
अगस्ता वेस्टलैंड मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रहा प्रवर्तन निदेशालय गुरुवार को एक बार फिर पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी से पूछताछ करेगा. ईडी ने इससे पहले बुधवार को रियल्टी फर्म एम्मार-एमजीएफ के मालिक से भी पूछताछ की है, वहीं इन सब के बीच एक नई बात सामने आई है, जो खुद ईडी की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है. बताया जाता है कि एजेंसी खुद पहले मामले की मनी लॉन्ड्रिंग (पीएमएलए) के तहत जांच को उत्सुक नहीं थी.
अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की खबर के मुताबिक, 'दिसंबर 2013 में सीबीआई की ओर से दायर एफआईआर की कॉपी मिलने के 7 महीने बाद तक ईडी ने अगस्ता मामले में कोई कार्रवाई नहीं की थी. यही नहीं, तब एजेंसी के शीर्षस्थ अधिकारियों ने फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत मामले की जांच की सिफारिश की थी.'
बता दें कि फेमा के तहत किया जांच सिविल अपराधों की श्रेणी में आता है. इसके तहत पिछले साल तक सिर्फ जुर्माने की व्यवस्था थी. लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार के आने के बाद इसमें संशोधन कर प्रवर्तन निदेशालय को फेमा के तहत संपत्ति अटैच करने और संदिग्धों की जांच का भी अधिकार दिया गया है.
दो रिमाइंडर और 7 महीने की देरी
वीवीआईपी चॉपर डील केस में सीबीआई ने 14 मार्च 2013 को एफआईआर दर्ज की थी. सीबीआई और पुलिस एफआईआर को आधार बनाकर पीएमएलए के तहत केस दर्ज करने के लिए ईडी ने जांच एजेंसी से एफआईआर की कॉपी मांगी थी. लेकिन बताया जाता है कि दो बार रिमाइंडर भेजने के 7 महीने बाद सीबीआई ने ईडी को एफआईआर की कॉपी भेजी थी. जबकि दिसंबर 2013 में कॉपी मिलने के 7 महीने बाद तक ईडी ने मामले में जांच को लकर कोई निर्णय नहीं किया.
केस को कमजोर करने की कोशिश!
बताया जाता है कि तब ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारियों ने मामले की फाइल पर लिखित रूप में FEMA के तहत जांच शुरू करने की सिफारिश की थी. सूत्र बताते हैं कि ऐसा मामले को कमजोर करने की कोशिश के तहत किया गया. हालांकि बाद में जब ईडी के ही एक अन्य शीर्षस्थ अधिकारी ने मामले की मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत जांच की वकालत की, तब जाकर PMLA एक्ट के तहत 03 जुलाई 2014 को एफआईआर दर्ज की गई.
गौरतलब है कि एम्मार-एमजीएफ के मालिक श्रवण गुप्ता दलाली की रकम लेने के आरोपी हैं. यही नहीं, मामले में कथित बिचौलिया गुइदो हाश्को सितंबर 2009 से दिसंबर 2009 तक गुप्ता की कंपनी में इंडिपेंडेंड डायरेक्टर रह चुका है. मामले में एक और आरोपी गौतम खेतान भी कुछ समय के लिए एम्मार-एमजीएफ के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल रहे हैं.