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विदेशी पर्यटकों के लिए 54 साल बाद खुली नेलांग घाटी, भारत-चीन युद्ध के बाद लगा था प्रतिबंध

इसी के साथ अब विदेशी सैलानी भी प्रशासन की अनुमति से भारत-चीन सीमा पर स्थित नेलांग घाटी की सैर कर सकेंगे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बने हालात के मद्देनजर भारत सरकार ने उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया था.

नेलांग घाटी नेलांग घाटी
सुरभि गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 05 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 9:30 PM IST

भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर तनाव जारी है. इससे पहले भी चीन के सैनिक कई बार भारतीय सीमा पर अपनी हिमाकत दिखा चुके हैं, पर भारतीय सैनिकों के तुरंत विरोध करने पर उनको उलटे पांव लौटना भी पड़ा. भारतीय सीमा पर सुरक्षा को लेकर उत्तराखंड बॉर्डर को भी बेहद संवेदनशील माना जाता है. इसके बावजूद भी राज्य सरकार द्वारा सीमा की नहीं बल्कि पर्यटन की चिंता ज्यादा दिखाई दे रही है.

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शायद यही वजह है की सुरक्षा से समझौता करते हुए सरकार ने 1962 से यात्रियों के लिए प्रतिबंधित उत्तरकाशी जिले की हर्षिल और गंगोत्री नेशनल पार्क को सभी देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए खोल दिया है. इसकी अनुमति बाकायदा गृह मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा भी दे दी गई है. इस बेहद तनावपूर्ण माहौल में ये चिंतन करने का विषय है क्योंकि जिस तरह के हालात इस समय बने हुए हैं, उसे देखकर पर्यटन नहीं बल्कि सीमा सुरक्षा की तरफ ध्यान देने की जरूरत है.

नेलांग घाटी जाने के लिए मिल गई इजाजत

गृह मंत्रालय ने 19 जून को इस आशय के आदेश जारी कर दिए हैं. इसी के साथ अब विदेशी सैलानी भी प्रशासन की अनुमति से भारत-चीन सीमा पर स्थित नेलांग घाटी की सैर कर सकेंगे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बने हालात के मद्देनजर भारत सरकार ने उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया था और तभी से नेलांग घाटी व जाडुंग गावं को खाली करवा कर वहां अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था.

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यहां के गांवों में रहने वाले लोगों को एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद साल में एक ही बार अपने देवी-देवताओं को पूजने की इजाजत दी जाती रही है. इसके बाद भारत के आम लोगों को भी नेलांग घाटी तक जाने की इजाजत गृह मंत्रालय भारत सरकार ने 2015 में दे दी थी, हालांकि विदेशियों पर प्रतिबंध बरकरार रहा.

रात बिताने की अनुमति नहीं

अप्रैल माह में जिला प्रशासन ने इनर लाइन के संबंध में शासन को विस्तृत रिपोर्ट भेजी. प्रशासन के दस्तावेज भेजने के बाद गृह मंत्रालय द्वारा आदेश जारी कर दिए गए. आदेश के मुताबिक इनर लाइन अब हर्षिल कस्बे से 50 मीटर दूर होगी. हालांकि इसको स्थानीय प्रशासन ही चिह्नित करेगा. आदेश के अनुसार देशी-विदेशी सैलानी नेलांग घाटी जा तो सकेंगे, लेकिन इनर लाइन क्षेत्र में उन्हें रात बिताने की अनुमति नहीं होगी. उत्तरकाशी से 75 किलोमीटर दूर हर्षिल के इनर लाइन से बाहर होने से पर्यटक यहां ठहर सकेंगे.

क्या ये सही निर्णय है?

कुछ समय पहले तक उत्तरकाशी में तैनात ITBP के एक बड़े अधिकारी का कहना है कि किसी भी हाल में पर्यटक स्थल बनाना इस घाटी की सुरक्षा से समझौते के बराबर होगा. अगर वाकई ये आम पर्यटकों और विदेशी पर्यटकों के लिए खोल दिया गया तो ये अच्छे संकेत नहीं होंगे. अभी हम सिर्फ बॉर्डर की सुरक्षा में ही दिन रात लगे हैं, पर इस अनुमति के बाद तो फिर हमारा ध्यान उन पर्यटकों पर भी होगा जो यहां घूमने आएंगे. अब ऐसे हालात में सुरक्षा ज्यादा जरूरी होगी या फिर पर्यटकों की मौजमस्ती के लिए दी जाने वाली अनुमति.

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क्या कहते हैं अब गावं वाले?

पर्यटन की अनुमति मिलने के बाद गावं वाले अब और भी मांग कर रहे हैं. गांव के लोगों का कहना है कि जब भारत-चीन की लड़ाई हुई थी, उसी समय वे अपना घर छोड़ कर हर्षिल आ गए थे. अब पर्यटन के लिए नेलांग वेली को खोल दिया गया है, लेकिन उन्हें ढाबा खोलने की अनुमति नहीं है, अब यात्री आएंगे तो उन्हें सुविधाएं भी उपलब्ध करानी होंगी. गांव वालों की सरकार से मांग है कि जब पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा रहा है तो व्यवसाय की खुली छूट भी मिलनी चाहिए.

क्या है इनर लाइन?

दूसरे देशों की सीमाओं के नजदीक स्थित वह क्षेत्र, जो सामरिक दृष्टि से महत्व रखता हो,  इनर लाइन घोषित किया गया है. इस क्षेत्र में सिर्फ स्थानीय लोग ही प्रवेश कर सकते हैं. उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले के अलावा चमोली व पिथौरागढ़ जिलों में भी चीन की सीमा से लगे इनर लाइन क्षेत्र हैं.

 

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