जब करुणानिधि ने अकेले उठा लिया था सी एन अन्नादुरै का शव

एम करुणानिधि ने फरवरी 1969 में एक ऐसा कदम उठाया जिसने अचानक उन्हें डीएमके के अंदर लोकप्रियता के शीर्ष पर पहुंचा दिया और जल्द ही पार्टी सुप्रीमो बन गए, जिस पर वह आजीवन बने रहे.

Advertisement
तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि (इंडिया टुडे आर्काइव) तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि (इंडिया टुडे आर्काइव)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 08 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 7:49 AM IST

दक्षिण की राजनीति के पितामह एम करुणानिधि अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन जब तक वह रहे तमिलनाडु की राजनीति उनके इर्द-गिर्द घूमती रही. उन्होंने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की कमान लगातार 50 साल तक संभाले रखी.

राजनीति में एंट्री से पहले करुणानिधि दक्षिण में जाना-पहचाना नाम बन गए थे. उन्होंने तमिल सिनेमा में अपने कलम के जादू से सभी को दीवाना बना रखा था. इससे पहले वह हिंदी के विरोध में आंदोलन कर चुके थे.

Advertisement

करुणानिधि के बारे में कहा जाता है कि वह बेहद मेहनती थे. उनकी याददाश्त भी कमाल की थी और अपनी शानदार याददाश्त के जरिए 94 साल की उम्र में वह राजनीति की तिकड़मों में रुचि लेते रहे. उन्हें राजनीतिक रणनीति बनाने का माहिर माना जाता है.

दक्षिण की राजनीति में उनकी हैसियत चाणक्य जैसी रही. उनके करीबी लोग मानते हैं कि करुणानिधि बहुत होशियार और तिकड़मी थे और इसी की बदौलत उन्होंने जमकर कामयाबी हासिल की और कभी भी चुनावी समर में उन्हें शिकस्त का सामना नहीं करना पड़ा.

फरवरी 1969 की एक घटना ने उन्हें तमिल की राजनीति में स्थापित कर दिया. 3 फरवरी को राज्य के लोकप्रिय नेता सीएन अन्नादुरै के निधन पर डीएमके के लाखों कार्यकर्ता वहां मौजूद थे. सभी अपने दुलारे नेता के निधन पर दुखी थे.

Advertisement

इस बीच करुणानिधि ने चेन्नई में लाखों लोगों के सामने अपने गुरु और तमिलनाडु के पहले द्रविड़ मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरै की अंत्येष्टि से पहले उनका शव अकेले ही उठाया और अंतिम संस्कार के लिए लेकर चल दिए.

करुणानिधि के इस भावपूर्ण कदम से पार्टी कार्यकर्ताओं में उनकी अच्छी छवि बन गई और लोग उन्हें चाहने लगे. इसके बाद ही करुणानिधि पार्टी में कई वरिष्ठ नेताओं को पछाड़कर अन्नादुरै के निर्विवाद उत्तराधिकारी के रूप में उभरे और पार्टी के अगले अध्यक्ष बन गए.

गौर करने वाली बात यह है कि जब अन्नादुरै ने 1949 में घोर नास्तिक और ब्राह्मणवाद विरोधी नेता ईवीके रामास्वामी या पेरियार की द्रविड़ कडगम (डीके) पार्टी छोड़कर नई पार्टी बनाई थी तब करुणानिधि उनके साथ भी नहीं आए थे. हालांकि बाद में वह पार्टी के सुप्रीमो बन गए.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement