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पश्चिम बंगाल में एक तरफ बीजेपी अपना वजूद बढ़ाने में जुटी है, तो वहीं कांग्रेस अपनी एक खास समस्या से लगातार परेशान है. दरअसल, राहुल गांधी के सामने बड़ी समस्या है कि 2019 के लिए गठजोड़ लेफ्ट से हो या तृणमूल से.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद अधीर रंजन चौधरी लेफ्ट के साथ तालमेल के पक्षधर हैं, तो वहीं पार्टी के ज्यादातर विधायक और सांसद ममता के साथ गठजोड़ चाहते हैं. इसी बीच कांग्रेस के नेताओं का तृणमूल कांग्रेस में ज्वाइन होना थम नहीं रहा. 21 जुलाई को कोलकाता में होने वाली रैली में भी कई कांग्रेसी तृणमूल का हाथ थामने वाले हैं.
इससे पहले कई विधायक और एक सांसद खुलकर राहुल को अल्टीमेटम दे चुके हैं कि, ममता से साथ गठजोड़ हो वरना वो तृणमूल में शामिल हो जाएंगे. अब 21 जुलाई नजदीक आ रही है, इसी से परेशान बंगाल कांग्रेस के सांसद और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सुपुत्र अभिजीत मुखर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाकात की.
सूत्रों के मुताबिक, संसद भवन परिसर में कांग्रेस दफ्तर में हुई इस मुलाकात में अभिजीत एक खास प्रस्ताव लेकर आए थे, जिसमें उनकी चिंता साफ झलक रही थी. अभिजीत ने सोनिया से कहा कि, सबसे पहले ममता बनर्जी के साथ एक समझौता हो, जिसके तहत वो कांग्रेस पार्टी में तोड़-फोड़ ना करें. अभिजीत ने सोनिया को सीधे कहा- तृणमूल के साथ हो 'NO Poaching Agreement'. लेकिन सोनिया ने अभिजीत की बात सुनते ही तपाक से जवाब दिया, 'मैंने तो सुना है कि, जो नेता तृणमूल में जा रहे हैं वो अपनी मर्जी से जा रहे हैं. इसके बाद मुखर्जी चुपचाप सोनिया से मिलकर निकल गए.
बता दें कि लेफ्ट के साथ तालमेल करके विधानसभा चुनाव लड़ी कांग्रेस अर्से बाद राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई थी. लेकिन केंद्र की राजनीति के चलते कभी उसको लेफ्ट, तो कभी तृणमूल के साथ के लिए देखना पड़ता रहा है. इसी का फायदा उठाकर बीजेपी मुख्य विपक्षी की भूमिका हथियाना चाहती है. ऐसे में कांग्रेसी तृणमूल का रुख करते रहे हैं. अब तक कांग्रेस के 12 विधायक कांग्रेस छोड़ तृणमूल का दामन थाम चुके हैं. इसके पहले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष मानस भुइयां भी तृणमूल में चले गए, जिनको हाल में ममता ने राज्यसभा का सांसद बना दिया.
कांग्रेसियों के तृणमूल में जाने की बात पर प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन ने कहा, 'ममता दबाव और लालच दोनों तरीकों का इस्तेमाल कर कांग्रेस को राज्य में खत्म करना चाहती हैं. हालांकि, साथ ही वो ये भी कहते हैं कि, आज के दौर में केंद्र की बड़ी राजनीति के लिहाज से समझौते के मसले पर आलाकमान जो भी फैसला करेगा, हम वो मानेंगे.'