
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार आमने-सामने हैं. सीबीआई कार्रवाई को लेकर केंद्र बनाम राज्य के बीच तलवारें खिंच गई हैं. जबकि पांच साल पहले जब नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम से देश के पीएम की कुर्सी पर काबिज हुए थे तो उन्होंने कहा था कि हम राज्य सरकारों से साथ टीम इंडिया की तरह मिलकर काम करेंगे, लेकिन मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में दिल्ली की केजरीवाल से लेकर पश्चिम बंगाल और दक्षिण के पुडुचेरी तक की राज्य सरकारों के बीच टकराव की स्थिति देखने को मिली हैं.
देश की सत्ता में मोदी सरकार के आने के बाद से ही केंद्र और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के बीच छत्तीस का आंकड़ा देखने को मिला है. शारदा चिटफंड केस में सीबीआई की टीम रविवार को कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर छापा मारने पहुंची तो राज्य की पुलिस ने सीबीआई के कुछ अधिकारियों को हिरासत में ले लिया.
सीबीआई की इस कार्रवाई को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सड़क पर उतरते हुए मोदी सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गईं. इस दौरान मोदी पर आरोप लगाते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि वो उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना चाहते हैं, जहां विपक्षी पार्टियां सत्ता में हैं. उन्होंने कहा, 'मैं यकीन दिला सकती हूं...मैं मरने के लिए तैयार हूं, लेकिन मैं मोदी सरकार के आगे झुकने के लिए तैयार नहीं हूं. हम आपातकाल लागू नहीं करने देंगे. कृपया भारत को बचाएं, लोकतंत्र बचाएं, संविधान बचाएं.'
पश्चिम बंगाल एक मात्र राज्य नहीं है जिसके साथ केंद्र की मोदी सरकार से टकराव की स्थिति बनी हुई है. ऐसे ही हालात दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के साथ भी रहे हैं. पिछले पांच सालों में कई बार केजरीवाल और मोदी सरकार आमने-सामने खड़ी नजर आई है.
मोदी सरकार पर दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा. दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 10 से ज्यादा विधायकों को पुलिस ने विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार किया, वहीं मुख्यमंत्री कार्यालय तक पर छापेमारे की गई. केजरीवाल के प्रमुख सचिव राजेंद्र कुमार को कथित भ्रष्टाचार के आरोपों में सीबीआई ने गिरफ्तार भी किया.. इसके अलावा केंद्र के इशारे पर उपराज्यपाल के काम करने के आरोप भी लगते रहे हैं.
पुडुचेरी की कांग्रेस सरकार और मोदी सरकार के बीच भी रिश्ते बेहतर नहीं रहे हैं. उप-राज्यपाल किरण बेदी और राज्य सरकार कई बार आमने-सामने खड़ी नजर आई हैं. किरण बेदी ने उपराज्यपाल बनते ही पुडुचेरी के कामकाज में सीधे दिलचस्पी लेनी शुरु कर दी. किरण बेदी ने फाइलों को अपने दफ्तर में सीधे मंगाना शुरु कर दिया, तो उन पर अपना एक अलग वॉट्सऐप ग्रुप बनाकर अधिकारियों को सीधे निर्देश देने के आरोप भी लगे.
उत्तराखंड-अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन
केंद्र की मोदी सरकार ने अरुणाचल और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें थीं, जहां सरकार को अल्पमत में लाकर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. इसे लेकर कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट गई, जहां से मोदी सरकार को तगड़ा झटका लगा. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर सरकार अल्पमत में है तो राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट करवाकर रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजनी चाहिए. किसी भी सूरत में राज्यपाल को मुख्यमंत्री की सलाह लेनी ही होगी और उसके बाद किसी तरह का कोई निर्णय लेना होगा.
दोनों राज्यों की सरकारें बहाल हुई थीं. हालांकि बाद में उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा और अरुणांचल में कांग्रेस के विधायकों ने एक साथ पार्टी छोड़ दी.
दिलचस्प बात ये है कि केंद्र की मोदी सरकार ने कहा था कि वो खुद एक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं और वह केंद्र के रवैये को देख चुके हैं. ऐसे में वो राज्य सरकारों के साथ बेहतर तालमेल बनाकर चलेंगे. लेकिन सत्ता में आने के बाद कांग्रेस की तरह ही मोदी सरकार पर भी राज्यों के साथ टकराव की स्थिति देखी गई.