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Gyanvapi Masjid Row: ब्रिटिश आर्किटेक्ट ने किया मंदिर होने का दावा, 19वीं सदी में लिखी थी किताब

ब्रिटिश लेखक ने 19वीं सदी में लिखी अपनी किताब 'Benares Illustrated' में काशी का इतिहास, संस्कृति, घाट, काशी के लोग और सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानवापी परिसर में मौजूद मंदिर के बारे में जानकारी दी है.

फाइल फोटो फाइल फोटो
तेजश्री पुरंदरे
  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2022,
  • अपडेटेड 10:58 AM IST
  • ब्रिटिश आर्किटेक्ट ने 1831 में लिखी थी किताब
  • काशी का इतिहास, संस्कृति, घाट, ज्ञानवापी के बारे में जानकारी

काशी के इतिहास को लेकर ब्रि​टिश विद्वान और लेखक जेम्स​ प्रिंसेप ने Benares Illustrated नाम की किताब लिखी. 19वीं सदी में लिखी गई इस किताब में काशी से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी को उसकी तह तक जाकर लिखा गया है. इस किताब में उन्होंने काशी का इतिहास, काशी की संस्कृति, काशी के घाट, काशी के लोग और सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानवापी परिसर में मौजूद मंदिर के बारे में जानकारी दी है.

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ब्रिटिश वास्तुकार, योजनाकार और मानचित्रकार जेम्स प्रिंसेप ने औरंगजेब द्वारा निर्मित 'ज्ञानवापी मस्जिद' को पुनर्स्थापित करने के विचार के साथ काशी शहर का व्यापक सर्वेक्षण किया. उन्होंने इस सर्वेक्षण को लिथोग्रफी के जरिए समझाया है. क्योंकि उस समय पेंटिंग और कलाकृतियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था. लिथोग्राफी तकनीक की मदद से उन्होंने वहां मौजूद हर एक दृश्य को कागज पर उकेरा. इस किताब में जेम्स प्रिंसेप ने जानकारी को सबूतों के साथ पेश करने के लिए लिथोग्राफी तकनीक का इस्तेमाल किया. 

लिथोग्राफी एक्सपर्ट बॉबी कोहली बताते हैं कि वैसे तो लिथोग्राफी कई तरह की होती है लेकिन जेम्स प्रिंसेप ने इस किताब में मेटल लिथोग्राफी का इस्तेमाल किया है. वे बताते हैं कि मेटल लिथोग्राफी में मेटल प्लेट का इस्तेमाल किया जाता है. उसके बाद मेटल पर इनस्क्रिप्शन किया जाता है. वे कहते हैं कि जेम्स प्रिंसेप की किताब में मौजूद लिथोग्राफी को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह 19वीं शताब्दी में की गई थी. और जिस तरह से इसकी बनावट है इससे यह साबित होता है कि लेखक ने इसे बहुत ही गहराई से अध्ययन करके ही बनाया है.

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क्या है लिथोग्राफ़ी?

लिथो छपाई (Lithography) पत्थर पर चिकनी वस्तु से लेख लिखकर अथवा डिज़ाइन बनाकर, उसके द्वारा छाप उतारने की कला है. इसमें मुद्रणीय और अमुद्रणीय क्षेत्र एक ही तल पर होते हैं लेकिन डिज़ाइन चिकनी स्याही से बने होने के कारण और बाकी सतह नम रखी जाने के कारण, इंक रोलर, इंक को डिजाईन पर ही छाप पाता है. 

विश्वेश्वर का पुराना मंदिर

जेम्स प्रिंसेप ने अपनी किताबों में ज्ञानवापी मस्जिद के बारे में बताया कि यह दृश्य दक्षिण-पश्चिम कोने से लिया गया उस समय जुम्मा मस्जिद या शहर की प्रमुख मस्जिद कहा जाता था. वह बताते हैं कि "हिंदू दीवारों" के ऊपर गुंबद और मीनार, औरंगजेब का काम है, और मकबरें भी एक ही तारीख के हैं.

वह लिखते हैं कि मुसलमानों (मुगलों) ने अपने धर्म की जीत के उत्साह में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए, किसी भी मूल संरचना की आधी दीवारों को नष्ट किए बिना एक विशाल मस्जिद में बदलने की ठानी. और उन्होंने मूल संरचना को तोडते वक्त उसके आधार को नहीं मिटाया इसलिए अब भी इसकी मूल संरचना के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है. 

अपने काम के दौरान, प्रिंसेप ने पाया कि, "गुंबद का पहला हिस्सा हिंदू है. इसे किसी भी प्रकार से प्रिंसिपल ऑफ आर्क (arch) की तर्ज पर नहीं बनाया गया था. लेकिन ऊपर की ओर एक चौकोर बहुभुज था जिसे तिरछा काटकर गोलाकार का रूप दिया गया. इसमें प्रिंसेप लिखते हैं कि विश्वेश्वरा के जिस मंदिर में शिवलिंग मौजूद था उसे महादेव या शिव के रूप में पूजा जाता था." इतिहासकार दिनेश कपूर बताते हैं कि शिवलिंग स्वर्ग से उस जगह पर गिरा था और पत्थर में तब्दील हो गया. जब मुसलमानों ने उसे तोड़ना चाहा तब वह आवेग में आकर उछला और जब नीचे गिरा वही व्यापी कुआं है."

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विश्वेश्वर मंदिर पर अपने अध्याय को सारांशित करते हुए, जेम्स प्रिंसेप लिखते हैं कि, "विश्वेश्वर, "ब्रह्मांड के भगवान," शिव के सबसे ऊंचे खिताबों में से एक है; और "वेद और शास्त्र सभी इस बात की गवाही देते हैं कि विश्वेश्वर; देवों में सबसे पहले, काशी; शहरों में सबसे पहले, गंगा; नदियों में सबसे पहले, और पुण्य; गुणों में सबसे पहले है!"

विश्वेश्वर मंदिर की योजना
 
जेम्स प्रिंसेप ने विश्वेश्वर मंदिर की योजना को लिथेग्रफी से नक्शे के जरिए समझाया है. योजना में, यह देखा जा सकता है कि गर्भगृह में शिवलिंग (महादेव) रखा गया है . मंदिर में केंद्र से चारों तरफ से प्रवेश होता था. उत्तर-दक्षिण में आगंतुकों के लिए दो शिव मंडप थे. पूर्व-पश्चिम अक्ष में केंद्र में 'द्वारपालों' से घिरे प्रवेश मंडप थे. कोनों पर और चार कोनों में तारकेश्वर, मनकेश्वर, भैरों (भैरों) गणेश विराजमान थे. इस प्रकार यह योजना केंद्र में प्रमुख देवता के साथ 3×3 ग्रिड पर आधारित थी.

ध्यान देने वाली बात यह है कि योजना में दो रेखाएं है जो मस्जिद द्वारा मंदिर के वर्तमान कब्जे का सीमांकन करती है. इतिहासकार दिनेश कपूर कहते हैं कि यदि इस योजना के संबंध में मंदिर के एक हिस्से को तोड़कर बनाई गई वर्तमान मस्जिद को देखा जाए, तो यह देखा जा सकता है कि तीन गुंबद दो शिव मंडपों और केंद्रीय महादेव तीर्थ के ऊपर बने हैं, जो वहां मौजूद थे. लिथो विशेषज्ञ बॉबी कोहली कहते हैं, "नक्शा मेटल लिथोग्राफी का उपयोग करके बनाया गया है, जहां इसे बनाने के लिए लिथो क्रेयॉन या एक चिकने काली स्याही के साथ धातु की प्लेट का उपयोग किया गया था."

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इतिहासकार और शोधकर्ता दिनेश कपूर कहते हैं, "मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1669 में विश्वेश्वर के उस मंदिर को नष्ट कर दिया था जिस पर मस्जिद बनी थी और आज भी जस की तस है. वह आगे कहते हैं कि दो शिव मंडपों और केंद्रीय महादेव तीर्थ के ऊपर तीन गुंबद बने हैं जो पहले केंद्र में मौजूद थे.

नंदी और शिवलिंग का रहस्य और हिंदू प्रतीक के साक्ष्य

इतिहासकार दिनेश कपूर का कहना है कि जेम्स प्रिंसेप ने लिखा है कि इमारत की दीवार पर कई ऐसे सबूत हैं जो हिंदू संस्कृति से जुड़े हैं. 

वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का दस्तावेजीकरण किया, जिसे 1776 में मालवा की मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था. उन्होंने मंदिर की ऊंचाई का निर्माण कराया, जो आज काशी विश्वनाथ का मुख्य मंदिर है. उन्होंने इस मंदिर में नंदी का चित्र भी बनवाया है. इतिहासकार दिनेश कपूर बताते हैं कि जिस मंदिर में नंदी का चित्र बना है, वह उसी मंदिर का है.
 
छवि का विश्लेषण करने वाले इतिहासकार दिनेश कपूर कहते हैं कि, "यहां खींचे गए एक हिंदू मंदिर की ऊंचाई तत्कालीन विश्वेश्वर मंदिर को दर्शाती है. वह इस तथ्य पर प्रकाश डालते हैं कि,"प्रिंसेप ने अपनी लिथो कला में मंदिर के एकदम दाहिनी ओर एक नंदी का भी चित्रण किया है जो वर्तमान नंदी से मिलता जुलता है. इतिहास कहता है कि मंदिर का चरम दाहिना भाग मुसलमानों द्वारा नष्ट कर दिया गया था और जहां नंदी की पूजा की जाती है, वहां चरम अधिकार को वैसे ही छोड़ दिया गया था.”

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माधोराय मस्जिद

औरंगजेब द्वारा नष्ट किए गए अन्य शिवालयों और मंदिरों में से एक माधोराय मस्जिद थी. प्रिंसेप इलस्ट्रेट्स, "माधोराय मस्जिद (मस्जिद) साइट पर और बिंद माधो या विष्णु के मंदिर की सामग्री के साथ औरंगजेबे द्वारा बनाई गई थी". टेवर्नियर द्वारा वर्णित बिंद माधो या विष्णु का मंदिर, पंचगंगा से राम घाट तक की पूरी जगह पर कब्जा कर लिया है, जिसमें इसकी दीवारों के भीतर राम और मुंगुला गौरी के मंदिर और पुजारी के कई घर शामिल हैं.

प्रिंसेप लिखते हैं कि माधोराय मस्जिद के आसपास की मस्जिद और मीनारों को उनकी आदतों और भावनाओं के लिए सबसे अधिक अपमानजनक अपमान को बनाए रखने की एक विधि के रूप में बनाया गया था, उनकी मीनारों को इतनी ऊंचाई तक ले जाकर कि उनके घरों, ऊपरी अपार्टमेंट और सीढ़ीदार छतों की गोपनीयता को नजरअंदाज कर दिया गया. जिनमें से हमेशा परिवार की महिलाओं द्वारा किराए पर लिया जाता है. मस्जिद में स्थापत्य सौंदर्य की प्रशंसा करने के लिए बहुत कम है, लेकिन मीनारों को उनकी सादगी और निष्पादन की निर्भीकता के लिए योग्य रूप से सराहा गया है.

 

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