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असम में एनआरसी पर खामोश क्यों हैं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह?

एनआरसी के मुद्दे को जोर-शोर से उठाने वाले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अब खामोश क्यों हैं, जबकि सूची का प्रकाशन हो गया है. क्या इसके पीछे कोई रणनीति है?

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह.(फोटो-http://amitshah.co.in/) भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह.(फोटो-http://amitshah.co.in/)
कौशिक डेका
  • नई दिल्ली,
  • 03 सितंबर 2019,
  • अपडेटेड 12:14 PM IST

  • असम में 31 अगस्त को हुआ एनआरसी का अंतिम प्रकाशन
  • बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इस मुद्दे पर फिलहाल हैं खामोश
  • क्या अमित शाह नागरिकता संशोधन बिल पास होने के इंतजार में हैं

पिछले साल लोकसभा चुनाव से आठ महीने पहले जब एनआरसी का ड्राफ्ट जारी हुआ, तब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इसकी जोरदार वकालत करते थे. वह बांग्लादेशी घुसपैठियों पर खासे मुखर थे. संसद के अंदर से लेकर बाहर बांग्लादेशी घुसपैठियों को 'दीमक' संबोधित करते हुए अमित शाह कहते थे- देश भर में पता लगाकर घुसपैठियों को वापस भेजेंगे.

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अमित शाह उस वक्त असम ही नहीं देश के सभी राज्यों के लिए एनआरसी तैयार करने की बात कहते थे. उनके कई सहयोगियों ने भी ऐसी ही मांग उठाई.

अब 31 अगस्त को जारी हुए एनआरसी की अंतिम सूची के बाद से मौजूदा वक्त में गृह मंत्री अमित शाह खामोश हैं. जबकि उनके भरोसेमंद और असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा खुले तौर पर एनआरसी तैयार करने के तौर-तरीकों पर सवाल उठा रहे हैं. हेमंत ने अवैध प्रवासियों का पता लगाने के लिए नए तरीके तलाशने की वकालत की है. उन्होंने यह भी कहा," सीमा पुलिस के पास संदिग्ध दस्तावेजों और नागरिकता की जांच करने का अधिकार है और यह जारी रहेगा."

उधर, एनआरसी का अंतिम मसौदा (ड्रॉफ्ट) जारी होने के बाद AIMIM चीफ और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी और अमित शाह पर हमला बोला. ओवैसी ने कहा कि  NRC की सूची के कारण अवैध प्रवासी का मिथक टूटा है. उन्होंने पूछा, "क्या अमित शाह स्पष्ट करेंगे कि कैसे उन्हें 40 लाख घुसपैठियों का पता चला? आंकड़ों की बात करें तो पिछले साल जारी हुए एनआरसी के ड्राफ्ट से 40 लाख लोग बाहर हुए थे. मगर अपील के बाद यह संख्या आधी रह गई. अगर सूत्रों पर भरोसा करें तो एनआरसी से बाहर किए गए 19 लाख से अधिक लोगों में सिर्फ 36 प्रतिशत यानी तकरीबन सात लाख मुस्लिम हैं.''

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एनआरसी के नए आंकड़े बीजेपी को असहज बना रहे हैं. क्योंकि बीजेपी ने 40 लाख से ज्यादा घुसपैठियों की बात करते हुए उनका पता लगाने के लिए एनआरसी का दांव चला था. यहां बताना जरूरी है कि 31 अगस्त को सूची के प्रकाशन से एक महीने पहले असम और केंद्र की दोनों बीजेपी सरकारों ने एनआरसी के दोबारा सत्यापन की मांग की थी. लेकिन एनआरसी की निगरानी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई इससे सहमत नहीं हुए थे.

बात अमित शाह की खामोशी की करते हैं. दरअसल, अमित शाह की चुप्पी उन आकड़ों से उपजी है, जिनके आधार पर असम सरकार ने एनआरसी के आंकड़ों की दोबारा जांच की मांग उठाई. अंतिम एनआरसी जारी होने से पहले असम के संसदीय मामलों के मंत्री चंद्र मोहन पटवारी ने कुछ आंकड़ों का हवाला देते हुए विधानसभा में एनआरसी के सत्यापन की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि बांग्लादेश की सीमा से लगे जिलों में एनआरसी से बाहर हुए लोगों का दर राज्य के औसत से कम है. जिससे साबित होता है कि लोगों को गलत तरीके से शामिल किया गया था.

जहां राज्य में सामने आए कुल आवेदकों में से 12.15 प्रतिशत अंतिम एनआरसी मसौदे से बाहर रहे, वही चौंकाने वाली बात रही कि सीमावर्ती जिलों दक्षिण सलमरा, धुबरी और करीमगंज में ये आंकड़े महज 7.22 प्रतिशत, 8.26 और 7.57 प्रतिशत रहे. ये वे जिले हैं, जहां पिछले कुछ वर्षों में जनसंख्या की असामान्य वृद्धि देखी गई थी, खासतौर से मुस्लिमों की . मिसाल के तौर पर धुबरी में जनसंख्या वृद्धि दर 24 प्रतिशत और करीमगंज में 22 प्रतिशत है. जबकि राज्य की औसत जनसंख्या वृद्धि दर 16 प्रतिशत है.

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हालांकि असम में राजनीतिक रूप से सजग लोगों का मानना है कि एनआरसी से कम लोगों का बाहर रहना चौंकाने वाली बात नहीं है. क्योंकि पिछली सरकारों में वोटबैंक के चलते ज्यादातर अवैध प्रवासियों के कागज दुरुस्त कर दिए गए. भ्रष्ट अफसरों ने इसमें भूमिका निभाई. एनआरसी के लिए 2009 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले अभिजीत शर्मा भी एनआरसी की प्रक्रिया पर पर असंतोष व्यक्त करते हैं.

हालांकि एनआरसी की राह में अभी कई कानूनी जटिलताएं हैं. मगर अमित शाह ने अपनी योजना तैयार कर रखी है. पिछले साल एनआरसी के मसौदे के प्रकाशित होने से पहले असम सरकार ने गृह मंत्रालय से संपर्क कर दिशा-निर्देश मांगा था कि जिन्हें सूची से बाहर किया जाएगा, उनका क्या होगा? यदि व्यक्ति के पास सरकारी नौकरी होगी तो क्या होगा? जिस पर केंद्र सरकार ने कहा था कि अभी यथास्थिति बरकरार रखने की जरूरत है न कि सूची से बाहर होने वालों के खिलाफ कोई कदम उठाने की.

विदेश मंत्रालय ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि एनआरसी से बाहर हुए लोग भारतीय नागरिक के अधिकारों का फायदा लेते रहेंगे जब तक कि उन्हें ट्रिब्यूनल विदेशी नहीं घोषित कर देती. एनआरसी से बाहर हुए लोगों को ट्रिब्यूनल में अपील के लिए 120 दिन का मौका मिला है. ट्रिब्यूनल से राहत न मिलने पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी लिस्ट से बाहर हुए लोग जा सकते हैं.

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यहीं से एनआरसी पर बीजेपी के रोडमैप का पता चलता है. संकेत मिल रहे हैं कि पार्टी संसद के शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) पारित करने की मांग करेगी. सरकार, सिटीजनशिप एक्ट 1955 में संशोधन करना चाहती है. ताकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले अल्पपसंख्यक प्रवासियों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसियो को भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता आसान हो सके.

अगर यह बिल पास होता है तो बांग्लादेश से आने वाले उन हिंदुओं को आसानी से नागरिकता मिल जाएगी जो अभी एनआरसी में जगह नहीं बना पाए हैं. माना जा रहा है कि नागरिकता संशोधन बिल पास होने तक अमित शाह खामोश रहना चाहते हैं.

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