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योगी के एक साल को सफल करने में क्या चूक गए मोदी के तीन मंत्री?

योगी सरकार से उम्मीदें इसलिए भी अहम हैं क्योंकि खुद प्रधानमंत्री मोदी वाराणसी से चुनकर आए हैं और लोकसभा चुनावों में राज्य की 80 सीटों में 70 सीटें भाजपा के नाम की है. जाहिर है कि योगी सरकार के पहले साल के कामकाज का आंकलन बिना केन्द्रीय मंत्रियों की रिपोर्ट कार्ड के पूरा नहीं किया जा सकता है...

योगी के एक साल को सफल बनाने का जिम्मा इनका भी था योगी के एक साल को सफल बनाने का जिम्मा इनका भी था
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 16 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 10:50 AM IST

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की योगी सरकार के कार्यकाल का एक साल पूरा हो गया है. कई दशकों के बाद राज्य में यह मौका आया है जब केन्द्र में भी वही पार्टी सत्ता में कायम है, लिहाजा योगी सरकार से जनता की उम्मीदें भी सातवें आसमान पर है. योगी सरकार से उम्मीदें इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उत्तर प्रदेश के वाराणसी से चुनकर आए हैं और 2014 के लोकसभा चुनावों में राज्य 80 सीटों में 70 सीटें भाजपा के नाम की है. ऐसे में जाहिर है कि योगी सरकार के पहले साल के कामकाज का आंकलन बिना राज्य के केन्द्रीय मंत्रियों की रिपोर्ट कार्ड को पूरा नहीं किया जा सकता है.

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत केन्द्रीय कैबिनेट में उत्तर प्रदेश से चार नेता शामिल हैं. केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, केन्द्रीय महिला और बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी और केन्द्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी.

हालांकि मुख्तार अब्बास नकवी फिलहाल झारखंड से राज्यसभा में हैं. लेकिन उन्हें केन्द्रीय कैबिनेट में जगह देने के पीछे देश उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक अल्पसंख्यकों का होना और उनका प्रदेश का मूल निवासी होना अहम था. इसके अलावा मुख्तार ने प्रदेश से दोनों लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ा है और एक बार लोकसभा पहुंचने में कामयाब भी हुए हैं.

गृह मंत्रालय बनाम उत्तर प्रदेश

केन्द्र में राजनाथ सिंह गृह मंत्री है और उत्तर प्रदेश में गृह मंत्रालय खुद योगी आदित्यनाथ देखते हैं. कई दशकों से नैशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) में बढ़ते क्राइम पर लगाम लगाने के लिए पूरे एनसीआर क्षेत्र को एकीकृत पुलिस देने की कवायद की गई. लेकिन पूर्व की कवायदों के सामने राजधानी दिल्ली से सटे राज्य उत्तर प्रदेश और हरियाणा में केन्द्र से इतर पार्टियों की सरकार सबसे बड़ा रोड़ा रहा. लेकिन बीते एक साल से केन्द्र, उत्तर प्रदेश और हरियाणा ने बीजेपी की सरकार है.

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इसके बावजूद केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने एनसीआर क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिए इस विकल्प पर काम नहीं किया. गौरतलब है कि देश के क्राइम ग्राफ में एनसीआर क्षेत्र शीर्ष पर है और उत्तर प्रदेश पुलिस को दिल्ली से सटे अपने जिलों में पुलिस का पुख्ता इंतजाम करना बड़ी चुनौती रही है.

इसे पढ़ें: मंत्रियों से पूछे गए इन 10 सवालों के जवाब में छुपा है योगी सरकार का रिपोर्ट कार्ड 

महिला कल्याण बनाम उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने कमान संभालने के साथ ही पूर्व की राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही महिला और बाल कल्याण की योजनाओं को बंद करने का फैसला लिया. इनमें जहां महिलाओं के लिए पेंशन योजना शामिल है तो बालिकाओं के लिए लैपटॉप और साइकिल वितरण कार्यक्रम भी शामिल हैं.

राज्य सरकार ने यह फैसला इस सच्चाई के बावजूद लिया कि पूर्व की सरकार की योजना पूरी तरह से केन्द्र सरकार की 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना में मदद कर रही थी. बहरहाल पूर्व की योजनाओं को यदि राज्य सरकार ने खत्म कर भी दिया तो उनकी जगह पर न तो राज्य सरकार ने कोई विकल्प दिया और न ही केन्द्रीय मंत्रालय की तरफ से किसी विकल्प का मसौदा सामने किया गया.

हालांकि राज्य सरकार ने एक साल के कार्यकाल के दौरान राज्य के 8 जिलों में केन्द्र सरकार की कौशल विकास योजना के तहत कौशल विकास केन्द्र के निर्माण को मंजूरी दी है. इस योजना के तहत इन 8 जिलों में महिलाओं को मोबाइल रिपेयरिंग, सिलाई मशीन संचालन, फ्रंट ऑफिस मैनेजमेंट, रीटेल सेल्स में दक्षता दी जानी है.

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अल्पसंख्यक कार्य बनाम उत्तर प्रदेश

केन्द्र में मोदी सरकार के सबका साथ सबका विकास नीति में अहम निर्देशक तत्व है कि देश में अल्पसंख्यकों को सामाजिक और आर्थिक मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जाएगी, लेकिन किसी हालत में सरकार अल्पसंख्यक तुष्टीकरण नहीं करेगी. केन्द्र सरकार की इस नीति को उत्तर प्रदेश में प्रभावी करने के लिए राज्य सरकार ने भी साफ किया है कि वह अभी तक अल्पसंख्यकों को महज राजनीतिक वोटबैंक बनाने के नाम पर किए जा रहे तुष्टीकरण को पूरी तरह से बंद करेगी.

केन्द्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री ने दावा किया कि पूर्व की सपा सरकार के कार्यकाल में मुस्लिम अपराधीकरण को बढ़ावा देते हुए तुष्टीकरण किया गया. कब्रिस्तान के नाम पर जमीन हड़पने की घटनाओं से अपराधीकरण बढ़ा और राज्य में धार्मिक सौहार्द बिगड़ा.

लिहाजा, सबका साथ सबका विकास नीति पर चलते हुए राज्य में मुस्लिमों के तुष्टीकरण के बजाए उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया जाएगा, जिससे वह विकास की मुख्यधारा में शरीक हो सके.

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