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भारी बारिश के कारण चारमीनार का हिस्सा क्षतिग्रस्त, इलाके में हड़कंप

मक्का मस्जिद की ओर स्थित मीनार पर लगा ग्रेनाइट स्लैब का प्लास्टर हिस्सा देर रात गिरने से आसपास के लोगों में हड़कंप मच गया. इस मामले में जांच के आदेश दे दिए गए हैं. पुलिस ने इस घटना के बाद इलाके की घेराबंदी कर दी है.

हैदराबाद की चारमीनार का क्षतिग्रस्त हिस्सा (फोटो- एएनआई) हैदराबाद की चारमीनार का क्षतिग्रस्त हिस्सा (फोटो- एएनआई)
aajtak.in
  • हैदराबाद,
  • 02 मई 2019,
  • अपडेटेड 2:41 PM IST

भारी बारिश के कारण बुधवार रात हैदराबाद की चारमीनार का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया. यह घटना रात 11.30 बजे हुई, जिसमें किसी को चोट नहीं आई. अधिकारियों ने गुरुवार को इसकी जानकारी दी. मक्का मस्जिद की ओर स्थित मीनार पर लगा ग्रेनाइट स्लैब का प्लास्टर हिस्सा देर रात गिरने से आसपास के लोगों मे हड़कंप मच गया. इस मामले में जांच के आदेश दे दिए गए हैं.

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पुलिस ने इस घटना के बाद इलाके की घेराबंदी कर दी है. चारमीनार को नुकसान पहुंचने की खबर फैलने के बाद उसके आसपास लोगों का तांता लग गया. दरारें पड़ने के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने कुछ दिनों पहले इस ऐतिहासिक इमारत के रख-रखाव का जिम्मा अपने हाथों में  लिया था. कई वर्षों तक नजरअंदाज किए जाने के बाद इसकी मरम्मत का काम शुरू किया गया है. एक वक्त पर यह पाया गया कि चारमीनार का रंग भी प्रदूषण के कारण काला पड़ता जा रहा है. इसके बाद इस ऐतिहासिक इमारत के आसपास वाहनों के चलने पर रोक लगा दी गई थी.

हालांकि चूना प्लास्टर गिरने की घटना पहली बार नहीं हुई है. लेकिन हालिया नुकसान ने इस इमारत की सुरक्षा पर सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं. एक पुलिस अफसर ने बताया, ''हाल ही में रेनोवेट की गई मीनार का एक हिस्सा गिर गया है. हमने एएसआई प्रशासन को सूचना दे दी है.''

चारमीनार साल 1591 में मोहम्मद कुली कुतुब शाह ने बनाई थी, जो कुतुब शाही वंश के पांचवें राजा थे. यह 428 साल पुरानी इमारत 160 फुट ऊंची है. इसमें चार मीनार हैं, जिस पर इसका नाम रखा गया है.

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क्यों खास है चारमीनार: यह इमारत मूसी नदी के पूर्वी तट पर स्थित है. चारमीनार क्यों बनाई गई, इसकी कई थ्योरीज सामने आई हैं. लेकिन आमतौर पर यह माना जाता है कि हैजा खत्म होने के बाद इसे शहर के बीचोंबीच बनाया गया था. मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने इस बीमारी के खात्मे की प्रार्थना की थी और कसम खाई थी कि जिस जगह पर उसने प्रार्थना की है, वहीं वह मस्जिद बनाएगा. कुतुब शाही और आसफ जाही शासन के बीच मुगल शासन के दौरान दक्षिण-पश्चिम मीनार पर बिजली गिरने के बाद वह टुकड़े-टुकड़े हो गई थी. इसकी मरम्मत में 60 हजार रुपये का खर्च आया था. साल 1824 में इसकी दोबारा मरम्मत की गई थी और एक लाख रुपये खर्च हुए थे.

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