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मोदी सरकार ने तीन तलाक बिल को लोकसभा से पारित कराने के बाद बुधवार को राज्यसभा में पेश कर दिया. हालांकि यहां उसे इस बिल को पारित कराने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी के नेतृत्व वाली राजग केंद्र के साथ ही 19 राज्यों की सत्ता पर काबिज है, लेकिन राज्यसभा में उसके पास बहुमत नहीं है, जिसके चलते विपक्षी दल कांग्रेस के सामने मोदी सरकार लाचार नजर रही है.
राज्यसभा से तीन तलाक बिल को पारित कराने के लिए बीजेपी को दूसरे दलों के साथ की जरूरत है. 245 सदस्यीय राज्यसभा में राजग के 88 सांसद (बीजेपी के 57 सांसद सहित), कांग्रेस के 57, सपा के 18, BJD के 8 सांसद, AIADMK के 13, तृणमूल कांग्रेस के 12 और NCP के 5 सांसद हैं.
अगर सरकार को अपने सभी सहयोगी दलों का भी साथ मिल जाता है, तो भी बिल को पारित कराने के लिए कम से कम 35 और सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी. इस बिल का बीजू जनता दल (BJD), AIADMK, सपा और तृणमूल कांग्रेस समेत कई राजनीतिक पार्टियां विरोध कर रही हैं. कांग्रेस इस बिल में संशोधन करने और प्रवर समिति (सेलेक्ट कमेटी) के पास भेजने की मांग पर अड़ी हुई है.
बुधवार को कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने तीन तलाक बिल पर संशोधनों का प्रस्ताव रखा. सरकार बिना किसी संशोधन के इसे सदन से पास कराना चाह रही है, जिसके बाद जमकर हंगामा हुआ और उपसभापति ने कार्यवाही गुरुवार तक स्थगित कर दी. इससे पहले मोदी सरकार ने तीन तलाक बिल को लोकसभा में बिना संशोधन के पारित करा लिया था.
आनंद शर्मा ने विपक्षी पार्टियों के सदस्यों के नाम उपसभापति को दिए, जो प्रवर समिति में होंगे. इनमें तीन कांग्रेस के थे. शर्मा ने कहा कि सरकार अपने सदस्यों के नाम सुझाए. कांग्रेस नेता का कहना था कि ये प्रवर समिति बजट सत्र के दौरान अपने सुझाव सौंपेगी. उनका कहना था कि सरकार पहले संशोधनों को स्वीकार करें और फिर बिल को प्रवर समिति को भेजें.
SC ने सरकार को कानून बनाने के लिए दिया था 6 माह का समय
तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को सुप्रीम कोर्ट पहले ही असंवैधानिक करार दे चुकी है. 22 अगस्त को शीर्ष अदालत की पांच जजों की बेंच ने बहुमत से तीन तलाक को असंवैधानिक और गैर कानूनी बताया था. साथ ही मोदी सरकार से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने को कहा था. लोकसभा और राज्यसभा में तीन तलाक बिल पर चर्चा के दौरान भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया.