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अखिलेश की मीटिंग में नहीं गए आजम खान और साथी विधायक, प्लान-B पर कर रहे काम?

सपा विधायक आजम खान सीतापुर जेल से बाहर आ चुके हैं, लेकिन अभी तक सपा प्रमुख अखिलेश यादव से उनकी मुलाकात नहीं हो सकी. लखनऊ में रविवार को सपा की हुई बैठक में आजम खान और उनके समर्थक विधायक नहीं पहुंचे जबकि यह बैठक अखिलेश ने बुलाई थी. वहीं, आजम खान ने जेल से छूटने के बाद ही मुस्लिम सियासत को लेकर अपनी मंशा जाहिर कर दी थी और अब उस दिशा में कदम भी बढ़ा दिए हैं.

मौलाना तौकीर रजा और आजम खान मौलाना तौकीर रजा और आजम खान
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 23 मई 2022,
  • अपडेटेड 10:29 AM IST
  • आजम खान फिर से मुस्लिम सियासत को एकजुट करेंगे
  • मौलाना तौकीर रजा और आजम खान के बीच बैठक हुई
  • अखिलेश यादव से क्यों दूरी बनाकर चल रहे आजम खान

सवा दो साल के बाद जेल से बाहर आए आजम खान सपा की बैठक में शामिल नहीं हुए. यह बैठक सपा प्रमुख अखिलेश यादव की अध्यक्षता में बुलाई गई थी, जिसमें सपा के सभी विधायक और एमएलसी को शामिल होना था. ऐसे में आजम खान और उनके करीबी विधायकों ने अखिलेश की बैठक से किनारा कर रखा था. आजम और उनके बेटे अब्दुल्ला ही नहीं बल्कि नसीर अहमद खान और शहजील इस्लाम जैसे विधायक भी बैठक में शामिल नहीं हुए. 

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अखिलेश यादव की बैठक में शामिल होने की बजाय आजम खान ने रामपुर में डेरा डाले रखा. आजम अपने करीबियों और उनके परिजनों से मिलने जुलने का सिलसिला जारी रखा है. रविवार को रामपुर जेल में बंद गुड्डू मसूद से मिले तो बरेली से सपा विधायक शहजील इस्लाम के साथ बैठक की. इससे पहले रात में बरेली के मौलाना तौकीर रजा के साथ भी आजम खान ने मीटिंग की थी. इस तरह से आजम खान जेल से छूटने के बाद एक बार से मुस्लिम सियासत का सियासी तानाबाना बुनना शुरू कर दिया है. 

अखिलेश यादव से नाराजगी के सवाल पर आजम खान ने कहा 'आपसे मुझे नाराजगी की सूचना मिल रही है. नाराज होने के लिए आधार चाहिए, मैं खुद ही निराधार हूं तो वो आधार कहां से आएगा, मेरा अपना ही कौन सा आधार है. किसी से नाराज होने की हैसियत में नहीं हूं.' मुलाकात के लिए अखिलेश के नहीं आने के सवाल पर आजम खान ने कहा, 'मैं ना किसी के आने पर कोई टिप्पणी करूंगा ना किसी के ना आने पर, जो आए उनका शुक्रिया, जो नहीं आए, उनके कोई कारण रहे होंगे, उनका भी शुक्रिया. उन्होंने कहा कि हमें किसी से कोई शिकायत नहीं है. हमारे लिए सपा और दूसरे दलों के नेताओं ने जो किया वह कोई कम नहीं था. 

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आजम खान भले ही अखिलेश यादव को लेकर सीधे तौर पर कुछ न बोल रहे हों, लेकिन जिस तरह से सपा विधानमंडल की बैठक से अपने करीबी विधायकों के साथ दूरी बनाए रखी. इसके अलावा उन्होंने मुसलमानों की राजनीति के मुद्दे पर देवबंद से लेकर बरेली उलमाओं तक से संपर्क करने की बात कही और अब उस दिशा में कदम बढ़ा दिया है. मौलाना तौकीर रजा के साथ रविवार को हुई उनकी मुलाकात को इसी संबंध में जोड़कर देखा जा रहा है. 

आजम से मिलने के बाद तौकीर रजा ने कहा कि आजम खान के ऊपर हुए जुल्मों का हिसाब लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि मैं समझता हूं कि आजम खान को नई जिंदगी मिली है और उनसे अल्लाह को कोई बड़ा काम लेना है. इसलिए अल्लाह ने उनकी जिंदगी बख्श दी है. साथ ही तौकीर रजा ने कहा कि आजम खान मौजूदा हालात से बेहद असंतुष्ट दिखे और सियासी बदलाव के पक्ष में हैं. मौलाना तौकीर ने बताया कि मैंने आजम खान से कहा कि सपा जहां है, उसको वहां पहुंचाने में आपका हाथ है. अगर आप अलग हो जाएंगे तो सपा जमीन पर आ जाएगी.  

मौलाना तौकीर रजा खान लंबे समय से सपा पर हमलावर रहे हैं. वह कई बार कह चुके हैं कि सपा ने मुसलमानों को धोखा दिया हैय वोट तो लिया लेकिन उनके हक के लिए साथ नहीं दिया. आजम खान से मुलाकात के बाद मौलाना ने कहा कि सपा के पास कोई अपना वोट बैंक नहीं है. वह सिर्फ मुसलमानों के बल पर ही सियासी वजूद में है. मौलाना ने कहा कि सपा का असल वोट बैंक यादव होना चाहिए, लेकिन 50 प्रतिशत से ज्यादा यादव भाजपा को वोट देते हैं. ऐसी ही बातें पिछले दिनों आजम खान के समर्थकों ने कही थी. 

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बता दें कि आजम खान की राजनीति पूरी तरह से मुस्लिम सियासत के इर्द-गिर्द सिमटी रही है. ऐसे में आजम खान फिर से उसे मजबूत करने की कवायद में हैं. मुरादाबाद के दंगे से लेकर अयोध्या आंदोलन तक आजम खान के आक्रामक तेवर ने रामपुर ही नहीं बल्कि सूबे भर में उनकी मुस्लिम मतदाताओं पर मजबूत पकड़ बनी थी, जिसके दम पर वो मुलायम सिंह यादव की आंख का तारा बने हुए थे. लेकिन जेल में जाने के बाद आजम खान की सियासत पकड़ सपा में कमजोर हुई है. 

आजम सवा दो साल के बाद जेल से छूटकर आए हैं. ऐसे में उन्हें सपा के साथ कड़वे अनुभव हुए हैं. आजम खां ने अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव पर कोई टिप्पणी तो नहीं की, लेकिन अंदर ही अंदर यह दर्द है कि सपा के समर्थन की जब उन्हें जरूरत थी, वह नहीं मिला. 27 महीने में अखिलेश महज एक बार आजम से मिलने पहुंचे जबकि कभी मुलायम सिंह ने उन पर लगाए केसों पर नहीं बोले और न ही कभी जेल मिलने गए. आजम खान के जेल से छूटने के वक्त भी चाचा शिवपाल मौजूद रहे लेकिन अखिलेश गायब. उन्होंने सिर्फ ट्वीट कर अपनी फर्ज अदायगी की. 

वहीं, आजम खान भले ही खुद  सपा से अलग न करें, क्योंकि सपा छोड़ने के सवाल पर जिस तरह से उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि वो हार्दिक पटेल नहीं है, लेकिन मुस्लिम सियासत की दिशा में उन्होंने जिस तरह का बयान दिया है. इससे साफ है कि मुस्लिम सियासत के जरिए अपनी सियासी हैसियत मजबूत करना चाहते हैं. इसीलिए उन्होंने मुसलमानों में देवबंदी और बरेली फिरके से लेकर मुस्लिम संगठनों के साथ बैठक करने की बात कही है और अब उसे अमलीजामा पहनाने का काम भी शुरू कर दिया है. 

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दरअसल, उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से नब्बे के दशक के तरह सियासी माहौल बन रहा है. नब्बे के दशक में बाबरी का मुद्दा गर्माया हुआ था तो मौजूदा समय में काशी की ज्ञानवापी मस्जिद से लेकर मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद विवाद खड़ा हो गया है. अखिलेश यादव से लेकर तमाम तथाकथित सेकुलर राजनीतिक दल चुप्पी साध रखी है, जिसके चलते मुस्लिम समुदाय में मंथन का दौर शुरू हो गया है. दिल्ली से लेकर लखनऊ तक मुस्लिम संगठनों की बैठकें चल रही है तो आजम खान भी मुस्लिम सियासत को लेकर मंथन शुरू कर दिए हैं. 

आजम खान ने बरेली फिरके के बड़े मौलाना तौकीर रजा के साथ बैठक की है तो देवबंदी उलेमाओं के साथ मंथन का संदेश दिया है. माना जा रहा है कि सोमवार को लखनऊ में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लोगों के साथ बैठक कर सकते हैं. साथ ही नदवा के कुछ लोगों को साथ भी उनकी मीटिंग होनी है. सूत्रों की मानें तो आजम खान ने अपने करीबी मुस्लिम उलेमा और मुस्लिम नेताओं के संदेश भेजवा दिया है. इस तरह आजम खान फिर से मुस्लिम सियासत को लेकर सियासी तानाबना बुनना शुरू कर दिया है, जो अखिलेश के लिए चिंता पैदा कर सकता है. 

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