे. हाल ही 28 जुलाई 2020 को जब इस मामले की सुनवाई हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने दोनों सरकारों को आपस में बातचीत करके विवाद हल करने की बात की.
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मंगलवार को इस बाबत दोनों सरकारों के मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच में एक बैठक आयोजित हुई जो बेनतीजा रही. दोनों मुख्यमंत्रियों की अगली बैठक चंडीगढ़ में होनी प्रस्तावित है. लेकिन विवाद सुलझने के आसार नहीं लग रहे हैं.
हरियाणा नहर निर्माण पर अड़ा हुआ है और निर्धारित 3.5 एमएएफ की मात्रा हासिल करना चाहता है. हरियाणा की तरफ से विवाद को निपटाने के दो और सुझाव भी दिए गए हैं. एक सुझाव पाकिस्तान की तरफ बहने वाले पानी का रुख हरियाणा की तरफ मोड़ने का है दूसरा भाखड़ा नहर की मरम्मत करके पानी की बर्बादी रोकने का है.