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किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की पुण्यतिथि पर 'टिकैत बंधुओं' के खिलाफ भारतीय किसान यूनियन में आखिरकार बगावत हो ही गई और किसान यूनियन के दो फाड़ हो गए. गठवाला खाप के चौधरी राजेंद्र सिंह मलिक के संरक्षण और राजेश सिंह चौहान के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन से अलग भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) नाम से नया संगठन बनाया गया है. इस तरह किसान आंदोलन का अहम चेहरा रहे राकेश टिकैत और नरेश टिकैत किसान यूनियन में अलग-थलग पड़ गए हैं.
हालांकि, भारतीय किसान यूनियन से टिकैत बंधुओं को ठिकाने लगाने की पटकथा तो 10 मार्च को यूपी चुनाव नतीजे आने के साथ ही लिख दी गई थी. राकेश टिकैत और किसान यूनियन से बगावत कर जिन लोगों ने अलग भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक संगठन बनाया है, ये तमाम वो लोग हैं, जिनकी बीजेपी से नजदीकियां भी जगजाहिर हैं.
गठवाला खाप के चौधरी राजेंद्र सिंह मलिक जिन्हें संगठन का संरक्षक बनाया गया है, वो बीजेपी और योगी सरकार के हर कदम पर साथ खड़े नजर आते हैं तो धर्मेंद्र मलिक योगी सरकार में कृषि समृद्ध आयोग के सदस्य रह चुके हैं. ऐसे में किसान यूनियन से राकेश टिकैत को देर-सवेर ठिकाने लगना तय माना जा रहा था.
लखनऊ में किया गया नए संगठन का गठन
भारतीय किसान यूनियन में एक और फाड़ होने से टिकैत बंधुओं को बड़ा झटका लगा है. राजेंद्र सिंह मलिक की अध्यक्षता और किसान नेता अनिल तालान के संचालन के बीच रविवार को लखनऊ में भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक का गठन किया गया, जिसका अध्यक्ष राजेश सिंह चौहान को बनाया गया. इसके अलावा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मांगेराम त्यागी, राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक, युवा प्रदेश अध्यक्ष चौधरी दिगंबर और प्रदेश अध्यक्ष हरिनाम सिंह वर्मा बनाए गए हैं. ये सभी सदस्य मूल भारतीय किसान यूनियन में किसी न किसी अहम पद पर थे, जिन्होंने टिकैट बंधुओं के खिलाफ बागी रुख अपनाया.
'टिकैट बंधु राजनीति से प्रेरित'
अध्यक्ष बने राजेश चौहान ने कहा कि भारतीय किसान यूनियन अपने किसानों के मूल मुद्दों से भटक गई और अब राजनीति करने लगी है. राकेश टिकैत और नरेश टिकैत राजनीति से प्रेरित हैं. इसीलिए भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक बनाने की आवश्यकता महसूस हुई. हम किसी सियासी दल से नहीं जुड़ेंगे और यह संगठन केवल किसान हित में काम करेगा. हम महेंद्र सिंह टिकैत के मार्ग पर चलने वाले हैं, हम अपने सिद्धांतों के विपरीत नहीं जाएंगे.
हालांकि, राकेश टिकैत को इस संभावित टूट का एहसास पहले से था और उन्हें भनक लग चुकी थी. लखनऊ में शुक्रवार से शनिवार तक टिकैत रुक कर किसान नेताओं को मनाते रहे, लेकिन जब उन्हें लग गया कि अब उनकी पार्टी में टूट तय है तो वह चुपचाप मुजफ्फरनगर निकल गए. वहीं, भारतीय किसान यूनियन के सैकड़ों नेताओं और पदाधिकारियों ने एक सुर में राकेश टिकैत और नरेश टिकैत बंधुओं पर राजनैतिक होने, एक दल विशेष के लिए काम करने का आरोप लगाया.
दरअसल, कृषि कानून के खिलाफ शुरू हुआ किसान आंदोलन बीजेपी के लिए सियासी टेंशन बन गया था. किसान आंदोलन का चेहरा रहे राकेश टिकैत ने सरकार का विरोध और बीजेपी का विरोध उस हद तक किया था कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार दोबारा सत्ता में ना लौटे. राकेश टिकैत किसान आंदोलन के साथ-साथ विपक्ष का चेहरा बन गए थे और चुनाव के दौरान घूम-घूम कर किसानों के मुद्दों के साथ-साथ ईवीएम के मुद्दे उठाते रहे और किसे वोट करें, किसे ना करें यह भी बताते रहे.
वोट से चोट देने का ऐलान कर रहे थे टिकैत
राकेश टिकैट बीजेपी को वोट से चुनाव में चोट देने का ऐलान खुलकर कर रहे थे जबकि मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय कर चुकी थी. इसके बावजूद राकेश टिकैट ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. राकेश टिकैत को भी यह लगने लगा था कि वो यूपी में योगी सरकार हटाकर और अखिलेश-जयंत की जोड़ी की सरकार बनवाकर वह देश के सबसे बड़े किसान नेता बन जाएंगे.
पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक राकेश टिकैट किसानों को बीजेपी सरकार के खिलाफ खुलेआम वोट करने का अह्वावन करते दिखाई दिए और चुनाव में बीजेपी के खिलाफ चुटिया बांध लेना भी उन्हें भारी पड़ा. ऐसे में यूपी चुनाव के नतीजे आते ही और दोबारा से योगी सरकार बनने के साथ ही लगभग यह तय हो गया था कि अब भारतीय किसान यूनियन और 'टिकैत बंधुओं' पर चोट पड़ना लाजमी है, क्योंकि सीएम योगी आदित्यनाथ के बारे में कहा जाता है कि वो वक्त आने पर अपना सियासी हिसाब जरूर बराबर करते हैं.
राजेंद्र मलिक बीजेपी के साथ खड़े नजर आए
उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आने के साथ ही राकेश टिकैट के खिलाफ भारतीय किसान यूनियन में बगावत तय थी, जिसमें अहम भूमिका गठवाला खाप के बाबा राजेंद्र सिंह मलिक ने निभाई. राजेंद्र सिंह मलिक के बीजेपी के साथ रिश्ते जगजाहिर हैं. राकेश टिकैट ने जब बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था तो राजेंद्र सिंह मलिक ही सरकार के पक्ष में खड़े थे. गठवाला खाप राकेश टिकैट की मुजफ्फरनगर रैली में शामिल न होने से लेकर बीजेपी के तत्कालीन विधायक उमेश मलिक के समर्थन में खुलकर खड़े थे.
गठवाला खाप के बाबा राजेंद्र सिंह मलिक सरकार के हर कदम का स्वागत करते नजर आए थे. लखनऊ में सीएम योगी से भी जाकर मुलाकात की थी तो यूपी चुनाव के बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जब जाट खापों की बैठक की तो ये उसमें भी शामिल हुए थे. इन्हीं के संरक्षण में भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक संगठन का गठन किया गया है. राकेश टिकैत के साथ साये की तरह रहने वाले धर्मेंद्र मलिक भी गठवाला खाप से आते हैं और किसान यूनियन के अहम लोगों में शामिल थे, लेकिन अब इन्होंने भी टिकैत का साथ छोड़ दिया है.
धर्मेंद्र मलिक की योगी सरकार से नजदीकियां
सूत्रों की माने तो धर्मेंद्र मलिक मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे, पर राकेश टिकैत का उन्हें साथ नहीं मिल सका. इसी के चलते धर्मेंद्र मलिक भी नाराज चल रहे थे और बीजेपी के संग उनके रिश्ते पहले से भी बेहतर रहे हैं, क्योंकि योगी सरकार के पहले कार्यकाल में किसान समृद्ध आयोग के सदस्य रह चुके हैं. वहीं, चौधरी दिगंबर की पत्नी बिजनौर से जिला पंचायत सदस्य हैं और अध्यक्ष पद के चुनाव में उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में अपना वोट किया था.
भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के अध्यक्ष बने राजेश चौहान स्व. महेंद्र सिंह टिकैत के दौर से किसान यूनियन के साथ जुड़े रहे हैं. राजेश चौहान ठाकुर समुदाय से आते हैं और यूपी में इन दिनों ठाकुर समुदाय का झुकाव जगजाहिर है. सूबे की सियासत में चर्चा है कि में योगी सरकार ने इन तमाम कड़ियों को जोड़कर राकेश टिकैत और भारतीय किसान यूनियन के भीतर बगावत को हवा दी और दो फाड़ हो गए.
क्या भाकियू के नए संगठन को असल मानेगी सरकार
माना जा रहा है कि भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक अब सरकार के साथ कदमताल मिलाएगा और सरकार इसी किसान संगठन को ही असली भाकियू मानकर चलेगी. ऐसे में सरकार ने राकेश टिकैत को पैदल करने का सियासी दांव उनके करीबी नेताओं के जरिए चल दिया है. ऐसे में अब असली भारतीय किसान यूनियन और नकली भारतीय किसान यूनियन की लड़ाई शुरू होगी.
बता दें कि यूपी के जिलों में भारतीय किसान यूनियन के नेता हाशिये पर दिख रहे हैं. चुनाव के बाद से ही अधिकारियों ने उनकी बातों को सुनना तो दूर, उनसे मिलने से इनकार कर दिया. इसके बाद से नेताओं को लगा कि अब जिले और तहसील में किसान संगठन चलाना मुश्किल हो जाएगा और इन्हीं नाराज़ होते नेताओं की बगावत को हवा दी गई. इस तरह से एक तीर से दो शिकार किए हैं, जहां एक तरफ किसान यूनियन से टिकैत बंधु को ठिकाने लगाने का कदम उठाया गया तो दूसरी तरफ किसान यूनियन को दो फाड़ हए हैं.
पश्चिम से लेकर पूर्वांचल तक किसान संगठन का आधार
किसान यूनियन में बगावत का असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जितना पड़ेगा उससे कहीं ज्यादा अवध और पूर्वांचल के इलाके में भी होगा. राजेश सिंह चौहान और हरनाम सिंह वर्मा सरीखे नेता सेंट्रल यूपी से हैं. किसान आंदोलन और खासकर भारतीय किसान यूनियन के बड़े चेहरे थे. वहीं, मलिक खाप के प्रमुख पहले से ही टिकैत से नाराज थे, जिन्होंने मिलकर राकेश टिकैत के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया और अलग अपना संगठन खड़ा कर दिया.
राकेश टिकैत भले ही यह दावा करें कि इन नेताओं के जाने से भारतीय किसान यूनियन पर कोई असर नहीं पड़ेगा और उन्हें भाकियू के संगठन से निकालकर वो सब ठीक कर लेंगे. लेकिन बगावत का झंडा बुलंद करने वाले ये किसान नेता किसानों के बीच बड़ी पैठ और आधार रखते हैं. ऐसे में राजेश चौहान ने जिस तरह से कहा कि 33 साल में जितने भी हिंदुस्तान में किसान आंदोलन हुए हैं, सभी में कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा.
1987 को हुआ था भाकियू का गठन
एक मार्च 1987 को महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों के मुददे को लेकर भाकियू का गठन किया था. इसी दिन ही करमूखेड़ी बिजलीघर पर पहला धरना शुरू किया. इस धरने में हिंसा हुई, तो आंदोलन उग्र हो गया और पीएसी के सिपाही और एक किसान की गोली लगने से मौत हो गई. पुलिस के वाहन फूंक दिए गए. बाद में बिना हल के धरना समाप्त करना पड़ा. 17 मार्च 1987 को भाकियू की पहली बैठक हुई, जिसमें निर्णय लिया गया कि भाकियू किसानों की लड़ाई लड़ेगी और हमेशा गैर-राजनीतिक रहेगी. हालांकि, न तो महेंद्र सिंह टिकैत गैर-राजनीतिक रह पाए थे और न ही टिकैत बंधु. किसान यूनियन में दो फाड़ की वजह भी राजनीतिक वर्चस्व बनी.