
राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख चौधरी अजित सिंह का 86 साल की उम्र में गुरुवार सुबह निधन हो गया. उन्हें सियासत अपने पिता चौधरी चरण सिंह से विरासत में मिली थी. यही वजह है कि अजित सिंह अपने पिता की तरह ही खुद को किसान और जाट नेता कहलवाना पंसद करते थे. साल 1989 से लेकर 2014 तक लगभग हर केंद्र सरकार में अजित मंत्री रहे. सियासी मिजाज को समझते हुए वो अपनी राजनीतिक साझेदारी बदलते रहे हैं, पर 2014 के बाद से अपना खोया हुआ सियासी मुकाम हासिल नहीं कर सके.
अजित सिंह का जन्म 12 फरवरी 1939 को मेरठ के भडोला गांव में हुआ था. लखनऊ से बीएससी करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए आईआईटी खड़गपुर चले गए. इसके बाद अमेरिका के इलिनाइस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी से मास्टर ऑफ साइंस किया. अजित ने करीब 15 साल तक अमेरिका में ही नौकरी की. जब उनके पिता चौधरी चरण सिंह की तबीयत खराब रहने लगी तो वे भारत लौट आए और राजनीति में कदम रखा. यहीं से 1980 में चौधरी चरण सिंह ने अपनी सियासी विरासत अजित सिंह को सौंप दी.
अजित सिंह 1986 में पहली बार उत्तर प्रदेश से राज्यसभा पहुंचे. 1987 में उन्हें लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया और 1988 में जनता पार्टी के अध्यक्ष घोषित किए गए. अजित सिंह 1989 के बाद बागपत से लगातार 2014 तक सांसद रहे, सिवाय 1999 के. इसके बाद उन्हें 2014 में दूसरी बार मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह ने हराया और तीसरी बार मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान के हाथों शिकस्त मिली. मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाटों का बीजेपी के पक्ष में लामबंद हो जाने से आरएलडी के सियासी वजूद पर संकट गहरा गया था.
1960 के दशक से पिता चरण सिंह की मृत्यु के बाद अजित जाटों के एकमात्र नेता रहे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी अजित सिंह की ही तूती बोलती थी. वे किसानों, खासतौर पर जाटों के फिक्रमंद थे. चरण सिंह ने जाटों के साथ मुसलमान, गुर्जर और राजपूतों का समर्थन जुटाकर 'मजगर' का चुनावी समीकरण बनाया था, अजित इसी राजनीति के सहारे चुनाव जीतते रहे और सत्ता में हिस्सेदार भी बनते रहे.
चौधरी अजित सिंह हर चुनाव में कुछ लोकसभा और दो दर्जन विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करते रहे. देश और प्रदेश में गठबंधन की राजनीतिक दौर में वो काफी अहम साबित होते. इन्हीं के दम पर अजित सिंह हर सरकार में मंत्री बन जाते. साल 1989 में वीपी सिंह की सरकार हो या 1991 में नरसिंह राव सरकार. 1999 की वाजपेयी सरकार की एनडीए या फिर साल 2001 की मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री.
चौधरी अजित भले ही जाटों के नेता तो रहे, लेकिन जाट कितना भी नाराज होता पर वोट उन्हीं को देता. पश्चिम यूपी का जाट सिर्फ चौधरी चरण सिंह का ख्याल रखते हुए अजित सिंह को जिताता रहा. अजित सिंह सियासी मिजाज का अंदाजा लगाने में माहिर थे, उन्हें ये हुनर भी अपने पिता से विरासत में मिला था.
चौधरी चरण सिंह ने 1967 में यूपी की कांग्रेस सरकार गिराई और फिर खुद मुख्यमंत्री बन गए थे. इसी तरह 1979 में उन्होंने पहले मोरारजी देसाई की सरकार गिराई और फिर पाला बदल कर कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन बैठे, लेकिन चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद उनकी राजनीतिक विरासत संभालने की जिम्मेदारी अजित ने संभाली तो उसी दिशा में काम किया.
1989 में चौधरी साहब के शिष्य मुलायम सिंह यादव के साथ पहले पार्टी के नेतृत्व और फिर मुख्यमंत्री पद को लेकर मतभेद हुए. इसके बाद अजित ने अलग होकर नई पार्टी जनता दल (अजित) बना ली और बाद में नाम बदलकर राष्ट्रीय लोक दल कर दिया. अजित सिंह की राजनीतकि विरासत अब उनके बेटे जयंत चौधरी के हाथ में है, जो फिलहाल पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं.