
अयोध्या (Ayodhya) मौजूदा समय में ऐसा हॉट केक है जिसे हर कोई चखना चाहता है. इसलिए अयोध्या आंदोलन से फर्श से अर्श पर पहुंची बीजेपी (BJP) जहां इसे अपने गढ़ में अपने लिए चुनौती की तरह ले रही है तो वहीं अयोध्या से संकेत देकर यूपी का चुनावी सफर शुरू करने वाली राजनीतिक पार्टियां यह दलील देती हैं कि राम और अयोध्या पर सिर्फ बीजेपी का कॉपीराइट नहीं है. इसी चुनावी आरोप-प्रत्यारोप के बीच साधु-संतों का विरोध भी अहम हो जाता है जो कह रहे हैं कि कल तक जिनके लिए अयोध्या अछूत थी आज उन्हें भी अयोध्या और राम की याद आ गई है.
दरअसल, आम आदमी पार्टी अयोध्या से फुल चुनावी मोड में आना चाहती है, लेकिन इसका जमकर विरोध किया जा रहा है. सीएम अरविंद केजरीवाल 26 अक्टूबर को अयोध्या में हनुमानगढ़ी और रामलला का दर्शन पूजन करेंगे, लेकिन रविवार को अयोध्या के संतों द्वारा उनकी यात्रा का विरोध करने के बाद सोमवार को अयोध्या की उनकी कई होर्डिंग पर कालिख पोत दी गई है.
आरोप है कि उन्होंने हमेशा अयोध्या और श्री राम का विरोध किया और अब जब भव्य श्री राम जन्मभूमि मंदिर बन रहा है तो वह चुनावी लाभ लेने के लिए अयोध्या आ रहे हैं. इससे पहले वो कहां थे ?
इसके पहले दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया 13 सितंबर को राज्य सभा सदस्य संजय सिंह के साथ अयोध्या में आ चुके हैं. उन्होंने हनुमानगढ़ी और रामजन्म भूमि में दर्शन के बाद कहा था कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली और देश में जो भी काम कर पा रहे हैं वो भगवान राम की कृपा और संतों के आशीर्वाद से ही कर पा रहे हैं. उन्होंने संतों से विजयी भव का आशीर्वाद भी लिया था. हालांकि उस समय भी अयोध्या के कई बड़े संतों ने मनीष सिसोदिया की इस पूरी यात्रा को राजनैतिक लाभ लेने की यात्रा बताकर विरोध किया था.
बसपा का हुआ था विरोध
बहुजन समाज पार्टी ने 23 जुलाई को अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन के जरिये जो शुरुआत की थी उसमें अब कई अन्य पार्टियां भी जुड़ गई है. बसपा नेता और राज्यसभा सदस्य सतीश मिश्रा ने ना सिर्फ पार्टी पदाधिकारियों के साथ हनुमान गढ़ी और रामजन्म भूमि जाकर रामलला के दर्शन किए थे. बल्कि सरयू आरती में शामिल होने के बाद मंत्रोच्चार के बीच 100 लीटर दूध से दुग्धाभिषेक भी किया था. इसके बाद सतीश मिश्रा ने यहां तक कह दिया था कि अगर बीजेपी सोचती है कि राम सिर्फ उनके हैं, तो यह उसकी संकीर्ण सोच है. हम रोज सुबह उठकर भगवान राम की पूजा करते हैं. भगवान राम सबके हैं.
उस समय भी अयोध्या के साधु-संतों ने बसपा के अयोध्या और ब्राह्मण प्रेम पर विरोध करते हुए सवाल खड़ा किया था कि जो हमेशा राम और ब्राह्मण विरोधी रहे उनको अचानक अयोध्या कैसे याद आ गयी. इसी के बाद यह सवाल भी खड़ा हुआ था कि बदलते नारों के बीच क्या 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बसपा का चेहरा भी बदलने वाला है और यह रणनीति उन्हें कितना फायदा पहुंचा सकती है.
असदुद्दीन ओवैसी का भी हुआ था विरोध
असदुद्दीन ओवैसी भी 2022 के यूपी चुनाव को लेकर अपनी जमीन तैयार करने के लिए अयोध्या आ चुके हैं. अयोध्या जनपद की पांच विधानसभा सीट में से रुदौली विधानसभा में सितंबर के पहले सप्ताह में रैली कर चुके हैं. उनके चुनावी होर्डिंग में अयोध्या की जगह फैजाबाद लिखा था इसलिए नाम को लेकर जमकर सियासी महाभारत भी हुई थी.
बाबरी मस्जिद के पूर्व मुद्दई रहे इकबाल अंसारी ने तो विरोध में ये तक कह दिया था कि ओवैसी जैसे लोगों की अयोध्या में कोई जरूरत नहीं है और हिंदुस्तान के मुसलमानों को ओवैसी से सावधान रहना चाहिए. इसी तरह साधु-संतों ने कहा कि औवेसी ने जानबूझकर अयोध्या की जगह फैजाबाद लिखवाया. क्योंकि अयोध्या उनको चुभती है.