
सपा प्रमुख अखिलेश यादव 2017 में जब यूपी की सत्ता से बाहर हुए तो सड़क से कटते नजर आए थे. सियासी गठबंधन के विफल प्रयोगों के बीच जनता के मुद्दों पर सड़क पर उनकी मौजूदगी महज प्रतीकात्मक रही. ऐसे में विपक्ष के चेहरे के तौर पर अखिलेश पांच सालों तक सबसे बड़ा आरोप 'निष्क्रियता' का झेलते रहे. वहीं, अब सत्ता में वापसी की टूटी उम्मीदों के बाद भी अखिलेश यादव बदले-बदले नजर आ रहे हैं और सपा की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए उत्तर प्रदेश में सक्रिय नजर आ रहे हैं.
अखिलेश यादव 2022 के चुनाव में भले ही सूबे की सत्ता में सपा की वापसी न कर पाए हों, लेकिन पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन जरूर किया है. ऐसे में अखिलेश ने लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर विधायकी अपने पास रखकर संकेत पहले ही दे दिया था कि सूबे में सक्रिय रहकर सियासी जमीन को मजबूत करेंगे. साथ ही योगी सरकार के खिलाफ सीधे मुखातिब होंगे. इस तरह अखिलेश इन दिनों सूबे में सक्रिय होकर कार्यकर्ताओं के हौसले मजबूत और जनता में अपनी पैठ बनाने में जुट गए हैं.
अखिलेश यादव पहली बार मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर विधायक बने, इसके साथ ही नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर भी उन्होंने किसी दूसरे नेता को बैठाने के बजाय खुद बैठना पसंद किया है. अखिलेश लगातार सक्रिय रहकर अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखने में जुटे हैं, जिसमें पार्टी नेताओं के साथ मिलने जुलने से लेकर अलग-अलग जिलों में भी दौरे कर रहे हैं.
सपा प्रमुख बुधवार को आगरा दौरे पर हैं, जहां पर भीमनगरी महोत्सव हादसे के पीड़ितों से मुलाकात कर सकते हैं. 14 अप्रैल को भीमनगरी महोत्सव मंच पर लाइट स्टैंड गिरने से पूर्व प्रधान की मौत हो गई थी जबकि अजयशील गौतम सहित 10 लोग घायल हो गए थे. इसके अलावा अखिलेश यादव आगरा में सपा पदाधिकारियों और नेताओं के संग बैठक में शामिल होंगे, जिसमें चुनाव में मिली हार के कारणों पर बातचीत कर सकते हैं और फिर उसके बाद शिल्पग्राम रोड स्थित होटल में वैवाहिक कार्यक्रम में भी शामिल होंगे.
यूपी चुनाव नतीजे आने के पांच दिन बाद ही अखिलेश यादव सक्रिय हो गए थे. अखिलेश 15 मार्च को सीतापुर के दौरे पर पहुंचे थे, जहां वो पूर्व मंत्री और सपा नेता नरेंद्र वर्मा के बड़े भाई महेंद्र वर्मा के शांति पाठ में शामिल हुए थे. इस दौरान उन्होंने कहा था कि यूपी विधानसभा चुनाव में सपा की नैतिक जीत हुई है. जनता के सहयोग और सपा के कार्यकर्ताओं के सहयोग से सपा बढ़ रही है और बीजेपी घटी है. वोट का प्रतिशत और सीटें दोनों बढ़ी हैं. अखिलेश ने इस तरह से पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के हौसले को बुलंद रखने का दांव चला था.
रायबरेली में भी पीड़ित परिवार से मिले
वहीं, अखिलेश यादव मंगलवार को रायबरेली के पीड़ित परिवार से भी मिले. रायबरेली जिले के जगतपुर थाना क्षेत्र में दसवीं के एक दलित छात्र की पिटाई और एक दबंग युवक द्वारा उससे अपने पैर चटवाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. सपा ने इस कांड को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा था और मंगलवार को पीड़ित किशोर और परिवार से अखिलेश यादव से मुलाकात की और उन्हें न्याय दिलाने का भरोसा दिया. पीड़ित युवक की मां को एक लाख का चेक और 21 हजार रुपये नगद मदद भी की. इस तरह अखिलेश यादव सूबे में अपनी सक्रियता और प्रासंगिकता बनाए रखने में जुटे हैं.
इससे पहले अखिलेश यादव अपने विधानसभा क्षेत्र का दौरा करने के साथ-साथ मैनपुरी पहुंचे थे, जहां उन्होंने सपा कार्यकर्ताओं के साथ जमीन पर बैठक पर बातचीत की थी. इस दौरान अखिलेश यादव के साथ सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी साथ में थे. एक ही कार से अखिलेश और मुलायम सिंह ने मैनपुरी का दौरा किया था, जिसके जरिए बड़ा सियासी संदेश देने की रणनीति थी.
दरअसल, अखिलेश यादव सांसद रहते हुए ज्यादातर वक्त दिल्ली में रहे, जिसके चलते कई बार उन पर उत्तर प्रदेश से दूरी बनाने के भी आरोप लगे. अखिलेश ने नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी खुद उठाकर पहले ही संकेत दे दिया है कि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद वो यूपी की सियासत पर ध्यान देंगे. अखिलेश भी इस बात को भी बखूबी जानते हैं कि यूपी में सपा की सड़क बची रहेगी, तभी दिल्ली के रास्ते पर चलना, पहुंचना और वहां असर बनाए रखना संभव होगा.
उत्तर प्रदेश की सियासत में अखिलेश यादव विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर हैं, लेकिन सूबे में सक्रिय न होने के आरोप उनपर लगते रहे. लखीमपुर कांड के बाद जरूर अखिलेश सड़क पर उतरे और हिरासत में लिए गए. इससे पहले किसानों के मुद्दे पर भी वो सड़क पर उतरे थे, लेकिन मुलायम सिंह की अगुवाई में विपक्ष में रहते हुए सपा जिस संघर्ष और आंदोलन के लिए जानी जाती थी, वह जज्बा अखिलेश नहीं दिखा सके थे.
ऐसे में अखिलेश यादव अब यूपी में सक्रिय रहते हुए सपा में नई जान फूंकना चाहते हैं और सपा के पुराने जज्बे को वापस दिलाने की कवायद में लग गए हैं.