
शारदीय नवरात्र में घर-घर में ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ होता है. दुर्गा सप्तशती में देवी के हर रूप की भव्यतम और विस्तार से व्याख्या की गई है. हिंदुओं की धार्मिक पुस्तकें छापने वाली गोरखपुर स्थित गीता प्रेस इस बार माता के भक्तों को बड़ा तोहफा देने की तैयारी कर रही है. दुर्गा सप्तशती अब आर्ट पेपर (Art Paper) में भी छपकर लोगों तक पहुंचेगी, जिसमें 100 से अधिक तस्वीरें होंगी.
300 पृष्ठों की पुस्तक में होंगे 100 से अधिक चित्र
शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा की सबसे प्रचलित और प्रामाणिक किताब दुर्गा सप्तशती अब एक नए रूप में सामने आने वाली है. सनातन साहित्य में लगभग 100 सालों से एकछत्र राज करने वाले और धार्मिक साहित्य को घर घर में पहुंचाने वाले गीता प्रेस ने नवरात्र में ही सप्तशती को आर्ट पेपर पर छापने की तैयारी कर ली है. इन पावन नौ दिनों में यह छपकर उपलब्ध हो जाएगी. गोरखपुर स्थित गीता प्रेस में इन्हें नयी ऑफसेट मशीनों से छापा जाएगा.
गीता प्रेस के प्रबंधक लाल मणि तिवारी ने बताया, ‘सप्तशती गीता प्रेस की सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में से एक है. आर्ट पेपर पर सप्तशती में 100 से भी अधिक चित्र शामिल किए गए हैं. देवी के प्रसंगों के अनुरूप अलग-अलग चित्र हैं. इसमें 304 पृष्ठ होंगे और पहले संस्करण में 3000 प्रतियाँ छापी जाएंगी.’
गीता प्रेस की सबसे ख़ास बातों में से एक है कि इसकी किताबों में अशुद्धियां न के बराबर होती हैं इसलिए कठिन से कठिन श्लोक और दूसरे प्रसंग भी आसानी से पढ़े जा सकते हैं. इसकी पहले सिर्फ़ 3,000 प्रतियां छापी जा रही हैं ताकि इसको देख लिया जाए और आवश्यकता अनुसार बदलाव हो सके.
आर्ट पेपर पर दुर्ग सप्तशती में देवी दुर्गा के भव्यतम रूप के चित्र देखने को मिलेंगे. आर्ट पेपर पर धार्मिक साहित्य को छापने की वजह क्या है? इस पर लाल मणि तिवारी बताते हैं कि ‘युवा पीढ़ी भी आज कल धार्मिक साहित्य में रूचि ले रही है. जो लोग सनातन साहित्य पढ़ते हैं उनमें तो सप्तशती की बहुत मान्यता है ही पर चित्रों की संख्या बढ़ाने से इसमें ख़ासतौर पर युवा पीढ़ी की रूचि बढ़ेगी. किताब एक नए और आकर्षक रूप में सामने आएगी.’
फ़िलहाल आर्ट पेपर पर छपने वाली दुर्गा सप्तशती का मूल्य 450 रुपए रखा गया है. गीता प्रेस में इन ख़ूबसूरत तस्वीरों को सही रंग और सटीक हाव-भाव के साथ छापने के लिए पिछले साल लगायी गयी नयी मशीनें काम करेंगी.
जानकार बताते हैं कि गीता प्रेस की किताबों पर छपी तस्वीरों की ख़ास बात ये है कि ये चित्र शास्त्रीय दृष्टि से पूर्ण हैं. शास्त्रों में जिस तरह देवी के शस्त्र हैं, वस्त्र हैं, माला है, नेत्र हैं, वे इन चित्रों में जीवंत हो उठेंगे. साथ ही ध्यान में देवी हों या महिषासुर का वध करते हुए चेहरे पर जो भाव होने चाहिए, वे इन चित्रों में नज़र आएंगे.
गीता प्रेस के ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल कहते हैं, ‘गीता प्रेस आध्यात्मिकता की धरोहर है. समय-समय पर टेक्नोलॉजी में बदलाव कर हमने किताबों की सामग्री को और सुगम करने की कोशिश की है.’ इससे पहले गीता प्रेस श्रीमद्भगवद्गीता और रामचरितमानस को भी आर्टपेपर पर छाप चुकी है.
देवी-देवताओं के स्वरूप से परिचित कराया
गीता प्रेस के धार्मिक साहित्य में योगदान को इसी से समझा जा सकता है कि दुनियाभर में जहां भी सनातन संस्कृति को मानने वाले लोग हैं. उनके घर में गीता प्रेस की कोई न कोई किताब है. उसमें बने चित्र ही लोगों को देवी देवताओं के स्वरूप से परिचित कराते रहे हैं. ये चित्र गोरखपुर में गीता प्रेस के कार्यालय के प्रथम तल पर बने ’लीला चित्र मंदिर’ में मूल रूप में हैं.
बता दें कि गीता प्रेस की शुरुआत 1923 में हुई थी जबकि ‘लीला चित्र मंदिर’ का उद्घाटन 29 अप्रैल 1955 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था.