
नागरिकता संशोधन कानून को आए हुए एक साल हो चुका है. केंद्र सरकार ने पिछले साल 11 दिसंबर को सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) पास किया था. हालांकि इसके बाद पूरे देश में धरना प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया था. दिल्ली के शाहीन बाग और देश के कई अन्य हिस्सों में भी शाहीन बाग की तर्ज पर धरना प्रदर्शन किए गए. उत्तर प्रदेश में भी लखनऊ के घंटाघर, अलीगढ़ विश्वविद्यालय और इलाहाबाद पार्क में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन किया.
लखनऊ का घंटाघर और प्रयागराज पार्क का आंदोलन तो कोरोना के लॉकडाउन शुरू होने के बाद ही खत्म हो सका. सीएए और एनआरसी के खिलाफ लखनऊ में एक बड़ी हिंसा भी दिखी. यह हिंसा लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश के कई जिलों में फैली. 19 दिसंबर से 10 जनवरी तक चले हिंसा के इस दौर में 23 लोगों की जानें भी गईं.
एंटी सीएए और एंटी एनआरसी के हिंसक प्रदर्शनों के बाद योगी सरकार ने बेहद ही कड़ा रुख अपनाया. हिंसा में शामिल लोगों की कथित पहचान सीसीटीवी के जरिए कराई गई और फिर सैकड़ों लोगों की तस्वीरें लखनऊ और दूसरे शहरों के चौक चौराहों पर टांग दी गईं. इसमें कई ऐसी अपराधिक चेहरे भी थे जिन्होंने भीड़ से फायरिंग की थी. कई ऐसे चेहरे थे जिन्होंने तोड़फोड़ की थी, मीडिया वैन जलाए थे, पुलिस पर हमले किए थे.
सरकार ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और धार्मिक नेताओं के पोस्टर भी चौक चौराहे पर लगवाए थे. इन सभी पर प्रोटेस्ट का साथ देने और भीड़ का हिस्सा बनने का आरोप था. इन सभी लोगों से नुकसान की वसूली के लिए अभियान भी चलाया गया.
लखनऊ, कानपुर, अलीगढ़ जैसे शहरों में तो ऐसे प्रोटेस्टर्स जिनका नाम या जिनकी तस्वीरें सीसीटीवी में आई उनसे क्षतिपूर्ति भी वसूली गई और यह रकम लाखों में थी. लखनऊ में 19 दिसंबर 2019 को सीएए और एनआरसी कानून के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान जमकर हंगामा हुआ था और लखनऊ सहित पूरे उत्तर प्रदेश में कई जगह गाड़ियां जला दी गई थी और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था. ठीक एक साल बाद 11 दिसंबर 2020 को क्या परिस्थितियां हैं उन पर नजर डालते हैं.
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पुलिस की गोली का बने थे शिकार
लखनऊ में सीएए-एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान थाना ठाकुरगंज के मोहम्मद वकील नामक शख्स की पुलिस की गोली लगने से मौत हो गई थी. हालांकि सरकार ने उनके परिजनों को मकान और पैसा देने का आश्वासन दिया था. एक साल बाद जब यह जानने की कोशिश की गई कि उनके परिवार वालों को मुआवजा मिला या नहीं? तो पता चला कि वो अब तक सरकारी मदद का इंतजार ही कर रहे हैं. मोहम्मद वकील के पिता मेहनत-मजदूरी कर अपना पेट पाल रहे हैं. मृतक के पिता सैफुद्दीन ने कहा कि अब तक सरकार की तरफ से उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया गया है. वो फावड़ा चलाकर अपना पेट भर रहे हैं.
वकील के पिता ने सरकार पर झूठे आश्वासन का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि पुलिस की गोलीबारी में उनके बेटे की जान चली गई और सरकार के आश्वासन के बावजूद उन्हें कुछ भी मुआवजा नहीं मिला है. साथ ही साथ यह भी क्या उनका बेटा भी हाथ से चला गया और उनको सरकार से कुछ नहीं मिला.
