
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के सामने एक तरफ विरासत को बरकरार रखने की चुनौती है तो दूसरी तरफ सियासत को बचाने का संकट है. इस हालात ने चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव को एक कतार में लाकर खड़ा कर दिया है. सैफई के मुलायम परिवार की सियासत पर संकट की आंच आती देख चाचा-भतीजे के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने लगी और आपसी गिले-शिकवे भुलाकर वो एकता का नारा बुलंद कर मैनपुरी सीट में डिंपल यादव को जिताने निकल पड़े हैं. यह अनायास नहीं है बल्कि इसके गहरे सियासी निहितार्थ हैं?
सपा के विधायक होते हुए भी विधायक दल की बैठक में न बुलाये जाने के दर्द को शिवपाल यादव कई बार सार्वजनिक रूप से इजहार कर चुके हैं, लेकिन सियासी मजबूरी जो न कराए. इसी तरह चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव के लिए चुनाव प्रचार करने को अखिलेश यादव आजमगढ़ भले न गए हों, लेकिन जब मामला अपनी पत्नी डिंपल यादव का आया तो शिवपाल को मनाने के लिए उनके घर गए और फिर रविवार को एक साथ मंच साझा किया, और एकजुटता का संदेश दिया. सोमवार को एक बार फिर से मुलायम कुनबा जसवंतनगर में एक साथ खड़ा नजर आएगा, जहां पर कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देंगे.
बता दें कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि डिंपल यादव को मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत दिलानी है तो वह चाचा शिवपाल के बगैर संभव नहीं है. चाचा का आशीर्वाद नहीं मिला तो बीजेपी आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव की तरह मैनपुरी में भी उसे हरा देगी, क्योंकि सूबे के सियासी हालात अब पहले जैसे नहीं रहे. बीजेपी सूबे की सत्ता में है और लगातार सपा के दुर्ग को एक-एक कब्जाते जा रही है.
अखिलेश-शिवपाल-रामगोपाल एकजुट
मैनपुरी लोकसभा सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए बीजेपी ने रघुराज शाक्य को उतारकर सपा के खिलाफ जबर्दस्त घेराबंदी कर रखी है. मैनपुरी में यादव के बाद दूसरे नंबर पर शाक्य मतदाता हैं. बीजेपी ने इसी के मद्देनजर शाक्य समुदाय का कैंडिडेट उतारा है. ऐसे में भतीजे को चाचा की दरकार महसूस हुई और छह साल के बाद 'नेताजी' की कर्मभूमि मैनपुरी में शिवपाल-अखिलेश-राम गोपाल यादव एक साथ मंच पर नजर आए. शिवपाल यादव पहुंचे तो अखिलेश यादव ने उनका हाथ जोड़कर स्वागत किया और उनके पांव छूकर आशीर्वाद लिया.
राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस का कहना है कि शिवपाल यादव और अखिलेश यादव दोनों की सियासी मजबूरियों के चलते साथ आए हैं, क्योंकि चाचा-भतीजे यह बात समझ चुके हैं कि राजनीतिक दुश्मनी से कुछ मिलने वाला नहीं है. ऐसे में मैनपुरी में सैफई परिवार के बीच जो एकजुटता दिख रही है, वो आने वाले समय में सपा के लिए एक टर्निंग प्वाइंट भी हो सकता है. एक तरफ भतीजे अखिलेश ने समझदारी दिखाई है तो दूसरी तरफ चाचा शिवपाल ने भी धीरज रखा है और देर से ही सही, लेकिन अब पूरा परिवार एकजुट हो गया है.
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के बहाने चाचा-भतीजे फिर से एक मंच पर खड़े दिखे. जसवंतनगर इलाके में अखिलेश यादव ने नेताजी के नाम और शिवपाल यादव ने सैफई परिवार के सम्मान की दुहाई दी. इस तरह से चाचा और भतीजे ने अपने-अपने अंदाज में मतदाताओं को यह समझाने कि कोशिश करते दिखे कि उनके कहने पर एक हो रहे हैं. शिवपाल ने विधानसभा में मिलने वाले मतों का रिकार्ड तोड़ने की अपील की.
