Advertisement

भारत के लिए ये आर्थिक चुनौतियां लेकर आया है साल 2019

भारत जैसी अर्थव्यवस्था को महज इससे खुश होने की जरूरत नहीं है. इस तेज विकास दर के बावजूद जी-20 समूह में भारत अभी भी सबसे गरीब देश है और मौजूदा स्थिति में उसके लिए आसान है कि वह अमीर-गरीब देश के इस अंतर को खत्म कर ले.

आर्थिक चुनौती (प्रतीकात्मक फोटो) आर्थिक चुनौती (प्रतीकात्मक फोटो)
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 01 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 1:46 PM IST

2019 में कदम रख रहा भारत बीते 25 साल से औसत 7 फीसदी की विकास दर के साथ दुनिया की सबसे तेज दौड़ने वाली अर्थव्यवस्था है. इस दौरान देश में बड़े आर्थिक सुधार के कदम उठाए गए हैं. इनमें केन्द्र-राज्य संबंधों को नया आयाम देने के लिए गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को अपनाने के साथ बैंकरप्सी कोड लागू करना और सफलतापूर्वक महंगाई दर को काबू में रखने के लिए लक्ष्य आधारित व्यवस्था पर चलना शामिल है.

Advertisement

बहरहाल भारत जैसी अर्थव्यवस्था को महज इससे खुश होने की जरूरत नहीं है. इस तेज विकास दर के बावजूद जी-20 समूह में भारत अभी भी सबसे गरीब देश है और मौजूदा स्थिति में उसके लिए आसान है कि वह अमीर-गरीब देश के इस अंतर को खत्म कर ले. लेकिन यह आसान तब होगा जब इस अंतर को खत्म करने के लिए वह इन आर्थिक चुनौतियों पर काबू करने की दिशा में आगे बढ़े.

नया साल जिन आर्थिक चुनौतियों को लेकर सामने खड़ा है उसमें भारत या तो वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ सिकुड़ते हुए कमजोर हो जाए और 25 साल के तेज विकास की कहानी को खत्म कर दे या फिर इन चुनौतियों को काबू कर वह चमकती हुई अर्थव्यवस्था बन पूरी दुनिया के लिए मिसाल कायम कर दे.

लौट रही है महंगाई, आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियां लेकर आ रहा है साल 2019

Advertisement

राजनीतिक स्थिरता: साल 2019 की पहली छमाही के दौरान दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में आम चुनाव होने जा रहे हैं. अर्थव्यवस्था को इन चुनावों से राजनीतिक स्थिरता की आस है. मौजूदा सरकार पूर्ण बहुमत वाली सरकार है और विपक्ष बेहद कमजोर स्थिति में है. बीते चार साल के दौरान देश में हुए अधिकांश विधानसभा चुनावों में केन्द्र की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी को बढ़त मिली है और आर्थिक दृष्टि से राजनीतिक स्थिरता का आयाम मजबूत हुआ है. हालांकि हाल में हुए 5 राज्यों के चुनावों में केन्द्र में विपक्ष की भूमिका में बैठी कांग्रेस ने बाजी मारी है. लिहाजा, अप्रैल-मई 2019 के बीच होने वाले आम चुनावों में सत्ता के लिए बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर देखी जा सकती है. ऐसी स्थिति में आर्थिक जानकारों की नजर केन्द्र में बनने वाली नई सरकार की ताकत पर रहेगी.  

चुनावी वादे: बीते 4 साल के दौरान देश में चुनावी वादों के अच्छे दिनों की दरकार रही है. इन अच्छे दिनों के लिए देश में उत्पाद और सेवाओं की कम कीमत के साथ-साथ आम आदमी के लिए मूलभूत सुविधाओं पर जोर रहा है. बेहतर सड़क, पर्याप्त बिजली, मजबूत और सुरक्षित जन-यातायात, स्वास्थ सुविधा, प्रभावी शिक्षा व्यवस्था चुनावी वादों के जरिए सरकार के दायित्व में शामिल है. इन वादों को पूरा करने के लिए बेहद जरूरी है कि केन्द्र सरकार के राजस्व में इजाफा होता रहे और वह तभी संभव है जब देश में रोजगार के बड़े अवसर पैदा हों. इनके अलावा आगामी चुनावों से पहले देश की शीर्ष राजनीतिक दल लोकलुभावन वादों की बारिश कर रहे हैं जिनका महज नकारात्मक असर देश के विकास की गाथा पर पड़ेगा.

Advertisement

ये हैं आर्थिक आंकड़े जिनका 2019 चुनावों से पहले सरकार के पक्ष में होना जरूरी है   

वैश्विक संकट: भारत में तेज विकास दर ऐसी स्थिति में है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था सिकुड़न के दौर में है. दुनिया की ज्यादातर बड़ी अर्थव्यवस्थाएं गंभीर चुनौतियों से घिरी है. अमेरिका और चीन के बीच शुरू हुए ट्रेड वॉर का असर दोनों अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ यूरोप और एशिया की अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है. 2019 के दौरान ट्रेड वॉर और गंभीर चुनौती खड़ा कर सकता है जिसका खामियाजा भारत समेत कई एशियाई देशों को भुगतना पड़ेगा. इसके अलावा वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी हुई है. जहां 2018 में कच्चे तेल की कीमत में एक बार फिर इजाफा शुरू हुआ वहीं कच्चे तेल के उत्पादक खाड़ी देश 2014 से 2017 तक कमजोर कीमत के चलते कड़ी चुनौतियों में घिरे हैं. लिहाजा, 2019 के दौरान भारत के विकास की कहानी के लिए बेहद जरूरी है कि कच्चा तेल सामान्य दर पर उपलब्ध रहे जिससे सरकार के राजस्व पर अतिरिक्त बोझ न पड़े.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement