
उत्तर प्रदेश की सियासत में बीजेपी फिर से सत्ता पर काबिज होने की कवायद में है तो विपक्षी दलों का मिशन है भगवा दल के विजय रथ को हर हाल में रोकना. सत्तापक्ष से लेकर विपक्षी दलों की नजरें सूबे के ओबीसी समुदाय के वोटों पर है. पीएम मोदी ने अपने कैबिनेट विस्तार में ओबीसी समुदाय के मंत्री बनाकर उन्हें सियासी संदेश दिया तो सपा से लेकर बसपा और कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने जातिगत जनगणना की मांग बुलंद की है जबकि बीजेपी ने खामोशी अख्तियार कर रखी है.
बता दें कि देश में जनगणना का काम 2021 में होना है. हालांकि, इसकी शुरुआत पिछले साल ही होनी थी, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से इसे टाल दिया गया था. केंद्र सरकार अब इस प्रक्रिया को शुरू करना चाहती है. ऐसे में जातिगत आधार पर जनगणना कराने की मांग को लेकर बिहार से लेकर यूपी की सियासत गरमा गई है. 6 महीने के बाद यूपी में विधानसभा चुनाव होने है, जिसके चलते विपक्ष जातिगत जनगणना को बीजेपी के खिलाफ सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने में जुट गई है.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जातीय जनगणना कराई जाने की मांग उठाई है. उन्होंने रविवार को कहा कि दलितों और पिछड़ों को बरगला कर सत्ता तक पहुंची बीजेपी वास्तव में संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के बताए रास्ते पर दीवार बन कर खड़ी हो गई है. उन्होंने कहा कि दलित वंचित व शोषित वर्ग के हितों की रक्षा के लिए जातिगत जनगणना अत्यन्त आवश्यक है और उनकी पार्टी सत्ता में आने के बाद यह काम प्राथमिकता के आधार पर कराएगी.
जातिगत जनगणना के समर्थन में बसपा अध्यक्ष मायावती भी खुलकर मैदान में हैं. उन्होंने शुक्रवार को ट्वीट कर कहा था कि देश में ओबीसी समुदाय की जनगणना की मांग बसपा शुरू से करती रही है और अभी भी उनकी यही मांग है. जातिगत जनगणना को लेकर बीजेपी अगर कोई सकारात्मक कदम उठाती है तो बसपा संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह इसका समर्थन करेगी. मायावती के अलावा सुहेलदेव समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर भी जातिगत जनगणना की मांग को लेकर बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.
वहीं, उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग ने 6 अगस्त को सूबे के सभी जनपदों में जातिगत जनगणना की मांग के लिए जिला अधिकारी के जरिए राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा है. यूपी कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग के प्रदेश अध्यक्ष मनोज यादव ने कहा कि जातीय आधार पर जनगणना से यह साफ हो जाएगा कि देश में किसकी कितनी आबादी है और उसका क्या प्रतिनिधित्व है. बीजेपी को जातिगत आधारित जनगणना कराने में क्या दिक्कत है और क्यों घबरा रही है. इस बात को सामने रखना चाहिए. हमारे नेता राहुल गांधी भी जातिगत जनगणना की मांग उठा चुके हैं जबकि बीजेपी पूरी तरह से खामोश है. ऐसे में साफ जाहिर होता है कि बीजेपी का ओबीसी हितों से कोई नाता नहीं है बल्कि वो उनके साथ छलावा कर रही है.
दरअसल, उत्तर प्रदेश की सियासत में ओबीसी निर्णायक भूमिका में हैं और मंडल कमीशन के बाद ओबीसी और दलितों के इर्द-गिर्द सूबे की राजनीति सिमटी हुई है. पिछड़े वर्ग की आबादी करीब 39 फीसदी है, जिसमें यादव 10 फीसदी, कुर्मी-कुशवाहा, सैथवार 12 फीसदी, जाट 3 फीसदी, मल्लाह 5 फीसदी, विश्वकर्मा 2 फीसदी और अन्य पिछड़ी जातियों की तादाद 7 फीसदी है. इसके अलावा प्रदेश में अनुसूचित जाति 25 फीसदी है और मुस्लिम आबादी 18 फीसदी है. इन्हीं वोटों के सहारे सूबे की सत्ता तय होती है.
1990 के बाद सभी पार्टियां ओबीसी चेहरे को आगे कर चुनाव मैदान में उतरती रही हैं. पिछले तीन दशकों में राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ के अलावा कोई सवर्ण समुदाय से सीएम नहीं बने. राममंदिर आंदोलन के दौरान भी बीजेपी भी कल्याण सिंह को आगे कर चुनाव लड़ती रही है और 2017 में भी बीजेपी की सत्ता में वापसी में ओबीसी वोटर की भूमिका अहम रही है.
यूपी में सवर्ण जातियां 19 फीसदी हैं, जिसमें ब्राह्मण करीब 10 फीसदी बताए जाते हैं जबकि 6 फीसदी राजपूत और बाकी वैश्य, भूमिहार और कायस्थ. ऐसे में सभी राजनीतिक दलों की नजर ओबीसी वोटर पर है. इसीलिए विपक्ष जातिगत जनगणना की मांग को उठा रहा है तो बीजेपी साइलेंट मोड पर है. उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने आजतक के पंचायत कार्यक्रम में जातिगत जनगणना के सवाल पर कहा कि पार्टी जो निर्णय लेगी हमें वो मान्य होगा और हम उसके आधार पर आगे बढ़ेंगे, इसमें हम कुछ बोल नहीं सकते हैं. वहीं, सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि जातिगत जनगणना का फैसला केंद्र सरकार को लेना है.
बीजेपी इस मुद्दे पर खामोश रहना ही बेहतर समझ रही है, उसे पता है कि जातिगत जनगणना की मांग के समर्थन में उतरती है तो उसका सवर्ण कोर वोटबैंक छिटक सकता है. वहीं, बाकी दलों का सियासी आधार ओबीसी और दलित वोटों पर है. ऐसे में वो इस मुद्दे को लेकर मुखर हैं और बीजेपी को घेरने में जुट गए हैं. जातिगत जनगणना को लेकर शुरू से ही शरद यादव, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और नीतीश कुमार आवाज उठाते रहे हैं. साल 2011 में जातिगत आधार पर यूपीए सरकार में जनगणना के बजाय सर्वे कराया गया था, लेकिन 2016 में जातिगत आंकड़े जारी नहीं किए. अब फिर से इस पर बहस शुरू हुई है. यूपी चुनाव के चलते यह मुद्दा और भी गर्मा गया है.