
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के राष्ट्रीय महासचिव व नेता विपक्षी दल स्वामी प्रसाद मौर्य ने पिछले दिनों अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए हुए शिलापूजन को लेकर विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) पर बड़ा हमला बोला. मौर्य ने कहा कि सत्तारूढ़ दल की शह पर कानून को अपने हाथों में लेकर पत्थर लाने वाले लोग देसी आंतकवादी हैं. इन लोगों का कानून से कोई मतलब नहीं है. ये लोग केवल सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए ऐसी हरकतें कर रहे हैं.
सपा को भी लिया निशाने पर
उन्होंने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन बुलाकर कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान सत्ताधारी सपा और बीजेपी ने पूरे प्रदेश को दंगे की आग में झोंक दिया था. ये फिर से वैसी ही हरकतें करने के प्रयास हैं. मौर्य ने कहा, 'सपा-बीजेपी की नूराकुश्ती में प्रदेश की हिन्दू-मुस्लिम एकता भंग हो रही है. राम जन्मभूमि का पूरा मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, फिर बीजेपी के लोगों को कानून हाथ में लेने की जरूरत क्यों पड़ी?' सपा में पंचायत चुनाव को लेकर मचे घमासान को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि प्रदेश को पहले से चार मुख्यमंत्री चला रहे हैं तो अंतर्द्वद तो होना ही है. पार्टी के भीतर का विवाद अब खुलकर बाहर आ रहा है, जो कि 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में सपा के लिए बहुत ज्यादा नुकसानदेह होगा.
सरकार पर लगाए जातीय भेदभाव के आरोप
वह प्रदेश में चल रहे अधिकारियों के पदावनत को लेकर भी प्रदेश सरकार पर जमकर बरसे. उन्होंने कहा कि सरकार अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के अधिकारियों को जानबूझकर परेशान कर रही है. इसमें सरकार की कुंठा और सामंती सोच दिखती है. मौर्य ने कहा कि सरकार के इस भेदभावपूर्ण रवैये की वजह से अब तक 15,226 कर्मचारी व अधिकारी अपने पद से पदावनत किए गए हैं. इसके अलावा सरकार 50,000 शिक्षकों को भी पदावनत करने की योजना बना चुकी है. उन्होंने कहा कि जातीय उत्पीड़न से पुलिस विभाग भी अछूता नहीं है. पदोन्नति प्राप्त 212 सब इंस्पेक्टरों को पदावनत कर हेड कांस्टेबल बना दिया गया है. 58 उपजिलाधिकारियों को भी विधि विरुद्ध निचले पदों पर भेजा गया है.
उन्होंने कहा कि इस मामले में मुख्यमंत्री व मुख्यसचिव से वार्ता हो चुकी है, लेकिन कुछ भी हल नहीं निकला. पदावनत के शिकार कर्मचारियों व अधिकारियों की संख्या तीन लाख पहुंच गई है. मौर्य ने चेतावनी दी कि सरकार इस मामले में सजग होकर भेदभाव बंद करे, अन्यथा आठ लाख पदाधिकारी आंदोलन के लिए सड़कों पर उतर सकते हैं.