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आरक्षण बिल: थावरचंद गहलोत को भी SC का डर, लेकिन पास होने की उम्मीद

Uppercaste Reservation Bill Parliament मोदी सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी आरक्षण की जो सीमा निर्धारित की है, वह जाति आधारित आरक्षण को लेकर थी. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सदन में चर्चा के दौरान इस पर तफ्सील से जानकारी दी.

संसद में संविधान संशोधन बिल पर चर्चा संसद में संविधान संशोधन बिल पर चर्चा
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 6:12 PM IST

सामान्य वर्ग के गरीब भारतीयों को 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था के मद्देनजर मंगलवार को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने लोकसभा में संविधान संशोधन बिल पेश किया. बिल पर चर्चा के दौरान थावरचंद गहलोत ने सदन को बताया कि अगर उनके फैसले के खिलाफ कोई सुप्रीम कोर्ट में भी जाता है तो यह निर्णय निरस्त नहीं हो पाएगा और गरीब सवर्ण आरक्षण का लाभ ले पाएंगे.

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सोमवार को मोदी कैबिनेट के फैसले के बाद से ही राजनीतिक दलों समेत तमाम विशेणज्ञों की तरफ से कहा जा रहा है कि सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीबों को अलग से 10 फीसदी आरक्षण देने का जो फैसला किया गया है, वह सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो जाएगा, क्योंकि यह संविधान के खिलाफ है. इसी बिंदु पर सफाई देते हुए थावरचंद गहलोत ने बताया कि पहले सरकारों द्वारा किए गए इस तरह के प्रयास सुप्रीम कोर्ट ने इसलिए निरस्त हुए हैं, क्योंकि उन सरकारों ने संविधान में संशोधन किए बिना वो फैसले लिए थे.

यह तर्क देते हुए थावरचंद गहलोत ने भरोसा जताया और कहा कि हमने सोच समझकर यह निर्णय लिया है. उन्होंने कहा, 'हमारी सरकार ने सोच समझकर यह निर्णय लिया है और संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किए हैं. जो सदन में पारित होने जा रहे हैं. इसके बाद यह अधिनियम बनेगा, फिर यह प्रावधान लागू होंगे.'

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थावरचंद गहलोत ने कहा कि प्रावधान लागू होने के बाद अगर कोई इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी जाता है तो मेरा मानना है सुप्रीम कोर्ट उनकी बात को अस्वीकार करेगा और सरकार का निर्णय मान्य हो जाएगा. जिससे देश का हर वह गरीब नागरिक जो ओबीसी और एससी-एसटी आरक्षण का लाभ नहीं पा रहा है, उसे इसका फायदा मिलेगा.

बता दें कि केंद्र सरकार से लेकर कई राज्य सरकारें अतीत में इस तरह के फैसले ले चुकी हैं, जो सुप्रीम कोर्ट में जाकर खारिज हो गए हैं. पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का निर्णय लिया था, जिसे 1992 में कोर्ट ने निरस्त कर दिया था. गुजरात और राजस्थान में इस तरह के प्रयास हुए हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय कर रखी है.

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