चाचा-भतीजे के बीच दूरियां खत्म हुई-अखिलेश
अखिलेश यादव ने कहा कि उपचुनाव ऐसे समय में हो रहे हैं, जब नेताजी हमारे बीच नहीं हैं. पूरे देश की नजरें इस उपचुनाव पर हैं और मैं कह सकता हूं कि पूरा देश समाजवादी पार्टी की ऐतिहासिक जीत का गवाह बनेगा. अखिलेश कहा, 'कई बार लोग कहते हैं कि बहुत दूरियां हैं. आप सबको बता दूं कि चाचा-भतीजे में कभी दूरियां नहीं थीं. चाचा भतीजे में पारिवारिक नहीं बल्कि हमारी राजनीति में दूरियां थीं. मैंने कभी चाचा-भतीजे के रिश्ते में दूरियां नहीं मानीं और मुझे इस बात की खुशी है कि राजनीतिक दूरियां भी आज खत्म हो गईं. इसलिए उसे (भाजपा को) घबराहट हो रही होगी.
आपने कहा एक हो जाओ-हम एक हो गए-शिवपाल
वहीं, मैनपुरी लोकसभा के उपचुनावी मैदान में शिवपाल यादव ने भी इमोशनल कार्ड खेला. उन्होंने कहा कि डिंपल यादव मैनपुरी की बहू हैं और नौजवानों की भाभी है. डिंपल को रिकार्ड मतों से जिताना. परिवार के एकजुटता पर शिवपाल यादव ने कहा कि आपने कहा एक हो जाओ, तो हम एक हो गए हैं. अब आपकी जिम्मेदारी है, बड़ी जीत दिलानी है. एक होकर ही बीजेपी को यूपी में हराया जा सकता है. साथ ही शिवपाल ने यह कहा कि नेताजी जो जिम्मेदारी हम सबके ऊपर छोड़ गए है, उसका निर्वहन अखिलेश यादव को करना है.
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में सियासी समीकरण के लिहाज से जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र सबसे अहम है. यहां से सपा के खाते में एकमुश्त वोट जाता रहा है. पिछले चुनाव का इतिहास यही रहा है. लोधी और शाक्य बहुल भोगांव विधानसभा क्षेत्र में हमेशा से बीजेपी का बोलबाला रहा है, लेकिन जसवंतनगर के इलाके में मतों की गिनती शुरू होते ही सपा आगे निकलती रही है. सपा की जीत में जसवंतनगर की अहम भूमिका रही है और शिवपाल यादव 1996 से लगातार यहीं से विधायक हैं.
जसवंतनगर के गणित ने चाचा-भतीजे को एक किया
जसवंतनगर सीट के सियासी गणित को देखते हुए शिवपाल यादव को मनाना अखिलेश यादव के लिए मजबूरी बना गया था तो दूसरी तरफ शिवपाल यादव भी समझ चुके हैं कि सपा के अलग होकर कोई बड़ा करिश्मा नहीं दिखा सके हैं. इस तरह से सियासी मजबूरी के चलते ही चाचा-भतीजे एक साथ आए हैं, क्योंकि दोनों अलग-अलग रहते हुए अपना-अपना सियासी हश्र देख चुके हैं. मुलायम कुनबे में कलह के चलते सपा चार चुनाव उत्तर प्रदेश में हार चुकी है और मैनपुरी का उपचुनाव अखिलेश यादव के सियासी भविष्य को तय करेगा.
विधानसभा चुनाव में सपा के साथ मिलाकर धोखा खा चुके शिवपाल यादव इस बार अपने बेटे आदित्य यादव के साथ-साथ अपनी पार्टी के प्रमुख नेताओं का भी सपा में सम्मान चाहते हैं, इसलिए मैनपुरी उपचुनाव में अखिलेश की पहल का इंतजार कर रहे थे. बीजेपी के सियासी चक्रव्यह को देखते हुए अखिलेश के पास शिवपाल को मनाने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं दिख रहा था. सियासी मजबूरी में ही सही, लेकिन शिवपाल-अखिलेश साथ खड़े हैं. ऐसे में सवाल यह है कि चाचा-भतीजे की एकजुटता सिर्फ मैनपुरी तक सीमित रहेगी या फिर स्थाई तौर पर मुलायम कुनबे की कलह पर विराम लगेगा?