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2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिशें लगातार हो रही हैं, लेकिन अभी तक महागठबंधन का स्वरूप तय नहीं हो सका है. इन सबके बीच मायावती ने रविवार को कहा कि गठबंधन तभी होगा जब उनकी पार्टी को सम्मानजनक सीटों पर लड़ने का मौका मिलेगा, वरना वो अकेली ही चुनाव में उतरेंगी. हालांकि, उन्होंने बीजेपी को रोकने के लिए गठबंधन को बहुत अहम भी बताया.
ऐसे में सम्मानजनक सीटों से मायावती का इशारा किस तरफ है. क्या ये लड़ाई यूपी तक ही सीमित है या फिर देश के बाकी राज्यों में भी कुछ सीटों की उम्मीद लगाए बैठी हैं? बसपा का आधार यूपी से बाहर दूसरे राज्यों में भी है.
हालांकि मायावती ने अपनी शर्त रखकर बाकी दलों के लिए नया पेंच फंसा दिया है. लेकिन अखिलेश यादव किसी भी सूरत में बसपा का साथ नहीं छोड़ना चाहते हैं. इंडिया टुडे के माइंड रॉक्स में अखिलेश यादव ने कहा था कि बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए कितनी भी सीटों पर समझौता कर लूंगा. ऐसे में चार फॉर्मूले हैं जिनके आधार पर बसपा को सम्मानजनक सीटें और महागठबंधन में सीटों के बंटवारे का अंदाजा लगाया जा सकता है.
रनरअप सीटों का फॉर्मूला
2014 लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 सीटों में से बीजेपी गठबंधन को 73 सीटें मिली थीं. जबकि सपा को पांच और कांग्रेस के खाते में दो सीट गई थी, लेकिन बसपा का खाता भी नहीं खुला था. ऐसे अब महागठबंधन के लिए सीटों के बंटवारे के लिए जिन सीटों पर जो पार्टी दूसरे नंबर पर रही है, वे सीटें उनके खाते में दी जाए.
इस लिहाज से बसपा 34 सीट, सपा 31 सीट और कांग्रेस सिर्फ 6 सीट पर दूसरे स्थान पर रही थी. इस फॉर्मूले पर सीटों का बंटवारा होता है तो फिर बसपा के खाते में सबसे ज्यादा सीटें आएंगी. क्या मायावती के लिए ये सम्मानजनक सीटें होंगी, जिनकर राजी होंगी.
बसपा की यूपी से बाहर सीटों की ख्वाहिश
कांग्रेस के बाद विपक्षी दलों में बसपा एकलौती ऐसी पार्टी है जिसका आधार यूपी के अलावा भी दूसरे राज्यों में है. बसपा बकायदा वहां विधानसभा और लोकसभा चुनाव भी लड़ती रही है. विधानसभा में तो कुछ राज्यों में उनके विधायक हैं, लेकिन लोकसभा में सिर्फ मध्य प्रदेश की एक सीट ही जीत सकी थी.
बसपा के दलित वोटबैंक की ताकत ने मौजूदा राजनीति में मायावती के कद को बढ़ा दिया है. यही वजह है कि मायावती दूसरे राज्यों में सीटें मांग रही हैं. मायावती को लगता है कि वे ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़कर अगर अच्छी खासी सीटें ले आती हैं तो उनके पीएम बनने का ख्वाब पूरा हो सकता है. सूत्रों की मानें तो कांग्रेस विधानसभा चुनाव में कुछ सीटें देने को तैयार है लेकिन लोकसभा सीटों को लेकर रजामंद नहीं दिख रही.
बसपा के अब तक के सबसे बेस्ट नतीजे
लोकसभा चुनाव में बसपा को सबसे ज्यादा सीटें 2009 के लोकसभा चुनाव में मिली थीं. बसपा को 27.20 फीसदी वोटों के साथ 20 सीटें मिली थी. बसपा की राजनीति में ये सबसे बेहतर परिणाम था. जबकि सपा को 23.26 फीसदी वोटों के साथ 23 सीटें और कांग्रेस 11.65 फीसदी वोट और 21 सीटें जीतने में सफल रही थी. जबकि आरएलडी को पांच सीटें मिली थीं. कांग्रेस इस फॉर्मूले पर सीटें चाहती है, लेकिन सपा बसपा इस पर राजी नहीं हैं.
2004 में सपा को सबसे ज्यादा सीटें
सपा के सबसे ज्यादा सांसद 2004 के लोकसभा चुनाव में जीतकर आए थे. सपा को 26.74 फीसदी वोट के साथ 35 सीटें, बसपा को 24.67 फीसदी वोट के साथ 19 सीटें और कांग्रेस को 12.04 फीसदी वोट के साथ 9 सीटें मिली थीं. सपा को ये फॉर्मूला अपने पक्ष में नजर आ रहा है, लेकिन बसपा इसे लेकर तैयार नहीं है.बसपा की सबसे ज्यादा सीटों की मांग
बसपा ने महगठबंधन का हिस्सा बनने के लिए सम्मानजनक सीटों की शर्त रखी है. इसके लिए यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से बसपा को सबसे ज्यादा सीटें देने पर सहयोगी दल राजी हैं, लेकिन 36 सीटों से ज्यादा पर तैयार नहीं हैं. वहीं, सपा को 32, कांग्रेस को 9 और आरएलडी को 3 सीटों का फॉर्मूला बनाया जा रहा है. जबकि सूत्रों की मानें तो बसपा 40 सीटें मांग रही है, जिस पर बात नहीं बन रही है.
बता दें कि गोरखपुर-फूलपुर और कैराना में लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी को मिली हार और विपक्ष को मिली जीत के बाद से ही महागठबंधन की आस जागी. अखिलेश और मायावती आपस में मिलें तो गठबंधन की दिशा में तेजी आएगी, लेकिन सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन में पेंच फसा हुआ है.