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कांग्रेस पर माया गरम, अखिलेश बसपा पर नरम, क्या होगा विपक्षी गठबंधन का स्वरूप

2019 लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव को सेमीफाइनल माना जा रहा है. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सपा-बसपा दोनों ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से इनकार कर दिया है. ऐसे में महागठबंधन का स्वरूप इन दोनों दलो के बगैर कैसा होगा?

सोनिया गांधी, मायावती और राहुल गांधी (फोटो क्रेडिट, Aajtak.in) सोनिया गांधी, मायावती और राहुल गांधी (फोटो क्रेडिट, Aajtak.in)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 10 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 11:25 AM IST

सपा और बसपा ने मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ किसी तरह के गठबंधन से इनकार कर दिया है. जबकि बसपा छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी से साथ गठजोड़ कर मैदान में उतरी है. जबकि कांग्रेस तीनों राज्यों में अकेले चुनाव लड़ रही है. सपा-बसपा का कांग्रेस के साथ न आना राहुल गांधी के विपक्षी एकता को झटका माना जा रहा है.

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हालांकि कांग्रेस को पूरी उम्मीद है कि अगले साल होने वाले 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन खड़ा होगा और यूपी के दोनों प्रमुख दल इसका हिस्सा होंगे. लेकिन बसपा अध्यक्ष मायावती के तेवर कांग्रेस के प्रति जिस तरह से गरम हैं, ऐसे में कांग्रेस के साथ बसपा के साथ आएगी इस पर तस्वीर अभी साफ नहीं है.

वहीं, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव किसी भी सूरत में बसपा का साथ नहीं छोड़ना चाहते हैं. इसके लिए वो लगातार नरम रवैया अख्तियार किए हुए हैं. इतना ही नहीं अखिलेश किसी भी हद तक जाकर बसपा समझौता करने की बात कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस को लेकर उनकी सख्ती बरकरार है.

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को कहा है कि उनकी पार्टी ने चुनावी गठबंधन के लिए सम्मानजनक सीटें मिलने का एक मात्र शर्त रखी थी. उन्होंने कहा कि आने वाले चुनावों में गठबंधन के लिए किसी भी पार्टी से सीटों की भीख नहीं मांगेंगी और अपने बलबूते पर ही चुनाव लड़ती रहेगी.  

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मायावती बीजेपी और कांग्रेस को बराबर का दोषी ठहराते हुए कहा कि कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही पार्टियां बीएसपी, इसके नेतृत्व को कमजोर और बदनाम करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहती हैं. मायावती के इन बयानों से साफ है कि वह सत्ताधारी बीजेपी से जितनी नाराज हैं उतना ही गुस्सा कांग्रेस को लेकर भी है.

सपा-बसपा इसी तरह का रवैया अगर यूपी में भी अख्तियार करती हैं तो कांग्रेस के लिए सूबे में अपने वजूद को बचाए रखना मुश्किल साबित हो सकता है. जबकि सपा और बसपा साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावनाएं बनती दिख रही हैं. पिछले दिनों यूपी के फूलपुर, गोरखपुर और कैराना लोकसभा के उपचुनाव में इसका टेस्ट भी देखा जा चुका है, जहां बसपा ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे और सपा के उम्मीदवारों ने दो तो आरएलडी के कैंडिडेट ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को कहा कि राज्य के चुनावों में पार्टियों की अपना बाध्याताएं होती हैं. हमारी प्रमुख इच्छा लोकसभा चुनाव में विपक्ष को एकजुट देखने की है और हमें उम्मीद है कि इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे. भरोसा है कि सपा और बसपा इस महागठबंधन का हिस्सा होंगी.

 2019 लोकसभा चुनाव को देखते हुए मायावती के संकेत कांग्रेस के लिए और भी बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकती हैं. उत्तर प्रदेश में फिलहाल बीएसपी के पास एक भी लोकसभा सीट क्यों न हो लेकिन आने वाले दिनों में सपा और बीएसपी का गठजोड़ कांग्रेस को अलग-थलग कर सकता है.

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मायावती के इस फैसले से सबसे ज्यादा फायदे में बीजेपी दिख रही है. दरअसल माया के फैसले से महागठबंधन को लेकर जो माहौल बनाया जा रहा था, वो बन नहीं सकेगा. इसका सीधा असर बीजेपी के विरोध में खड़े मतदाताओं पर पड़ेगा. बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव से पहले ये अच्छे संकेत हैं कि बीएसपी, कांग्रेस और सपा गठबंधन करने के लिए फिलहाल तैयार नहीं दिख रही हैं.

उत्तर प्रदेश में कुल 80 लोकसभा सीटें हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने 73 सीटें जीती थीं, तभी उसका मिशन 272 प्लस कामयाब हो पाया था. जबकि बसपा का खाता भी नहीं खुला था. वहीं, कांग्रेस रायबरेली और अमेठी तक सीमित हो गई थी और सपा को सिर्फ अपने परिवार की पांच सीटें जीत सकी थी, लेकिन तीन सीटों पर हुए उपचुनाव के बाद मौजूदा समय में बीजेपी के पास 68, सपा के 7 और आरएलडी के पास एक सांसद हो गए हैं.

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