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Telangana Tunnel Accident: तेलंगाना टनल हादसे में मजदूरों का रेस्क्यू क्यों हुआ मुश्किल, तस्वीरों से समझें

अधिकारियों के मुताबिक पानी और कीचड़ ने रेस्क्यू टीम के सामने मुश्किल खड़ी कर दी है. इससे उन्हें सुरंग में आगे बढ़ने के लिए रबर ट्यूब और लकड़ी के तख्तों का सहारा लेना पड़ रहा है. अब टनल में फंसे हुए मजदूरों को निकालना काफी चुनौतीपूर्ण हो चुका है.  

मजदूरों को निकालने में आ रहीं दिक्कतें मजदूरों को निकालने में आ रहीं दिक्कतें
बिदिशा साहा/शुभम तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 26 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 2:52 PM IST

तेलंगाना के नागरकर्नूल जिले में हुए सुरंग हादसे के बाद लगातार रेस्क्यू चल रहा है लेकिन अब तक कोई कामयाबी नहीं मिल पाई है. 22 फरवरी को हुए इस हादसे में सुरंग के भीतर आठ मजदूर फंस गए हैं जिनको बाहर निकालने के लिए अब रैट माइनर्स की टीम को लगाया गया है. इंडिया टुडे ने श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (SLBC) में रेस्क्यू ऑपरेशन में आ रही चुनौतियों का पता लगाया है. अधिकारियों के मुताबिक सुरंग में जमा कीचड़ और लगातार हो रहा पानी का रिसाव रेस्क्यू में सबसे बड़ी परेशानी बन गया है.

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70 में से 8 मजदूर सुरंग में फंसे

रेस्क्यू टीम ने बुधवार को बताया कि हादसे वाली जगह तक पहुंच गए हैं लेकिन अब तक मजदूरों को बाहर नहीं निकाला जा सका है. तेलंगाना के सिंचाई मंत्री उत्तम कुमार रेड्डी के ने बताया कि 22 फरवरी की सुबह सुरंग का कुछ हिस्सा ढह गया, जिससे सुरंग में अचानक और भारी मात्रा में पानी और कीचड़ भर गया. उन्होंने कहा कि वहां करीब 70 लोग काम कर रहे थे, आठ लोगों को छोड़कर, सभी बच गए और उन्हें बाहर निकाल लिया गया.

राज्य मंत्री जे कृष्ण राव ने रेस्क्यू में हो रही देरी के लिए सुरंग के अंदर भारी मात्रा में जमा हुए कीचड़ को जिम्मेदार ठहराया है. अधिकारियों ने कहा कि कीचड़ ने रेस्क्यू टीम के सामने मुश्किल खड़ी कर दी है. इससे उन्हें आगे बढ़ने के लिए रबर ट्यूब और लकड़ी के तख्तों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि फंसे हुए मजदूरों के बचने की संभावना कम है.  

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कीचड़ की वजह से मशीन फेल 

भारतीय सेना, नौसेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और कुछ निजी कंपनियों की टीमें इस जॉइंट ऑपरेशन पर काम कर रही हैं. अधिकारियों ने बताया कि सुरंग के मुहाने से करीब 13.5 किलोमीटर नॉर्थ में जब मजदूर खुदाई कर रहे थे, तब सुरंग की छत का करीब 10 मीटर हिस्सा ढह गया. इसकी 44 किलोमीटर लंबाई में से एक तरफ से लगभग 13.5 किलोमीटर और दूसरी तरफ से 20.5 किलोमीटर सुरंग का निर्माण पूरा हो चुका था, लगभग 9 किलोमीटर हिस्सा बचा था, जिस पर हादसे के वक्त काम चल रहा था.

एनडीआरएफ के डिप्टी कमांडर सुखेंदु ने 22 फरवरी को बताया कि उनकी टीम को हादसे वाली जगह जाने के लिए आखिरी 2 किलोमीटर कन्वेयर बेल्ट पर तय करने पड़े, क्योंकि गहरे कीचड़ और पानी के कारण लोकोमोटिव इंजन ने काम करना बंद कर दिया था. उन्होंने कहा कि जब हम टीएमवी (टनल बोरिंग मशीन) के आखिर में पहुंचे, तो हमने फंसे हुए मज़दूरों से उनके नाम पुकारकर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन हमें कुछ नहीं मिला.

मजदूरों की लोकेशन का पता नहीं

उन्होंने बताया कि मलबे से 200 मीटर का पैच भरा हुआ है. जब तक इस मलबे को साफ नहीं किया जाता, हम फंसे हुए मज़दूरों की सही लोकेशन का पता नहीं लगा पाएंगे और उन्हें बचा नहीं पाएंगे. सुरंग के 11-13 किलोमीटर के बीच के पैच में पानी भरा हुआ है और जब तक पानी नहीं निकाला जाता, तब तक मलबा साफ करने का काम शुरू नहीं होगा.

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लोकोमोटिव ट्रैक को साफ़ करने की कोशिश मंगलवार को भी जारी रही ताकि पानी निकालने और कीचड़ हटाने की मशीन को हादसे वाली जगह पर ले जाए जा सके. सुरंग में मिट्टी हटाने वाली मशीनों को ले जाने के लिए रास्ता भी साफ़ किया जा रहा है.

क्यों खास है ये प्रोजेक्ट

एसएलबीसी सुरंग, क्षेत्रीय सिंचाई योजना एलिमिनेटी माधव रेड्डी प्रोजेक्ट का एक अहम हिस्सा है, जिसका मकसद नलगोंडा में लगभग 3 लाख एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई करना है. जिले के फ्लोराइड प्रभावित गांवों को पीने का पानी भी इसी प्रोजेक्ट के तहत मुहैया कराने का प्लान है. तेलंगाना के सिंचाई मंत्री उत्तम कुमार रेड्डी के मुताबिक यह बहुत पुराना प्रोजेक्ट है जो 20 साल पहले शुरू हुआ था. कई रुकावटों की वजह से प्रोजेक्ट काफी धीमे चल रहा है, लेकिन जब यह पूरा हो जाएगा तो इसे तेलंगाना के लिए एक वरदान माना जाएगा.

सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 2005 में आंध्र प्रदेश सरकार ने 2,813 करोड़ रुपये की लागत से सुरंग के निर्माण को मंजूरी दी थी, जिसके पूरा होने की अनुमानित अवधि 7 से 8 साल थी.

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