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282 मानव कंकालों का क्या बिहार-यूपी कनेक्शन? सच्चाई जान चौंक जाएंगे आप

वैज्ञानिकों की दो अलग-अलग टीम ने डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस किया और निष्कर्ष निकाला की मारे गए जिन लोगों के अवशेष मिले हैं वो गंगा घाटी क्षेत्र के रहने वाले थे. इस अध्ययन को 28 अप्रैल, 2022 को फ्रंटियर्स इन जेनेटिक्स पत्रिका में प्रकाशित भी किया गया है.

160 साल पुराने मानव कंकाल का खुल गया रहस्य 160 साल पुराने मानव कंकाल का खुल गया रहस्य
रोशन जायसवाल
  • वाराणसी,
  • 29 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 3:40 PM IST
  • अजनाला में मिले160 साल पुराने मानव कंकाल का खुला रहस्य
  • अध्ययन में आया सामने, बिहार-यूपी से था संबंध

साल 2014 की शुरुआत में पंजाब के अजनाला कस्बे में एक पुराने कुएं से 282 मानव कंकालों के अवशेष मिले थे. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ये कंकाल भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान दंगों में मारे गए लोगों के हैं, जबकि अलग-अलग स्रोतों के आधार पर यह धारणा प्रचलित है कि कंकाल उन भारतीय सैनिकों के हैं, जिनकी हत्या 1857 स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों ने कर दी थी. हालांकि अब रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों ने जो दावा किया है वो आपको चौंका देगा.

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ताजा रिसर्च के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने कहा है कि कुएं में मिले मानव कंकाल पंजाब या पाकिस्तान में रहने वाले लोगों के नहीं थे. इस टीम के वरिष्ठ सदस्य और सीसीएमबी के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. के. थंगराज ने बताया कि अवशेषों के डीएनए सीक्वेंस यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ मेल खाते हैं. वहीं, रिसर्च के लेखक डॉ. जगमेंदर सिंह सेहरावत ने यह दावा किया है कि 26वीं बंगाल इन्फैंट्री बटालियन के सैनिक पाकिस्तान के मियां-मीर में तैनात थे और विद्रोह के बाद उन्हें अजनाला के पास ब्रिटिश सेना ने पकड़ कर मार डाला था.

दरअसल वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के कारण इन सैनिकों की पहचान और भौगोलिक उत्पत्ति पर बहस चल रही थी. इस विषय की वास्तविकता को जानने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय के एन्थ्रोपोलाजिस्ट डॉ जे. यस. सेहरावत ने इन कंकालों का डीएनए और आइसोटोप अध्ययन करने का फैसला किया था. सीसीएमबी हैदराबाद, बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट लखनऊ और काशी हिन्दू विश्विद्यालय के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर उन्होंने इसका अध्ययन किया. इस शोध के लिए 50 डीएनए सैंपल और 85 आइसोटोप सैंपल एनालिसिस का इस्तेमाल किया गया.

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बता दें कि डीएनए विश्लेषण लोगों के अनुवांशिक संबंध को समझने में मदद करता है, जबकि आइसोटोप विश्लेषण भोजन की आदतों पर प्रकाश डालता है. बीएचयू जंतु विज्ञान के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे, जिन्होंने डीएनए अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उन्होंने जोर देकर कहा कि इस अध्ययन के निष्कर्ष भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों के इतिहास में एक प्रमुख अध्याय जोड़ देंगे.

इस टीम के प्रमुख शोधकर्ता और प्राचीन डीएनए के एक्सपर्ट डॉ नीरज राय ने कहा कि इस इस टीम द्वारा किया गया वैज्ञानिक शोध इतिहास को साक्ष्य-आधारित तरीके स्थापित करने में मदद करता है. इस शोध से मिले परिणाम ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुरूप हैं जिसमें कहा गया है कि 26वीं बंगाल इन्फैंट्री बटालियन के सैनिक पाकिस्तान के मियां-मीर में तैनात थे और विद्रोह के बाद उन्हें अजनाला के पास ब्रिटिश सेना ने पकड़ कर मार डाला था.शोध के पहले लेखक डॉ. जगमेंदर सिंह सेहरावत ने यह दावा किया है.

काशी हिन्दू विश्विद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के निदेशक प्रो एके त्रिपाठी ने कहा, "यह अध्ययन ऐतिहासिक मिथकों की जांच में प्राचीन डीएनए आधारित तकनीक की उपयोगिता को दर्शाता है."

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