
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के कई विधायक टीएमसी का दामन थामने के लिए बेताब हैं. राज्य में पार्टी को टूट से बचाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जुट गए हैं. अमेठी के दो दिवसीय दौरे से लौटने के बाद आज राहुल गांधी दिल्ली में पश्चिम बंगाल कांग्रेस के नेताओं संग बैठक कर विचार-विमर्श कर रहे हैं.
दिल्ली में कांग्रेस के वॉर रूम यानी 15 गुरुद्वारा रकाबगंज रोड पर हो रही इस बैठक में पश्चिम बंगाल के प्रभारी गौरव गोगोई, सभी सांसदों, एमएलए, प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी सहित 45 वरिष्ठ नेताओं को बुलाया गया है.
राहुल गांधी ने इन सभी नेताओं से वन टू वन बात भी की. देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी विधायकों को पार्टी छोड़ कर जाने से रोक पाने में कितनी अहम भूमिका अदा कर पाते हैं.
फिलहाल शुक्रवार को बुलाई गई बंगाल कांग्रेस के साथ राहुल गांधी की बैठक करीब 3 घंटे तक चली, साथ ही उन्होंने नेताओं से अलग-अलग मुलाकात कर वहां की स्थिति को परखने की कोशिश भी की.
बंगाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन का कहना है कि टीएमसी प्रलोभन देकर पार्टी तोड़ना चाहती है. टीएमसी के साथ जुड़ने का फैसला राहुल गांधी को लेना है. वहीं मोइनुल हक जिन्हें टीएमसी समर्थक माना जाता है, का कहना है कि कांग्रेस का लेफ्ट के साथ जाना आत्मघाती होगा. हक ने कहा कि हमने सलाह दी है कि पहले भी सीपीएम के साथ करार किया गया, लेकिन चुनाव में यह हमारे पक्ष में नहीं गया, लोगों ने हमारे गठबंधन को वोट नहीं दिया.
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि राज्य में पार्टी की स्थिति कमजोर है. हम किसके साथ जाएंगे का सवाल तो तब उठेगा जब कहीं से कोई प्रस्ताव आए.
दिल्ली में आज हुई बैठक में राहुल गांधी राज्य के पार्टी नेताओं के साथ बैठक का एक मकसद यह भी था कि कांग्रेस को 2019 में लेफ्ट या फिर टीएमसी, किसके साथ गठबंधन करना चाहिए. हालांकि राज्य में पार्टी नेताओं का एक धड़ा ये मानता है कि टीएमसी के साथ गठबंधन करने पर पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
बता दें कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के कुछ नेताओं की टीएमसी से मुलाकातों की खबर पार्टी के लिए परेशानी का सबब जरूर है. हालांकि पश्चिम बंगाल के पार्टी नेताओं की ओर से ये दलील भी दी जा रही है कि वे टीएमसी नेता पार्थ चटर्जी से महागठबंधन के सिलसिले में ही चर्चा करने गए थे जिससे कि बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव में शिकस्त दी जा सके.
इनकी ओर से ये दलील भी दी जा रही है कि हमारे लिए सबसे बड़ा लक्ष्य पश्चिम बंगाल में पांव पसार रही बीजेपी को हराना है.
वहीं, पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी कुछ अलग ही सुर में बोल रहे हैं. बता दें कि चौधरी शुरू से टीएमसी के साथ किसी भी तरह का गठबंधन करने के सख्त खिलाफ हैं.
अभी कुछ ही दिन पहले चौधरी ने अपनी पार्टी के सांसद और वकील अभिषेक मनु सिंघवी पर पार्टी के खिलाफ काम करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से शिकायत भी की थी. चौधरी का कहना था कि जिन मामलों को लेकर प्रदेश कांग्रेस टीएमसी को बंगाल में घेर रही है उन्ही मामलों की सिंघवी पैरवी करते नजर आते हैं.
अतीत में पश्चिम बंगाल से कांग्रेस के दमदार नेताओं की लंबी चौड़ी फेहरिस्त रही है. इनमें सिद्धार्थ शंकर रे, प्रणब मुखर्जी, प्रियरंजन दासमुंशी के नाम शामिल हैं.
ममता बनर्जी ने भी अपनी पार्टी बनाने से पहले खुद भी कांग्रेस की युवा तेजतर्रार नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई थी. प्रियरंजन दासमुंशी का निधन हो चुका है. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की सक्रिय राजनीति में लौटने की संभावना ना के बराबर है. ऐसे में कांग्रेस के पास पश्चिम बंगाल में ऐसा कोई दमदार नेता नजर नहीं आता जिसे पार्टी ममता बनर्जी के सामने खड़ा कर सके.