
क्या बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी समेत कई बीजेपी नेताओं पर चलेगा आपराधिक साजिश के तहत मुकदमा. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है और अगले मंगलवार(11 मार्च) तक सभी पक्षों को अपना लिखित जबाब कोर्ट में जमा करने का निर्देश दिया है.
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दी गयी अपनी असीम शक्तियों का इस्तेमाल करके रायबरेली में चल रहे मामले को लखनऊ की विशेष अदालत में ट्रांसफर कर सकती है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पहले ही काफी देरी हो चुकी है, इसलिए वो ये सुनिश्चित करेगी कि इस मामले की सुनवाई अगले 2 साल में पूरी हो और प्रतिदिन इस मामले की सुनवाई हो.
जस्टिस पी सी घोष और जस्टिस रोहिंटन नरीमन की बेंच में से जस्टिस नरीमन ने टिप्पणी करते हुए कहा, "इस मामले के कुछ आरोपी पहले ही मर चुके हैं अगर ऐसे ही देरी होती रही तो कुछ और लोग कम हो जाएंगे."
आडवाणी के वकील के के वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ऐसे केस ट्रांसफर नहीं कर सकती है. रायबरेली में मजिस्ट्रेट कोर्ट है जबकि लखनऊ में सेशन कोर्ट इस मामले को सुन रहा है इसलिए मेरी अपील का अधिकार कोर्ट नहीं ले सकती.
कोर्ट ने कहा हम सारे पहलू पर गौर करेंगे लेकिन अनुछेद 21 के तहत त्वरित न्याय पीड़ित का अधिकार है. ये बात भी ध्यान में रखना होगा.
गौरतलब है कि, बाबरी मस्ज़िद विध्वंस के बाद दो एफआईआर दर्ज की गई थी. एफआईआर नंबर 197/1992 उन अनाम कारसेवकों के ख़िलाफ थी जिन्होंने विवादित ढांचे को गिराया था, तो दूसरी एफआईआर 198/1992 अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, एल के आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती, अशोक सिंघल और साध्वी ऋतम्भरा पर दर्ज की गई थी. जिसमें इन आरोपियों पर उकसाने वाला भाषण देने के लिए आरोप के अलावा समुदायों में द्वेष फैलाने जैसी धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था.
सीबीआई ने दोनों मामलों में 5 अक्टूबर 1993 को लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट में ज्वाइंट चार्जशीट फाइल की थी. चार्जशीट में आडवाणी और संघ परिवार के दूसरे नेताओं के खिलाफ विवादित ढांचा गिराये जाने की साजिश रचे जाने का आरोप लगाया गया था.
इसी बीच फरवरी 2001 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एफआईआर नंबर 198 को रायबरेली से लखनऊ ट्रांसफर किये जाने को तकनीकी तौर पर गलत कहा क्योंकि इसके लिए राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश से अनुमति नहीं ली थी. हालांकि आपराधिक साजिश की धारा हटाये जाने को लेकर हाइकोर्ट ने कोई टिप्पणी नहीं की थी.
यूपी सरकार ने तकनीकी गलती दुरस्त नहीं की और एफआईआर नंबर 198 का मामला वापस रायबरेली कोर्ट चला गया. 4 मई 2001 में लखनऊ की सीबीआई कोर्ट के स्पेशल जज श्रीकांत शुक्ला ने आडवाणी और 20 अन्य नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश की धारा हटा दी क्योंकि एफआईआर 197 सिर्फ बाबरी मस्जिद के विध्वंस को लेकर थी ना कि आपराधिक साजिश को लेकर.
बाद में मई 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा. इस फैसले के नौ महीने के बाद ,फरवरी 2011 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की. आडवाणी और बाकी नेता याचिका दायर में हुई देरी का आधार मानकर याचिका खारिज किये जाने की मांग कर रहे थे लेकिन कोर्ट ने ये मांग खारिज कर दी.
सीबीआई के अलावा एक याचिकाकर्ता हाजी महबूब ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाकर कहा था कि 2014 में केंद्र में सरकार बदलने के बाद सीबीआई अपना रुख बदल सकती है. बीजेपी और संघ से जुड़े आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए. अब सीबीआई और हाजी मेहबूब की याचिका पर सुनवाई पूरी हो गयी है और जल्द ही सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाएगा.