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जब इंदिरा ने लालकिले में 32 फीट नीचे डाला था टाइम कैप्सूल, मचा था बवाल

लालकिले में इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त 1973 को टाइम कैप्सूल 32 फीट नीचे दबाया था. दावा किया जाता है कि इस टाइम कैप्सूल में आजादी के बाद 25 वर्षों का घटनाक्रम साक्ष्य के साथ मौजूद था.

लाल किले के नीचे इंदिरा गांधी ने दबाया था टाइम कैप्सूल लाल किले के नीचे इंदिरा गांधी ने दबाया था टाइम कैप्सूल
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 27 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 11:55 PM IST

  • विपक्ष ने लगाया था परिवार के महिमा मंडन का आरोप
  • मोरारजी देसाई सरकार ने निकलवाया था टाइम कैप्सूल

राम मंदिर के भूमि पूजन की तैयारियों के बीच खबर है कि नींव के 200 फीट नीचे टाइम कैप्सूल डाला जाएगा. यह देश में कोई पहला अवसर नहीं, जब किसी स्थान पर टाइम कैप्सूल डाला जा रहा हो. लाल किले के 32 फीट नीचे भी टाइम कैप्सूल पड़ा है. साल 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने हाथ से टाइम कैप्सूल डाला था.

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लाल किले में इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त 1973 को टाइम कैप्सूल 32 फीट नीचे दबाया था. दावा किया जाता है कि इस टाइम कैप्सूल में आजादी के बाद 25 वर्षों का घटनाक्रम साक्ष्य के साथ मौजूद था. इंदिरा गांधी ने इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च को अतीत की अहम घटनाएं दर्ज करने का काम सौंपा था. हालांकि, तब सरकार के इस फैसले पर काफी विवाद भी हुआ था.

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विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपना और अपने परिवार का महिमामंडन किया है. साल 1970 में मोरारजी देसाई ने कहा था कि वो कालपत्र को निकालकर देखेंगे कि कालपत्र में क्या लिखा है. मोरारजी देसाई की सरकार बनने के बाद कालपत्र निकाला भी गया, लेकिन यह पता नहीं चल सका कि उसमें लिखा क्या था. इंदिरा गांधी के कालपत्र का रहस्य आज भी रहस्य ही बना हुआ है कि उन्होंने इस टाइम कैप्सूल में क्या लिखवाया था.

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टाइम कैप्सूल दबाने का क्या होता है उद्देश्य

टाइम कैप्सूल को जमीन के नीचे रखने का एकमात्र उद्देश्य ये होता है कि भविष्य की पीढ़ियों को गुजरे हुए कल के बारे में बताया जा सके. लाल किले के नीचे ही नहीं, देश में कई और स्थान भी हैं, जहां टाइम कैप्सूल दबाया गया है. आईआईटी कानपुर ने अपने 50 साल के इतिहास को संजोकर रखने के लिए टाइम कैप्सूल को जमीन के नीचे दबाया था.

टाइम कैप्सूल को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने साल 2010 में जमीन के अंदर डाला था. इस टाइम कैप्सूल में आईआईटी कानपुर के रिसर्च और शिक्षकों से जुड़ी जानकारियां थीं. इसका उद्देश्य यही था कि दुनिया तबाह हो जाए तब भी आईआईटी कानपुर का इतिहास सुरक्षित रहे. आईआईटी कानपुर के अलावा चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में भी टाइम कैप्सूल दबाया गया है. इसमें कृषि विश्वविद्यालय के इतिहास से जुड़ी जानकारियां सहेजी गईं थीं.

सदियों पुराना है टाइम कैप्सूल का इतिहास

टाइम कैप्सूल का अतीत सैकड़ों साल पुराना है. इसका कॉन्सेप्ट केवल भारत में ही नहीं है. स्पेन में 30 नवंबर, साल 2017 को बर्गोस में करीब 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल मिला था. ये टाइम कैप्सूल ईसा मसीह की मूर्ति के रूप में था. मूर्ति के अंदर एक दस्तावेज था, जिसमें साल 1777 के आसपास की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सूचनाएं दर्ज थीं.

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पुराना है टाइम कैप्सूल का इतिहास

फिलहाल इसे ही सबसे पुराना टाइम कैप्सूल माना जाता है. बीसवीं सदी में अमेरिका के कई शोध संस्थानों ने टाइम कैप्सूल के जरिए जानकारियां जमीन के नीचे दबाई थीं. पूर्वी सोवियत संघ में भी एक दौर में कई टाइम कैप्सूल जमीन के नीचे दबाए गए थे, जिनमें भविष्य के लिए कई तरह के संदेश दिए गए थे. टाइम कैप्सूल के लिए 1990 में एक अंतरराष्ट्रीय संस्था भी बनाई गई थी, जो दुनिया भर में सारे टाइम कैप्सूल्स का रिकॉर्ड रखती है.

खराब नहीं होता टाइम कैप्सूल

टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है. इसे ऐसी विशेष सामग्री से बनाया जाता है, जिसमें किसी भी परिस्थिति में किसी भी तरह केमिकल रिएक्शन नहीं होता. जमीन के अंदर गहराई में दबाया जाने वाला टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम और हर तरह की परिस्थिति का सामना करने में सक्षम होता है. यह कभी न तो सड़ता-गलता है, ना ही खराब ही होता है.

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