
बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सियासी समीकरण बनाने में संगठन में बड़ा फेरबदल किया है. ऐसे में बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी के सबसे मजबूत दुर्ग माने जाने वाले पश्चिम यूपी की जिम्मेदारी अपने सबसे अहम सिपहसालार शमसुद्दीन राईनी को सौंपी है. शमसुद्दीन राईनी बसपा के ऐसे नेता हैं, जिनका न तो कोई राजनीतिक बैकग्राउंड और न ही कोई सियासी गॉड फॉदर रहा है. उन्होंने बसपा में एक साधारण कार्यकर्ता के तौर पर अपना सफर शुरू किया और अपने काम से न सिर्फ बसपा में अपने आपको मजबूत किया है बल्कि वो पार्टी प्रमुख मायावती के सबसे भरोसेमंद कोऑर्डिनेटरों में से एक हैं. यही वजह है कि उन्हें बसपा में दूसरे नसीमुद्दीन सिद्दीकी के तौर पर देखा जा रहा है.
बता दें कि बसपा में एक समय नसीमुद्दीन सिद्दीकी की तूती बोलती थी और मायावती के सबसे करीबी नेताओं में गिने जाते थे. मायावती के सत्ता में रहते हुए नसीमुद्दीन के पास सारे मलाईदार महकमे थे. बसपा में नंबर दो की हैसियत थी. पश्चिम यूपी की सारी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर थी, लेकिन 2018 में बसपा का साथ छोड़कर उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बसपा से बाहर होने के बाद पश्चिम की कमान शमसुद्दीन राईनी ने संभाली. शमसुद्दीन ने पार्टी में नसीमुद्दीन की कमी को कभी महसूस होने नहीं दिया. 2019 में बसपा का सबसे बेहतर प्रदर्शन पश्चिम यूपी के इलाके में ही रहा है.
हाल के दिनों में बसपा में शमसुद्दीन राईनी का सियासी कद लगातार बढ़ता जा रहा है. मायावती ने सोमवार को शमसुद्दीन को उत्तर प्रदेश के पांच मंडल के मुख्य सेक्टर प्रभारी के साथ उत्तराखंड के स्टेट कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी सौंपी है. शमसुद्दीन राईनी के पास सहारनपुर, मेरठ, मुरादाबाद और बरेली के साथ लखनऊ मंडल के सेक्टर-2 की जिम्मेदारी रहेगी. इसके अलावा वह उत्तराखंड की भी पूरी जिम्मेदारी संभालेंगे. इससे साफ जाहिर है राईनी बसपा में दूसरे नसीमुद्दीन के तौर पर अपने आपको स्थापित करने का काम किया है.
कौन है शमसुद्दीन राईनी
बसपा नेता शमसुद्दीन राईनी झांसी के रहने वाले हैं और उनका जन्म 7 मई 1978 को हुआ है. उनके पिता का नाम निजाम राईनी है. झांसी में उनका सब्जी और फल का काम है. शमसुद्दीन राईनी अपने परिवार से पहले शख्स हैं, जिन्होंने सियासत में कदम रखा है. 20 साल की उम्र में ही शमसुद्दीन बसपा के साथ जुड़ गए थे और एक साधाराण कार्यकर्ताओं के तौर पर अपना सफर शुरू किया था. बूथ अध्यक्ष से होते हुए विधानसभा और फिर जिला संगठन में जगह बनाई. हालांकि, न तो वो एमएलसी बने हैं और न हीं कभी कोई चुनाव लड़े हैं बल्कि संगठन में ही काम को सबसे ज्यादा अहमियत देते हैं.
हालांकि, शमसुद्दीन राईनी ने 90 के दशक में बसपा के झांसी के जिला अध्यक्ष रहे चौधरी नसीम कुरैशी की उंगली पकड़कर राजनीति सीखी और बसपा के साथ वैचारिक तौर पर जुड़ गए. इसके बाद शमसुद्दीन ने पलटकर नहीं देखा और सियासत की सीढ़ी पर धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाते जा रहे हैं. 1996 में बसपा संगठन में बूथ कार्यकर्ता के तौर पर जुड़े. इसके बाद 2003 में झांसी के जिला संयोजक की जिम्मेदारी संभाली और फिर पार्टी संगठन में नगर अध्यक्ष से लेकर जिला उपाध्यक्ष तक सफर तय किया. इसके बाद 2006 में मायावती ने उन्हें झांसी मंडल का मुस्लिम भाई-चारा कमेटी का संयोजक की जिम्मेदारी सौंपी. इसके बाद 2007 में झांसी के जिला प्रभारी के तौर पर नियुक्त किया और फिर झांसी मंडल में काम करते रहे.
2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मार्च में मायावती ने शमसुद्दीन राईनी को बुंदेलखंड से बाहर कानपुर जोन का इंचार्ज बनाया, लेकिन उनके साथ एक सीनियर नेता को भी जिम्मेदारी सौंपी थी. 2015 में कानपूर मंडल की पूरी जिम्मेदारी उन्हें सौप दी गई. दो साल काम करने के बाद 2017 में शमसुद्दीन राईनी पूर्वांचल के गोरखपुर, फैजाबाद और आजमगढ़ मंडल के कोऑर्डिनेटर बने. इस दौरान उन्होंने देवी पाटन, लखनऊ और कानपुर की जिम्मेदारी संभाला.
नसीमुद्दीन की जगह शमसुद्दीन
2017 विधानसभा चुनाव के बाद बसपा से नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बाहर होने के बाद शमसुद्दीन राईनी को पश्चिम यूपी की जिम्मेदारी सौंपी गई. बसपा की राजनीति में पश्चिम यूपी सबसे अहम माना जाता है. नसीमुद्दीन के बाहर होने के बाद शमसुद्दीन राईनी ने पश्चिम यूपी के एक भी नेता को भी उनके साथ जाने नहीं दिया और पार्टी को मजबूती के साथ जोड़कर रखा. लोकसभा चुनाव में बसपा का सबसे बेहतर नतीजा पश्चिम यूपी से रहा है. पश्चिम की चार सीटों पर बसपा ने जीत दर्ज की थी, जिनमें सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और अमरोहा शामिल है. वहीं, मेरठ में बसपा मामूली वोटों से हार गई थी और बाकी सीटों पर दूसरे नंबर पर रही. इन सारे इलाके की जिम्मेदारी शमसुद्दीन राईनी के कंधों पर थी.
शमसुद्दीन ओबीसी मुस्लिम समुदाय से आते हैं, जिसकी सूबे में मुस्लिम में सबसे ज्यादा संख्या है. इसके बावजूद राजनीतिक में ओबीसी मुस्लिम से ज्यादा अगड़े मुस्लिम राजनीतिक दलों में हावी हैं. ऐसे में शमसुद्दीन मौजूदा समय में सूबे में पहले ओबीसी नेता हैं, जो राजनीतिक तौर पर इस मुकाम पर है. वहीं, दूसरी ओर सपा और कांग्रेस में अगड़े मुस्लिम नेता ही हावी है. 2022 विधानसभा चुनाव के लिहाज से मायावती ने उन्हें अहम जिम्मेदारी सौंपी है, जो उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण भी माना जा रहा है. ऐसे में देखना है कि पश्चिम यूपी में दलित और मुस्लिम समीकरण को बनाने में शमसुद्दीन राईनी कितना सफल रहते हैं.