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मुस्लिम औरतों को आजादी, हिंदू, ईसाई और सिख महिलाओं का क्या?

2011 जनगणना के मुताबिक 23 लाख महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें बिना तलाक के ही छोड़ दिया गया है. इनमें सबसे ज्यादा संख्या हिंदू महिलाओं की है. मुस्लिम महिलाओं की संख्या बहुत कम है. करीब 20 लाख ऐसी हिंदू महिलाएं हैं, जिन्हें अलग कर दिया गया है या छोड़ दिया गया है. मुस्लिमों में ये संख्या 2 लाख 8 हजार, ईसाइयों में 90 हजार, और दूसरे अनय धर्मों  की 80 हजार महिलाएं हैं, जिन्हें बिना तलाक के अलग या छोड़ दिया गया है.

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 29 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 3:55 PM IST

मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से आजादी के लिए बीड़ा उठाया है. इसी कड़ी में केंद्र सरकार ने गुरुवार को तीन तलाक को जुर्म घोषित करने और सजा मुकर्रर करने संबंधी विधेयक को बिना किसी संसोधन के लोकसभा से पारित कराकर पहली मंजिल पार कर ली है. अब सरकार इस विधेयक को राज्यसभा में पारित कराने की पूरी कोशिश में जुटी हुई है.

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पर अब सवाल उन महिलाओं का भी है जो परित्यक्ता हैं. सवाल यह उठता है कि मोदी सरकार बिन तलाक छोड़ दी गई महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लिए कब कदम उठाएगी? देश में अलग की गई (परित्यक्त) औरतों की तादाद तलाकशुदा महिलाओं की संख्या से दोगुने से ज्यादा है.

इन्हें कब मिलेगा हक?

बेशक मोदी सरकार मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से निजात दिलाने के लिए लोकसभा में विधेयक पारित कराकर इसे देश के लिए ऐतिहासिक बता रही है, लेकिन हिंदू, ईसाई, सिख सहित अन्य धर्म की महिलाओं के हक में इंसाफ के लिए किसी तरह का कोई कदम उठती हुई नजर नहीं आ रही है. जबकि हकीकत यह है कि देश में तलाकशुदा महिलाओं से बड़ी समस्या उन महिलाओं की है, जिन्हें परित्यक्त कर दिया गया है.

अनुमान से कहीं ज्यादा बड़ी हैं इन महिलाओं की मुश्किल

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साल 2011 की जनगणना के मुताबिक 23 लाख महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें बिना तलाक के ही छोड़ दिया गया है. इनमें सबसे ज्यादा संख्या हिंदू महिलाओं की है, जबकि मुस्लिम महिलाओं की संख्या काफी कम है. देश में करीब 20 लाख ऐसी हिंदू महिलाएं हैं, जिन्हें अलग कर दिया गया है और बिना तलाक के ही छोड़ दिया गया है. वहीं, मुस्लिमों में ये संख्या 2 लाख 8 हजार, ईसाइयों में 90 हजार और दूसरे अन्य धर्मों  की 80 हजार महिलाएं हैं. ये महिलाएं बिना पति के रहने को मजबूर हैं.

भयावह हैं ये आंकड़े

अगर बिना तलाक के अलग कर दी गईं और छोड़ी गई औरतों की संख्या का औसत देखें, तो हिंदुओं में 0.69 फीसदी, ईसाई में 1.19 फीसदी, 0.67 मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यों (जैन, सिख, पारसी, बौद्ध)  में 0.68 फीसदी है. इस तरह से देखा जाए तो मुस्लिमों में बिना तलाक के छोड़ी गई महिलाएं दूसरे धर्म की तुलना में काफी कम है.

न मायके में ठिकाना, न ससुराल में पूछ

इन परित्यक्ता के हालत काफी दयनीय है. ये महिलाओं के दर दर के ठोकरे खाने के लिए मजबूर हैं. इन्हें अपने ससुराल और मायके दोनों जगह मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. इनको दोनों जगह से ठुकराया जा रहा है. कोई भी इनको अपनाने तक को तैयार नहीं है. इनकी  चिंता न तो सत्ताधारी बीजेपी को है और न ही विपक्षी दलों को. जबकि इन महिलाओं को पति के रहते हुए भी दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है.

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कौन उठाएगा इनकी आवाज?

पीएम मोदी को मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से निजात दिलाने के लिए 15 अगस्त के मौके पर लाल किले की प्राचीर से भी ऐलान करना पड़ा था. उन्होंने कहा था कि धर्म और समुदाय के नाम पर हमारी मांओं और बहनों के साथ किसी भी तरह का अन्याय नहीं होना चाहिए. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर क्या इन 20 लाख परित्यक्त हिंदू महिलाओं के लिए इंसाफ की चिंता मोदी सरकार को नहीं करनी चाहिए?

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