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ब्राजील के आधे-अधूरे लॉकडाउन से भारत को क्या सीखना चाहिए और क्या नहीं?

21 मार्च तक, भारत में हर तीन दिन में केस दोगुने हो रहे थे. 24 और 25 मार्च की मध्यरात्रि में भारत पूरे लॉकडाउन में चला गया. ब्राजील इकलौता देश है जिसने राष्ट्रीय लॉकडाउन लागू नहीं किया. लेकिन मार्च के मध्य तक इस लैटिन अमेरिकी देश में हर 2-3 दिन में केस दोगुने हो रहे थे.

भारत में तेजी से बढ़ रही कोरोना मरीजों की संख्या (फाइल फोटो-PTI) भारत में तेजी से बढ़ रही कोरोना मरीजों की संख्या (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • चेन्नई,
  • 19 मई 2020,
  • अपडेटेड 4:18 PM IST

  • दोनों देशों में घनी आबादी वाले शहर हैं
  • दोनों देशों के लॉकडाउन का विश्लेषण

भारत और ब्राजील, दो ब्रिक्स राष्ट्र... दोनों दुनिया भर में Covid-19 केसों की अधिक संख्या वाले देशों में हैं. दोनों मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाएं हैं. दोनों देशों में घनी आबादी वाले शहर हैं जहां बड़े स्लम मौजूद हैं. दोनों Covid-19 के बढ़ते बोझ से जूझ रहे हैं. दोनों देशों ने मार्च के मध्य से केस की संख्या में तेज बढ़ोतरी देखी, खासकर अपने भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में.

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लेकिन दोनों देश एक बहुत ही अहम पहलू पर अलग-अलग हैं. ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो लॉकडाउन के सख्त विरोधी हैं, यहां तक ​​कि उन राज्यपालों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में भी शामिल हो रहे हैं जिन्होंने लॉकडाउन लागू किया है, जैसे कि साओ पाउलो के गवर्नर. वहीं भारत में 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन है.

दोनों देशों के बीच समानताएं बहुत हैं. इनमें जनसांख्यिकीय (डेमोग्राफिक), आर्थिक और हेल्थ इंडिकेटर्स शामिल हैं. इस वजह से दोनों देशों में तुलनात्मक विश्लेषण का यह फिट केस है. लेकिन क्या जो ऐसा समझते हैं कि दोनों देशों के वक्र की तुलना लॉकडाउन के समर्थन और खिलाफ तर्कों को लेकर साफ तस्वीर पेश करेगी, तो आंकड़े उससे कहीं ज्यादा अस्पष्ट है.

ब्राजील के लिए टाइमलाइन

ब्राजील ने भारत के पहले केस के लगभग एक महीने बाद फरवरी के आखिर में अपना पहला केस दर्ज किया. वहां इटली से लौटे एक व्यक्ति का टेस्ट पॉजिटिव रिपोर्ट हुआ जो बाद में रिकवर हो गया. केस तेजी से बढ़ने शुरू हुए तो वहां सरकार के सदस्यों में भी तकरार शुरू हो गई.

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बोलसोनारो के खुद प्रेस सचिव का मार्च के मध्य में टेस्ट पॉजिटिव आया. देश ने दो महीने में दो स्वास्थ्य मंत्रियों को राष्ट्रपति से मतभेदों को लेकर इस्तीफा देते देखा. इन्होंने महामारी से निपटने के राष्ट्रपति के तरीके और आधिकारिक सलाह को न मानने की वजह से इस्तीफा देना बेहतर समझा. इनमें हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे मुद्दे भी शामिल थे.

बोलसोनारो ने बिना मास्क पहने और सोशल डिस्टेंसिंग की अनदेखी करते हुए अपने समर्थकों से मुलाकात की. साथ ही Covid-19 खतरे को बढ़ा-चढ़ा कर बताने के लिए मीडिया और स्थानीय राजनेताओं की बार-बार आलोचना की. 13 मार्च तक, ब्राजील ने कुल केस की संख्या में भारत को पीछे छोड़ दिया.

भारत के साथ तुलना

21 मार्च तक, भारत में हर तीन दिन में केस दोगुने हो रहे थे. 24 और 25 मार्च की मध्यरात्रि में भारत पूरे लॉकडाउन में चला गया. ब्राजील इकलौता देश है जिसने राष्ट्रीय लॉकडाउन लागू नहीं किया. लेकिन मार्च के मध्य तक इस लैटिन अमेरिकी देश में हर 2-3 दिन में केस दोगुने हो रहे थे.

आंकड़े जबकि बताते हैं कि भारत में हर दिन ब्राजील की तुलना में कहीं कम केस जुड़े, लेकिन वो ये भी बताते हैं कि भारत का लॉकडाउन केस की संख्या को घटाने में इतना कामयाबनहीं रहा जैसे कि उम्मीद की गई थी, अगर बिना लॉकडाउन वाले ब्राजील से तुलना की जाए तो. असल में, भारत अब कुल Covid-19 केस की संख्या में एक लाख का आंकड़ा पार कर चुका है.

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लॉकडाउन की घोषणा के बाद से केसों की औसत दैनिक वृद्धि दर ब्राजील की तुलना में भारत में थोड़ी अधिक है. यह दिखाता है कि लॉकडाउन अहम है लेकिन यह जरूरी नहीं कि वायरस के फैलाव को रोक दे, लेकिन मौतों की संख्या कम रखने में भारत ने ब्राजील की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है. ब्राजील ने 18 मई की शाम को 16,000 से अधिक लोगों की मौत का आंकड़ा दिया जो कि दुनिया में किसी देश की छठी सबसे ऊंची संख्या है. यहां केस मृत्यु दर भारत से करीब दोगुनी है.

पहली बात, ब्राजील साफ तौर पर कम लोगों को टेस्ट कर रहा है. इसकी टेस्ट पॉजिटिविटी रेट बहुत ज्यादा यानि 33% है, यानि इसे 1 पॉजिटिव केस ढूंढने में सिर्फ 3 टेस्ट की जरूरत होती है. भारत में ये दर काफी नीची है. यहां एक पॉजिटिव केस को ढूंढने के लिए 23 टेस्ट करने पड़ रहे हैं. हालांकि आबादी के अनुपात से देखा जाए तो भारत अब भी कम दर से टेस्टिंग कर रहा है.

दूसरी बात, कुछ ब्राज़ीलियाई शहर वास्तव में स्थिति का सामना करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ब्राजील के सबसे बड़े शहर साओ पाउलो के मेयर ने स्वीकार किया है कि इसके अस्पताल चरमराने के कगार पर हैं. भारत जैसे ही ब्राजील के अधिकतर केस उसके सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में केंद्रित हैं. लेकिन साओ पाउलो ने तुलनात्मक आबादी होने के बावजूद मुंबई से तीन गुना अधिक मौतों को देखा है.

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फिर भी, मुंबई में केसों की बढ़ती संख्या और मौतें बताती हैं कि ढिलाई की कहीं कोई गुंजाइश नहीं है. जैसे कि भारत में लॉकडाउन की बंदिशों में ढील के साथ केस संख्या बढ़ने की संभावना है, ऐसी स्थिति में उस देश की गलतियों से काफी कुछ सीखा जा सकता है, जिसने बंदिशों को लागू नहीं किया.

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