हालांकि सरकार की तरफ से मोहम्मद वकील की पत्नी को पैसा और मकान मिला है. पिता का आरोप है कि उनकी पतोहू और बच्चे को सरकार ने पैसा और मकान दिया, जो उन्हें छोड़कर कहीं और चली गई. मौजूदा वक्त में उनका बेटा उनके साथ नहीं है और सरकार का दिया कोई मुआवजा भी नहीं मिला है. हालांकि कई राजनीतिक पार्टियों ने उन्हें कुछ आर्थिक मदद की थी लेकिन अब वह खर्च भी खत्म हो गया है.
बायकॉट किए गए सामाजिक कार्यकर्ता
सीएए-एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन में सदफ जफर, एसआर दारापुरी, दीपक कबीर सहित कई अन्य सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल हुए थे. इन सभी के ऊपर एफआईआर दर्ज कराई गई थी. सदफ जफर ने एक साल बाद आजतक से बात करते हुए कहा कि इस घटना के बाद उनको सामाजिक तौर से बायकॉट कर दिया गया. सरकार ने चौक-चौराहे पर उनके पोस्टर लगा दिए. इस वजह से उनके स्कूल जाने वालों बच्चों को भी काफी कुछ झेलना पड़ा. उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया गया. सदफ जफर की मानें तो वह सिर्फ न्याय की लड़ाई लड़ रही हैं. वह ऐसे लोगों की लड़ाई लड़ रही हैं, जिसमें सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, जैन, हिंदू, पारसी, किन्नर भी शामिल थे.
सदफ जफर ने कहा कि सरकार ने इस काले कानून का विरोध करने वालों को पूरी तरीके से बर्बाद कर दिया. उन्होंने कहा कि सरकार भले ही उनपर केस चलाए लेकिन वो आगे भी इस कानून का विरोध करती रहेंगी.
एक साल बाद भी कानून के खिलाफ अड़े हैं धर्मगुरु सैफ अब्बास
सीएए-एनआरसी मामले में दंगा भड़काने के आरोप में मुस्लिम शिया धर्मगुरु मौलाना सैफ अब्बास का भी नाम सामने आया था. चौक-चौराहों पर उनके भी पोस्टर लगाए गए थे. सैफ अब्बास के मुताबिक पुलिस ने उनको गलत तरीके से प्रताड़ित किया है. मौलाना सैफ अब्बास कोर्ट से स्टे आर्डर ले चुके हैं. दरअसल सरकार ने उनकी प्रॉपर्टी जब्त करने की बात कही थी, लेकिन कोर्ट ने उस पर स्टे लगा दिया है. मौलाना सैफ अब्बास के मुताबिक यह न्याय की जीत है और एक साल बाद भी इस कानून के खिलाफ खड़े हैं.
क्या कहती है पुलिस?
लखनऊ पुलिस आयुक्त डीके ठाकुर के मुताबिक लखनऊ थाने में 63 मुकदमा दर्ज किए गए हैं. जिसमे 283 अभियुक्त नामजद हुए हैं, 456 प्रकाश में आए और 163 नाम गलत पाए गए. अब तक 576 अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई की गयी है. 37 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गयी है और 21 लोगों के खिलाफ फाइनल रिपोर्ट लगाई गई है.
लखनऊ पुलिस ने सीएए और एनआरसी एक्ट में 50 लोगो के खिलाफ कार्रवाई की है. जिसमें चार लोगों को जिला बदर किया गया है.
लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश के मुताबिक प्रॉपर्टी अटैच करने के लिए सदर तहसील में 57 लोगों के खिलाफ नोटिस भेजा गया था. जिसमें से 48 लोग यूपी के थे, बाकी दूरसे राज्यों से थे. तीन बिल्डिंग को सील किया गया है, जबकि एक व्यक्ति को जेल भेजा गया है. फिलहाल कोविड की वजह से कार्रवाई रोक दी गई है, जबकि कई लोगों ने कोर्ट से स्टे लिया है.