
पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में सोमवार रात को चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद अब बॉर्डर को अलर्ट मोड पर रहने को कहा गया है. उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले की नेलांग, जुंग, नागा, त्रिपाठी, मैंडी, शिमला, पीडीएफ, थांगला 1, थांगला 2 हमारे देश की ऐसी सीमा चौकियां हैं, जहां हिमवीर चौबीसों घंटे एक सजग प्रहरी के रूप में देश की सुरक्षा के लिए चौकन्ने रहते हैं.
उत्तराखंड की 345 किलोमीटर सीमा चीन से लगी है. जिसमें कि 122 किलोमीटर अकेले उत्तरकाशी जिले में आता है. सामरिक दृष्टि से ये जिला संवेदनशील है क्योंकि जिला मुख्यालय से महज 129 किलोमीटर दूर पर बॉर्डर एरिया आता है.
बॉर्डर एरिया के 75 वर्षीय बुजुर्ग सेवक राम भंडारी ने आजतक को बताया कि 1961 तक बॉर्डर पर कोई भी सैन्य टुकड़ियां नहीं होती थीं, बल्कि बॉर्डर की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्पेशल प्रोटेक्शन फोर्स (SPF) और पुलिस के जिम्मे ही होती थी. तब सुमला और नेलांग के पास पुलिस चेकपोस्ट हुआ करती थी. जिसमें एक CPO (चेकपोस्ट ऑफिसर) ,1 दीवान और 06 सिपाही हुआ करते थे. इनके पास हाथ से घुमाकर चलने वाला एक वायरलेस सेट होता था.
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रामसेवक ने चिन्यालीसौड़ के एक CPO हुकुम सिंह के संस्मरण को साझा करते हुए बताया कि 1962 में कुछ चीनी सैनिक दिवाली के दौरान सुमला तक आ पहुंचे थे. वे लोग तिब्बती व्यापारियों के साथ याक के ऊपर अपना सामान बांधकर हमारी सीमा में घुस आए थे. नागा पोस्ट में एक पुल के पास चेकिंग के दौरान कंपनी कमांडर जगबीर सिंह को जब शक हुआ तो उन्होंने रायफल तान ली और चीनी सैनिकों के साथ झड़प हो गयी. आखिरकार उन्हें वापस खदेड़ दिया गया.
1962 के युद्ध के बाद इस बॉर्डर क्षेत्र में जादूंग ओर नेलांग गांव को खाली करा लिया गया था. जिसके ग्रामीण अब बागोरी ओर डुंडा गांव में निवास करते हैं. सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस इलाके के चप्पे-चप्पे में सेना और भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के जवान मौजूद रहते हैं. साथ ही उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर हवाई पट्टी को सुदृढ़ किया गया है. इस हवाई पट्टी से बॉर्डर तक की हवाई दूरी 126 किलोमीटर है, जिसमें वायुसेना के विमान परिक्षण करते रहते हैं.
वहीं अगर सड़क मार्ग की बात करें तो बॉर्डर तक 41 किलोमीटर तक की सड़क पूरी तरह तैयार है. हमारे जवान और भौगोलिक स्थिति पूरी तरह से चीन का मुकाबला करने में सक्षम हैं.
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वहीं अगर 1962 के युद्ध से पहले कि बात करें तो उत्तरकाशी जिले के लोग और तिब्बती दैनिक वस्तुओं का आदान-प्रदान किया करते थे. तिब्बती लोग अपने याक ओर भेड़ों के ऊपर चमड़े से बने वस्त्र, खिलौने आदि उत्तरकाशी लाते थे और तेल तम्बाकू, दालें आदि वस्तुएं यहां से लेकर जाते थे. इन वस्तुओं का मूल्य नहीं होता था बल्कि वस्तु विनिमय के आधार पर मोल-भाव होता था.