Advertisement

और बढ़ी राफेल की कीमत, गिरते रुपये ने 6400 करोड़ रुपये महंगी की डील

राफेल लड़ाकू विमान की कीमत को लेकर मचे सियासी घमासान के बीच सौदे की रकम और बढ़ गई है. लुढ़कते रुपये का असर अब इस डील  पर भी पड़ा है.

राफेल विमान (फाइल फोटो: पीटीआई) राफेल विमान (फाइल फोटो: पीटीआई)
विवेक पाठक/मंजीत नेगी
  • नई दिल्ली,
  • 23 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 7:33 PM IST

भारतीय मुद्रा के गिरते स्तर का असर फ्रांस के साथ हुए राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर भी पड़ा है. 59,600 करोड़ रुपये में हुए राफेल विमान सौदे की कीमत 6,400 करोड़ रुपये बढ़कर 66,000 करोड़ हो गई है.   

दरअसल सितंबर 2016 में यूरोपीय मुद्रा यूरो के हिसाब से फ्रांस के साथ राफेल विमान का सौदा 7.89 बिलियन यूरो में हुआ था, जो भारतीय रुपये के हिसाब से 59,600 करोड़ रुपये था. लेकिन यूरो के मुकाबले रुपये के गिरते स्तर की वजह से इसकी कीमत अब 66,000 करोड़ रुपये हो गई है. कीमतें बढ़ना का असर राफेल डील के ऑफसेट करार पर भी पड़ा है. जिसके तहत अनिल अंबानी समेत दसॉ के साथ ऑफसेट करार करने वाली अन्य कंपनियों का हिस्सा भी बढ़ जाएगा.  

Advertisement

आपको बता दें कि राफेल फाइटर जेट डील भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच सितंबर 2016 में हुई थी. जिसके तहत भारतीय वायुसेना को 36 अत्याधुनिक लड़ाकू विमान मिलेंगे. कांग्रेस इस सौदे में में भारी करप्शन का आरोप लगा रही है और कह रही है कि सरकार 1670 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर से राफेल खरीद रही है जबकि यूपीए के समय इस सौदे पर बातचीत के दौरान इस विमान की कीमत 526 करोड़ रुपये प्रति राफेल तय हुई थी.

गौरतलब है कि कांग्रेस लगातार सरकार पर विमान की कीमतों के बारे में जानकारी मांग रही है लेकिन सरकार की तरफ से गोपनीयता का हवाला देकर राफेल लड़ाकू विमान की कीमत बताने से इनकार किया जाता रहा है.

कीमतों के अलावा राफेल डील पर कांग्रेस का मुख्य आरोप सरकारी कंपनी हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के साथ सौदा रद्द कर अनिल अंबानी की कंपनी और दसॉ के बीच हुए ऑफसेट करार को लेकर केंद्रित है. कांग्रेस के इस आरोप को फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद के हालिया बयान से और बल मिल गया.

Advertisement

उल्लेखनीय है कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के उस बयान ने देश में सियासी भूचाल ला दिया है जिसमें उन्होंने दावा किया है कि अनिल अंबानी की कंपनी का नाम भारत की तरफ से आगे बढ़ाया गया. जबकि फ्रांस की सरकार और दसॉ की तरफ से बयान जारी कर कहा गया है कि ऑफसेट करार में सरकार का कोई योगदान नहीं है और कंपनी अपनी निजी पार्टनर चुनने के लिए स्वतंत्र है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement