
दिल्ली में 2012 में हुए निर्भया गैंगरेप कांड की जघन्यता ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. इसे देखते हुए केंद्र की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए समर्पित एक विशेष फंड की घोषणा की जिसका नाम 'निर्भया फंड' रखा गया. आज जब इस फंड को संसद की संस्तुति मिलने के पांच साल पूरे हो चुके हैं तब हमारा यह जानना जरूरी है कि इस फंड के जरिए सरकार पीड़ितों को कितना लाभ दे पाई है.
क्या है निर्भया फंड?
देश की सामूहिक चेतना को हिला कर रख देने वाले निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक कोष की जरूरत महसूस की गई. जिस पर संज्ञान लेते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार ने 2013 के बजट में निर्भया फंड की घोषणा की. वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने शुरुआती तौर पर 1000 करोड़ का आवंटन भी किया. 2014-15 और 2016-17 में एक-एक हजार करोड़ और आवंटित किए गए.
ये पैसा आवंटित तो हो गया, लेकिन सरकार इसे खर्च नहीं कर पाई. गृह मंत्रालय द्वारा इस फंड के लिए आवंटित धन का मात्र एक फीसदी खर्च होने की वजह से साल 2015 में सरकार ने गृह मंत्रालय की जगह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को निर्भया फंड के लिए नोडल एजेंसी बना दिया.
निर्भया फंड के तहत पूरे देश में दुष्कर्म संबंधी शिकायतों और मुआवजे के निस्तारण के लिए 660 एकीकृत वन स्टॉप सेंटर बनने थे. जिससे पीड़िताओं को कानूनी और आर्थिक मदद भी मिले और उनकी पहचान भी छिपी रहे. साथ ही सार्वजनिक स्थानों और परिवहन में सीसीटीवी कैमरे लगने थे. जिससे अपराधी की पहचान की जा सके.
मुआवजा देने में कितनी सफल रहीं सरकारें?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया फंड के तहत यौन हिंसा की शिकार पीड़िताओं को दिए जाने वाले मुआवजे को लेकर चिंता व्यक्त की थी. सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) ने बताया कि विभिन्न राज्यों में दुषकर्म की शिकार मात्र 5-10 फीसदी पीड़िताओं को ही निर्भया फंड के तहत मुआवजा मिल रहा है. नालसा ने बताया कि आंध्र प्रदेश में उपलब्ध आंकड़ों की मानें तो पिछले साल यौन हिंसा के दर्ज 901 मामलों में सिर्फ एक पीड़िता को मुआवजा मिला.
प्राधिकरण ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि राजस्थान में 2017 में 3305 प्राथमिकी दर्ज हुईं और इन योजनाओं के अंतर्गत 140 पीड़िताओं को मुआवजा मिला जबकि बिहार में यौन हिंसा के आरोपों में 1199 प्राथमिकी दर्ज हुईं, लेकिन सिर्फ 82 पीड़िताओं को मुआवजा मिल सका.
नोडल अथॉरिटी के रूप में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, महिला उत्थान व सुरक्षा के लिए खर्च की छूट के बावजूद केवल 600 करोड़ खर्चने और 2,400 करोड़ बचे रहने का कोई ठोस जवाब सुप्रीम कोर्ट में नहीं दे पाया.
क्यों विफल रहीं सरकारें?
दरअसल निर्भया फंड में पीड़िताओं के मुआवजे के लिए निर्धारित धनराशि के वितरण और प्रबंधन को लेकर एकीकृत प्रणाली का अभाव है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चूंकि इस फंड से तीन मंत्रालय गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और महिला एवं विकास मंत्रालय जुड़े हैं. इसे लेकर भ्रम की स्थिति है कि किसे क्या करना है. हालांकि केंद्र सरकार इस फंड में धन मुहैया करा रही है, लेकिन राज्य सरकारों को यौन हिंसा संबंधी मुआवजा कब और किस चरण में देना है इसे लेकर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है.
इस कोष में सभी राज्यों में एक जैसे प्रावधान नहीं हैं. गोवा जैसे राज्य में इसके तहत 10 लाख रुपये के मुआवजे का प्रावधान है जबकि बहुत से राज्यों में 1 लाख का प्रावधान है. जानी मानी न्यायविद इंदिरा जय सिंह का कहना है कि दिल्ली की ही तरह राज्यों के विधिक सेवा प्राधिकरण को खुद ही पीड़िताओं को मुआवजा देने का अधिकार दिया जाना चाहिए. राज्य की पुलिस यौन हिंसा संबंधी प्राथमिकी की सूचना वहां के विधिक सेवा प्रधिकरण को दे जिससे पीड़िताओं को मुआवजा देने की प्रक्रिया तेज की जा सके.