
किसी भी काम को पूरी लगन से किया जाए तो कामयाबी जरूर मिलती है. इस बात को पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के किसानों ने सच कर दिखाया है. तीन साल पहले चंदौली के किसानों ने प्रयोग के तौर पर ब्लैक राइस (काले चावल) का उत्पादन शुरू किया था और अब चंदौली का ब्लैक राइस (Chandauli Black Rice) किसी पहचान का मोहताज नहीं बल्कि इसकी चर्चा अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हो रही है.
अंतरराष्ट्रीय संस्था United Nation Devlopment Programme यानी UNDP ने चंदौली के काले चावल की तारीफ की है. यही नहीं, चंदौली में किसानों द्वारा ब्लैक राइस की पैदावार किए जाने की वजह से नीति आयोग की ताजा रैंकिंग में भी चंदौली को पूरे देश में दूसरा स्थान मिला है, जिसको लेकर स्थानीय अधिकारी और किसान काफी उत्साहित हैं.
प्रयोग के तौर पर शुरू हुई थी ब्लैक राइस की खेती
दरअसल, चंदौली को धान का कटोरा कहा जाता है. तीन साल पहले तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की पहल पर देश के आकांक्षात्मक जनपदों में शामिल चंदौली में प्रयोग के तौर पर ब्लैक राइस की खेती की शुरुआत की गई थी. जिससे किसानों की आय बढ़ाई जा सके. शुरुआत में जनपद के कुछ प्रगतिशील किसानों ने ब्लैक राइस की खेती की. जब फसल तैयार हुई तो किसानों को ब्लैक राइस की खेती से अच्छा खासा मुनाफा हुआ.
इसके बाद अगले सीजन में जिले के ढाई सौ किसानों ने ब्लैक राइस की खेती की. फसल तैयार होने पर जिला प्रशासन के सहयोग से ब्लैक राइस की ब्रांडिंग की गई और इसे आस्ट्रेलिया में एक्सपोर्ट भी किया गया. साथ ही साथ ऑनलाइन मार्केट में भी चंदौली ब्लैक राइस को लॉन्च किया गया. ब्लैक राइस की खेती से जब किसानों की आमदनी बढ़ी तो जिले के अन्य किसान भी ब्लैक राइस की खेती के प्रति आकर्षित हुए. पिछले सीजन में जिले के एक हजार किसानों ने ब्लैक राइस की खेती की थी.
चंदौली में काले चावल की खेती की हुई सराहना
संजीव सिंह ने कहा, 'चंदौली के इस काले चावल की टेस्टिंग कराई गई थी जिसमें पाया गया था कि इसमें एंटी ऑक्सीडेंट, फाइबर, जिंक, आयरन और प्रोटीन की अच्छी मात्रा है. यह कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों को ठीक करने में भी सहायक है. चंदौली काला चावल की खेती प्रदेश के अन्य 14 जनपदों में भी की जा रही है, यह चंदौली जनपद के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. इसके लिए मैं सभी किसान भाइयों और कृषि वैज्ञानिकों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं.'
पीएम मोदी ने भी की थी तारीफ
पिछले साल 30 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने वाराणसी दौरे के दौरान भी चंदौली के काले चावल और किसानों की जमकर तारीफ की थी. ब्लैक राइस की पैदावार की दर चंदौली जिले के प्रचलित धान की फसल जीआर-32 के बराबर है. जबकि बाजार में इसकी कीमत जीआर- 32 के चावल से कई गुना ज्यादा है.
ब्लैक राइस में नहीं होता कीटनाशक दवा का प्रयोग
ब्लैक राइस की कीमत तकरीबन 300 से 400 सौ रुपये प्रति किलो है. यही नहीं, इसकी खेती में लागत भी कम है. खास बात यह है कि ब्लैक राइस में किसी भी तरह की कीटनाशक दवा का प्रयोग नहीं किया जाता है. इसमें सिर्फ जैविक खाद, कम्पोस्ट आदि का ही प्रयोग किया जाता है. ब्लैक राइस एंटी ऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर होता है. साथ ही और कैंसर के अलावा दिल की बीमारियों से बचाता है.
क्या है काले चावल की खासियत?
काला चावल यानी ब्लैक राइस शुगर फ्री तो है ही साथ ही साथ इसमें एंटी ऑक्सीडेंट सहित कई अन्य औषधीय गुण भी हैं, जिसकी वजह से यह काफी महंगा है. इसका उत्पादन करने वाले किसानों की आमदनी में चार से पांच गुना इजाफा हुआ है.
शुगर फ्री होता है ब्लैक राइस
अन्य चावल की तुलना में ब्लैक राइस में जिंक, आयरन, फाइबर और प्रोटीन प्रचूर मात्रा में पाई जाती है. ब्लैक राइस की सबसे बड़ी खासियत है कि यह चावल शुगर फ्री है, जिसे मधुमेह के रोगी भी खा सकते है.