
सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्ट की भरमार देखी जा सकती है जिनमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की छवि आजादी से पहले ब्रिटिश हुकूमत के चाटुकार के तौर पर पेश करने की कोशिश की जा रही है.
फेसबुक पर एक ब्लैक-एंड-व्हाइट फोटो शेयर किया जा रहा है जिसमें कथित तौर पर संघ कार्यकर्ताओं को रानी एलिजाबेथ द्वितीय को सलामी देते देखा जा सकता है.
फोटो के साथ लिखा है- रानी को सलामी देते (RSS)…..अंग्रेजों के गुलाम
फोटो के साथ जो लिखा है वो संघ को उपनिवेशी शासकों के ‘दास’ के रूप में दिखाकर उसकी छवि खराब करने की कोशिश है. फोटो के साथ लिखा गया है- “देश की आजादी के पहले की ये तस्वीर गवाही दे रही है. जब देश के लोग आजादी के लिए ल़ड़ रहे थे तो ये लोग अंग्रेजों को ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ दे रहे...”
इंडिया टुडे वायरल टेस्ट के तहत फोटो का फैक्ट-चेक किया गया तो पूरा सच सामने आया.
पहला, ऐतिहासिक तथ्य : एलिजाबेथ द्वितीय की ताजपोशी 6 फरवरी,1952 को हुई थी जो कि भारत को आजादी मिलने के करीब साढ़े चार साल के बाद का वाकया है. रानी के तौर पर एलिजाबेथ द्वितीय पहली बार 1961 में भारत आई थीं.
ये तथ्य अपने आप में पर्याप्त है बताने के लिए कि फोटो का जो आजादी से पहले का बता कर जो दावा किया गया है वो गलत है.
वायरल टेस्ट के तहत आगे पड़ताल की गई तो संघ के खिलाफ ऑनलाइन पोस्ट करने वालों की फोटोशॉपिंग के जरिए की गई फोटो से छेड़छाड़ पकड़ में आई. इस फोटो को दो साल पहले भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फैलाया गया था. उस वक्त एबीपी और SM Hoax Slayer जैसी वेबसाइट्स ने फोटो की छेड़छाड़ को पकड़ा था.
दरअसल, फोटो में सलामी देते लोग संघ कार्यकर्ता नहीं बल्कि नाइजीरियाई सैनिक हैं. फोटो में फोटोशॉप से संघ कार्यकर्ताओं को सुपरइम्पोज कर दिया गया है. एलिजाबेथ द्वितीय 1956 में काडुना एयरपोर्ट पहुंची थीं तो नाइजीरियाई सैनिकों ने उन्हें सलामी दी थी.
मूल तस्वीर में एलिजाबेथ द्वितीय को तब नाम बदली हुई क्वीन्स ओन नाइजीरिया रेजीमेंट, रॉयल वेस्ट अफ्रीकन फ्रंटियर फोर्स की ओर से गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया था.
फेसबुक पर अपलोड की गई फोटो में सुपरइम्पोज करके संघ कार्यकर्ताओं की तस्वीर लगाई गई.
(फोटो- संघ संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार)
वायरल टेस्ट से साफ हुआ कि फोटोशॉपिंग करके जो तस्वीर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सर्कुलेट की गई, उसका मकसद संघ को ब्रिटिश हुकूमत के समर्थक संगठन के तौर पर दिखाना था.