
क्या भारत में होने वाले दुष्कर्म (रेप) के ज्यादातर अपराधों के लिए मुस्लिम ही जिम्मेदार हैं? सोशल मीडिया पर कुछ लोगों के दावे के मुताबिक 2016-2018 में भारत में रेप के जितने मामले रिपोर्ट हुए उनमें से 95 फीसदी मामलों में आरोपी मुस्लिम समुदाय से थे.
कुछ दिन पहले ‘थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन’ की ओर से जारी एक सर्वे काफी विवादित हुआ था. इस सर्वे को लेकर देश में कुछ वर्गों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया भी जताई गई थी. इस सर्वे में ये निष्कर्ष निकालने की गई कोशिश की गई थी कि यौन उत्पीड़न या रेप जैसी घटनाओं को लेकर भारत दुनिया का सबसे खतरनाक देश है.
अभी उस सर्वे पर बवाल खत्म भी नहीं हुआ है कि अब देश में सोशल मीडिया पर कुछ लोग भारत में रेप के अधिकतर मामलों के लिए एक समुदाय विशेष के लोगों को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं.
कुछ आंकड़ों के जरिए रेप जैसे मानवता को शर्मसार करने वाले अपराध को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है. ट्विटर पर महेश विक्रम हेगड़े को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी फॉलो करते हैं.
हेगड़े पोस्टकार्ड न्यूज नाम की वेबसाइट के सह संस्थापक है और फेक न्यूज के मामले में मार्च 2018 में जेल भी जा चुके हैं. हेगड़े समेत कुछ लोगों ने ट्वीट के जरिए दावा किया है कि 2016-2018 में भारत में 84,734 रेप के मामले दर्ज हुए और इनमें 81,000 मामलों मेंआरोपी मुस्लिम समुदाय से थे. साथ ही कहा गया है कि ऐसे मामलों में पीड़ित महिलाओं में 96 फीसदी गैर मुस्लिम थीं.
आंकड़ों के साथ दावा करने वालों ने ये भी लिखा है कि देश में मुस्लिम समुदाय को उतना खतरा नहीं जितना हिंदुओं को है. हेगड़े का ट्वीट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फैलाया जा रहा है.
इस तरह के ट्वीट के दावों पर सवाल उठाते हुए सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया जताने वालों की भी कमी नहीं हैं.
इंडिया टुडे वायरल टेस्ट टीम ने हेगड़े को फोन कर जब ट्वीट में दिए गए आंकड़ों पर जानकारी लेनी चाही और साथ ही सवाल किया कि इन आंकड़ों का सोर्स क्या है तो हेगड़े ने जवाब दिया- ‘ये आंकड़े सही है लेकिन मैं सोर्स नहीं बताऊंगा.’
वायरल टेस्ट टीम ने जब राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो की वेबसाइट को खंगाला तो पता चला कि वहां 2016 तक के ही आंकड़े उपलब्ध हैं. ब्यूरो की साइट पर जब ये देखने की कोशिश की गई क्या उसकी ओर से धर्म के आधार पर किसी अपराध के आंकड़े रखे जाते हैं तो सामने आया कि वहां रेप के मामलों में सिर्फ इन आधार पर ही आंकड़े उपलब्ध हैं. पहला- पीड़ितों की उम्र के आधार पर. दूसरा - क्या आरोपी पीड़ितों के पहले से परिचित थे?
पीड़ित महिलाओं का आंकड़ा अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति के आधार पर तो उपलब्ध तो है लेकिन धर्म के आधार पर नहीं है.
वारयल टेस्ट में यह जाहिर हुआ है कि सोशल मीडिया पर कुछ लोगों की ओर से मनगढ़ंत आंकड़े शेयर किए जा रहे हैं, जो आधिकारिक नहीं हैं. रेप के जघन्य अपराध को धर्म से जोड़कर सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है.