
अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का काम शुरू होने के बाद मुस्लिम समाज को मिली 5 एकड़ जमीन पर गणतंत्र दिवस के मौके पर मस्जिद की नींव रखी गई है. यह मस्जिद अयोध्या जिले के धनीपुर गांव में बनेगी. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा मस्जिद निर्माण के लिए गठित इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ने इस मस्जिद का नाम स्वतंत्रता सेनानी मौलवी अहमदुल्ला शाह के नाम पर रखने की तैयारी की है.
उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ सेंट्रल बोर्ड के अध्यक्ष जुफर जुफर फारूकी सहित इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के सभी 9 ट्रस्टी सदस्यों से 6 सदस्यो ने पौधे लगाकर अयोध्या के धनीपुर गांव में मस्जिद का शिलान्यास किया. फाउंडेशन के सचिव अतहर हुसैन ने बताया कि गणतंत्र दिवस के मौके पर पहले मस्जिद की जमीन पर ध्वजारोहण किया गया. राष्ट्रगान के बाद पांच एकड़ जमीन पर वृक्षारोपण के साथ मस्जिद का शिलान्यास किया गया है. इस मौके पर ट्रस्ट के हर एक सदस्य ने एक पौधा लगाया.
मस्जिद निर्माण के लिए सोमवार को मिट्टी की जांच करने का काम शुरू हो गया.है. गुंजन स्वायल कंपनी द्वारा निर्धारित पांच एकड़ में तीन स्थानों पर स्वायल टेस्टिंग के लिए स्थान चिह्नित किया गया है. इसमें एक स्थान से मिट्टी निकाली गई है साथ ही अन्य दो स्थानों से मिट्टी निकाली जाएगी. यह काम तीन दिन तक चलेगा. इसके बाद ट्रस्ट को एफसीआरए की हरी झंडी मिलते ही मस्जिद निर्माण का कार्य शुरू हो जाएगा और उसे बाद यह तय हो पाएगा कि कितने दिनों में मस्जिद बनकर तैयार होगी.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मस्जिद के लिए मिली पांच एकड़ जमीन पर मस्जिद के अलावा पांच एकड़ भूखंड के बीचोबीच अस्पताल, पुस्तकालय, शैक्षिक और सांस्कृतिक रिसर्च सेंटर बनाने की रूप रेखा ट्रस्ट ने बनाया है. माना जा रहा है कि जल्द ही मस्जिद का निर्माण कार्य भी शुरू हो जाएगा.
कौन हैं अहमदुल्ला शाह ?
भारत की पहली स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई (1857) में अवध का प्रतिनिधित्व करने वाले मौलवी अहमदुल्ला शाह ने भारत की अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में काफी अहम भूमिका निभाई थी. उन्हें हिन्दू-मुस्लिम एकता की अवध में नींव सींची थी. जब पूरा भारत अंग्रेजों की गुलामी से चुप था, तब भी अहमदुल्ला शाह अंग्रेजों से अकेले लोहा लेते थे.
जब 1857 में भारत अपनी स्वतंत्रता की पहली लड़ाई लड़ रहा था. तो अवध को जीत दिलाने के लिए अब्दुल्लाह शाह ने जिम्मा उठाया था. किताब-'भारत में अंग्रेजी राज' में प्रतिष्ठित लेखक सुंदरलाल ने लिखा है कि 'बगावत की जितनी अच्छी तैयारी अवध में थी, वो कहीं और नहीं देखी गई. जब भारत की बगावत के बाद ब्रिटिश सरकार ने बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर लिया था तब भी उसके अगले साल मार्च तक अब्दुल्लाह शाह लखनऊ में ब्रिटिश सेना का सामना कर रहे थे और उन्हें माकूल जवाब दे रहे थे. मौलवी अहमदुल्ला शाह की कर्मभूमि फैजाबाद रही इसीलिएउन्हें अहमदुल्लाह शाह फैजाबादी भी लोग बुलाते थे.
मौलवी अहमदुल्ला शाह ने परास्त होना कभी सीखा ही नहीं. अंग्रेजी बागियों से आमने-सामने की लड़ाई में भी उन्हें वह अपने करीब तक नहीं आने देते थे. जिससे परेशान होकर अंग्रेजी सरकार ने उनके सिर की कीमत 50 हजार का इनाम रख दिया. उन पर 1858 में इतना बड़ा इनाम रखा गया था. जब मौलवी अपने पीछे पूरी अंग्रेजी सेना को अवध में यहां से वहां घुमा रहे थे. तब इसी कीमत के लालच में शाहजहांपुर जिले के राजा जगन्नाथ सिंह के भाई बलदेव सिंह ने 15 जून 1858 को उन्हें धोखे से गोली चलाकर मार दिया था.
सामाजिक भाईचारा और देश प्रेम को बढ़ाने को लेकर मौलवी अहमदुल्ला शाह के नाम पर इस मस्जिद का नाम रखा जा सकता है. माना जा रहा है कि मस्जिद का मौलवी अहमदुल्ला शाह नाम रखने से, इस देश में हिंदू और मुसलमान एकता को बढ़ावा मिलेगा जिससे ये दोनों धर्म एक दूसरे के और करीब आएंगे.