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ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल से मुश्किल में फंसें, तो ऐसे करें केस, मिलेगा मुआवजा

लॉ प्रोफेसर विवेक त्यागी का यह भी कहना है कि हड़ताल की आड़ में कोई संगठन किसी दूसरे व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं कर सकता है. अगर हड़ताल से किसी के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह हड़ताल करने वाले संगठन के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट और अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता है.

ट्रैफिक नियम बदलने के बाद कट रहे ज्यादा चालान (प्रतीकात्मक तस्वीर) ट्रैफिक नियम बदलने के बाद कट रहे ज्यादा चालान (प्रतीकात्मक तस्वीर)
राम कृष्ण
  • नई दिल्ली,
  • 19 सितंबर 2019,
  • अपडेटेड 10:05 AM IST

नए मोटर व्हीकल एक्ट के खिलाफ यूनाइटेड फ्रंट ऑफ ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन हड़ताल कर रही है. इसके चलते दिल्ली - एनसीआर समेत कई जगह लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. अगर आप भी कहीं जा रहे हैं और अगर हड़ताल की वजह से आपको दिक्कत का सामना करना पड़ा रहा है, तो आप इसके लिए केस कर सकते हैं और मुआवजे का दावा कर सकते हैं.

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इस बारे में लॉ प्रोफेसर विवेक त्यागी का कहना है कि भारत में इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट के तहत यूनियन को हड़ताल का कानूनी अधिकार दिया गया है. हालांकि यह मौलिक अधिकार नहीं है. इसका मतलब यह हुआ कि ट्रांसपोर्ट संगठनों को हड़ताल करने का मौलिक अधिकार नहीं है. यह सिर्फ उनका कानूनी अधिकार है, वो भी कुछ प्रतिबंधों के साथ दिया गया है.

लॉ प्रोफेसर विवेक त्यागी का यह भी कहना है कि हड़ताल की आड़ में कोई संगठन किसी दूसरे व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं कर सकता है. अगर हड़ताल से किसी के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह हड़ताल करने वाले संगठन के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट और अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता है.

इसके अलावा हड़ताल के लिए पहले से नोटिस भी देना होता है. इसके अलावा इमरजेंसी सुविधाओं को भी नहीं बाधित किया जा सकता है.

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इस मामले में एडवोकेट रोहित श्रीवास्तव का कहना है कि हड़ताल की आड़ में कोई संगठन या व्यक्ति मनमानी या तोड़-फोड़ या फिर किसी की आवाजाही बाधित नहीं कर सकता है.

अगर हड़ताल करने वाले संगठन किसी को बिना वजह परेशान करते हैं या हिंसा फैलाते हैं, तो उनके खिलाफ सिविल और क्रिमिनल दोनों केस किए जा सकते हैं. सिविल केस करने पर पीड़ित को मुआवजा मिलता है, जबकि क्रिमिनल केस करने पर हड़ताल करने वाले संगठन और उसके सदस्यों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जाती है.

एडवोकेट श्रीवास्तव का कहना है कि कानून व्यवस्था,  भारत की संप्रभुता और किसी यह मौलिक अधिकारों को नुकसान पहुंचाने वाली हड़ताल गैरकानूनी होती है. इसका मतलब यह है कि किसी संगठन को कानून व्यवस्था या भारत की संप्रभुता या किसी के मौलिक अधिकारों के खिलाफ जाकर हड़ताल करने की इजाजत नहीं होती है. गैरकानूनी या हिंसक हड़ताल के खिलाफ पुलिस खुद भी कार्रवाई कर सकती है.

इसके अलावा एडवोकेट शोभित भारद्वाज का कहना है कि कानूनों का पालन करते हुए शांतिपूर्वक हड़ताल की जा सकती लेकिन अगर हड़ताल से आम लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है तो ऐसी हड़ताल के खिलाफ केस किया जा सकता है. कई बार अपनी बात को मनवाने के लिए हड़ताल करनी पड़ती है.

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हालांकि हड़ताल का मकसद किसी को परेशान करना नहीं होना चाहिए. खासकर इससे आम लोगों को ज्यादा दिक्कत नहीं होनी चाहिए. अगर हड़ताल के दौरान चक्का जाम किया जाता है और लोगों को दिक्कतें होती हैं, तो यह गैरकानूनी माना जा सकता है.

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